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शनिवार, मई 07, 2016

"शनिवार की चर्चा" (चर्चा अंक-2335)

मित्रों
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

बदरा 

Akanksha पर Asha Saxena 
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मैं .... पानी हूँ पानी हूँ पानी हूँ 

मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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मुझे इश्क़ की इज़ाज़त दे दे। 

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कहाँ जाती हैं गंगा में विसर्जित अस्थियाँ ?  

डा श्याम गुप्त 

...सदानीरा व परमपावन गंगा नदी को प्राणियों के समस्त पापों को दूर करने वाली कहा जाता है | परन्तु वह स्वयं अपवित्र नहीं होती| प्रत्येक हिंदू व उसके परिवार की इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए | युगों से ये प्रथा चली आ रही है | अस्थियाँ गंगा में विसर्जित होती आरही हैं फिर भी गंगाजल पवित्र एवं पावन है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह अस्थियां जाती कहां हैं?
                  गौमुख से गंगासागर तक खोज करने के बाद भी वैज्ञानिक भी आज तक इस प्रश्न का उत्तर इसका उत्तर नहीं खोज पाए | क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगाजल पवित्र एवं पावन है... 
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स्वर्गलोग में खलबली....! 

अपनी बात...पर वन्दना अवस्थी दुबे 
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इश्क़बाज़ों को भला काम की फ़ुर्सत है क्या 

दर्द देने की मुझे तेरी भी फ़ित्रत है क्या 
मेरे जज़्बात से तुझको भी अदावत है क्या 
मुझको रुस्वा जो किया इश्क़ में करता हूँ मुआफ़ 
देख पर पास तेरे थोड़ी भी इज़्ज़त है क्या... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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जाने क्यों आती है खुशियां

खुश करके फिर बड़ा रुलाती
परिवर्तन ही नियम प्रकृति का
उपजे खेले फिर मिट जाती... 

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उत्तर में कितना सच हो कितनी औपचारिकता?
कोई कहे, 'नमस्ते। कैसी हो?' तो क्या उत्तर दिया जाए?
मजे में /आनन्द है/ बढ़िया/ सब ठीक है/ आपकी कृपा है? क्या तब भी, जब सर फटा जा रहा हो, हाल की बीमारी से दिखना भी कम हो गया हो, कान तो लगभग बहरे हो गए हों, मस्तिष्क की सोचने, समझने की शक्ति खत्म हो गई हो, कुछ याद न रहता हो, भूरे सलवार कुरते के साथ जामुनी दुपट्टा लेकर बाहर चली जाती होऊँ, बच्चे बीमार चल रहे हों, पति का मधुमेह बढ़ गया हो, कामवाली छुट्टी पर चली गई हो, ढंग से सोए हुए जमाना बीत गया हो, घर के खर्चे में आधा खर्चा दवाई और डॉक्टर की फीस का हो, कमी थी तो घर पर मेहमान आने वाले हों?
या फिर सच बता दिया जाए? सुनने वाला अफ़सोस करेगा कि क्यों पूछा था... 

घुघूतीबासूती 
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(१)
क्रोधित त्वरा
विचलित गगन
शांत वसुधा
(२)
तरल नीर
फौलाद सी चट्टानें 
श्रृंगार मेरा
(३)...
 
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शुभारम्भ - कश्मीर यात्रा का  

( Travel to Paradise - Kashmir.. 1 ) 

लीजिये आपके सामने प्रस्तुत है इस कश्मीर यात्रा का प्रथम भाग ।
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दोहे  

"छाया का उपहार"  

A Gulmohar Tree in Full Bloom on a Railway Platform!
झुलस रहा था बदन जब, दुनिया थी बेहाल।
गुलमोहर तब हो गया, गरमी खाकर लाल।।
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जितनी गरमी पड़ रही, उतना निखरा रूप।
खुश होता है गुलमुहर, खा कर निखरी धूप।।
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सड़क किनारे है खड़ा, केसरिया को धार।
सब लोगों को बाँटता, छाया का उपहार।।
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गरम हवाएँ पी रहा, खुश हो करके सन्त।
जेठ मास में आ गया, मानो पुनः बसन्त।।
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दुनियाभर को दे रहा, गुलमोहर उपदेश।
खुश हो करके मानिए, कुदरत का आदेश।।
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सुख-दुख दोनों में रहो, हरदम एक समान।
जैसे सुख-दुख झेलता, निर्धन श्रमिक-किसान।।
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बीज धरा में डालकर, कर लेता सन्तोष।
धरती के आगोश में, बढ़ता जाता कोष।।
Gulmohar Tree at Chiplun Railway Station
उच्चारण पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

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