मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
खिल रही कली कली महक रही
गली गली चमन भी है खिला खिला
फ़िजा भी है महक रही।
दिल से दिल को जोड़ दो सुरीली तान छेड़ दो
प्रेम से गले मिलो हर जुबां ये कह रही...
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अज़ीज़ों से गुज़ारिश
चुरा कर दिल परेशां हैं यहां रक्खें वहां रक्खें
हमीं से पूछ लेते हम बता देते कहां रक्खें
मनाएं जश्न अपनी कामयाबी का मगर पहले
ज़मीं पर पांव रख लें तब नज़र में आस्मां रक्खें...
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भट्ट ब्राह्मण कैसे
यह आलेख प्रमोद ब्रम्हभट्ट जी नें इस ब्लॉग में प्रकाशित आलेख 'चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा' की टिप्पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्यात्मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत है टिप्पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में ...
आरंभ Aarambha पर संजीव तिवारी
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मैं वैसी लहर बन जाती हूं
जो तटों से टकराकर
समुद्र में लौटना नहीं चाहती
जैसे
इतने ही जीवन की ख्वाहिश हो...
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1.
हमने माना
पानी नहीं बहाना
तुम भी मानो।
2.
छेड़ोगो तुम
अगर प्रकृति को
तो भुगतोगे।
3.
सूखा ही सूखा
क्यों है चारों ओर
सोचो तो सही।
4...
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ना जाने क्या हुआ
सबकी प्यारी सबकी दुलारी,
कल तक तो मैं एक बेटी थी
आज न जाने क्या हुआ,
मैं बहु बनना सीख गई
हर गलती मेरी सच्ची थी,
कल तक तो मैं एक बच्ची थी
आज न जाने क्या हुआ,
मैं बड़ी बनना सीख गई...
भारतीय नारी पर
neelam Mahendra
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कहाँ गये मन के कोमल भाव
कहाँ गये मन के कोमल भाव!
वृद्धावस्था जानकर मेरी,
शायद करते हैं मुझसे दुराव...
कहाँ गये...।
मैं अब भी दुखियों के मन को,
अच्छी बातों से बहलाता हूँ।
उनके टीसते घावों को,
अपने हाथों से सहलाता हूँ।
पर लगता है कर रहा हूँ अभिनय,
नहीं मन से हो पाता जुड़ाव ...
Jayanti Prasad Sharma
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अलफ़ाज़
मशरूफ था मैं उसे अपने अल्फ़ाज बनाने में
सँवार ना पाया लफ्ज़ मगर उसके लिए
किराने से बेकरार थे शब्द जो मेरे
लब उसके छू जाने के लिए ...
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ज़िंदगी को मुस्कुराना आ गया
प्यार में दिल को लुभाना आ गया
आज फिर मौसम सुहाना आ गया ...
तुम हमें जो मिल गये दुनिया मिली
आज नैनों को लजाना आ गया ...
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बात हमसे छुपा नहीं सकते
दोस्ती तुम निभा नही सकते ।
आग दिल की बुझा नहीं सकते ।।
बेवफा लोग हैं मेरी किस्मत ।
दर्दे मंजर दिखा नही सकते...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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नवगीत संग्रह
'रिश्ते बने रहें
कवि योगेन्द्र वर्मा व्योम -
एक अवलोकन माहेश्वर तिवारी की नज़र में
जयकृष्ण राय तुषार
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कुत्ते के बच्चे को कौन अगोर सकता है
दोस्तों ,
इस पोस्ट की भाषा के लिए
कृपया मुझे क्षमा करेंगे .
कुत्ता पाला है कभी ?
या
कभी कुत्तों को देखा है...
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दोहागीत "रेबड़ी, बाँट रही सरकार"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
आयोजन के नाम पर, जो धन रहे डकार।
उनको ही अब रेबड़ी, बाँट रही सरकार।।
कदम-कदम पर दे रहे, धोखा बनकर मीत।
लिखते झूठे गीत हैं, करते झूठी प्रीत।।
मिलते हैं प्रत्यक्ष जब, जतलाते हैं प्यार।
लेकिन वही परोक्ष में, करते प्रबल प्रहार।।
चन्दा लेकर पालते, खुद अपना परिवार।
उनको ही अब रेबड़ी, बाँट रही सरकार।१...
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