मित्रों
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
प्यास वो दिल की बुझाने कभी.....
मुक्तक और रुबाइयाँ !
गैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं
आप कहते हैं जो ऐसा तो बजा कहते हैं
वाकई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं
ना वफा कहते हैं जिसको ना जफा कहते हैं
हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश
हम तो इन्सान को दुनिया का खुदा कहते हैं।
-फिराक गोरखपुरी
Sanjay Kumar Garg
--
मुक्त-मुक्तक : 828 -
अजगर बड़ा ॥
एक चूहे के लिए छोटा सा भी अजगर बड़ा ॥
ज्यों किसी हाथी को भी हो शेर-ए-बब्बर बड़ा ॥
ख़ूब सुन-पढ़ के भी जो हमने कभी माना नहीं ,
इश्क़ में पड़कर वो जाना , है ये गारतगर बड़ा ॥
--
--
--
कहो कृष्ण !!!
माना कृष्ण जो भी होता है
वो अच्छे के लिए होता है
पर जब होता है तब तो
अच्छा कुछ भी नहीं दिखता...
--
जो आदमी को,
इनसान बना सके...
एक धर्म था वैदिक धर्म
एक जाति थी मानव जाति,
एक भाषा थी जिस में वेद रचे,
एक शिक्षा थी, वैदिक शिक्षा,
एक लोक था भूलोक....
नाम के लिये, आज धर्म कई हैं,
जातियों की तो गिनती नहीं हैं...
--
दिल की बात ...
चले जाते मगर पहले बता देते तो अच्छा था
रुसूमे-तर्के-दिलदारी निभा देते तो अच्छा था
हुई गर आपसे वादा-फ़रामोशी शरारत में कोई
मुमकिन बहाना भी बना देते तो अच्छा था...
--
--
--
--
--
--
बिजली संकट चल रहा था |पत्नी कई दिनी से जिद कर रही थी | इनवर्टर खरीद लाओ |
लेकिन ठंडी सिकुड़ी जेब के कारण हर माह मिलाने वाले वेतन के दौर में भी मैं सोच कर रह जाता |एक दिन पत्नी मुझसे से कहा-‘’ बाबूजी के लिए हर माह सात-आठ रुपये की दवाएं तो आती होगीं |’’‘’हाँ क्यों नहीं |’’
‘यहाँ कि दुकानों में नकली दवाएं तो मिलाती होंगी |’’
‘’ हाँ...क्यों नहीं वह तो पूरे देश में बिक रहीं हैं | मगर यह सब क्यों पूंछ रही हो ?’’
‘’ मैं सोच रही थी .. इनवर्टर किस्तों में उठा लेते और बाबूजी के लिए उतनी नकाक्ली दवाएं ला दिया करते उनसे जो पैसे बचते उससे इनवर्टर की क़िस्त जमा हो जाती और बाबू जी को हर माह दवा मिलाने की सांत्वना रहती |हमें इनवर्टर पाने की ख़ुशी ....|’
--
--
--
बस एक किनारा
हर बात ही उनको एक लगे ,बस एक किनारा ताक रहे ,
जब खुद भी सफर कर लौट हैँ ,क्यूँ हैराँ हैँ आवाक रहे...
--
अकविता
"महाप्रयाण"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
...वह चलता जाता है,
और चलता जाता है,
भवसागर से
अधूरी प्यास लिए
दुनिया से चला जाता है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।