जय माँ हाटेश्वरी...
आज की रविवारीय चर्चा में आप का स्वागत है...
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे
अब पेश है मेरी पसंद के कुछ लिंक...
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दूभर हो जाता है जीना,
तन से बहता बहुत पसीना,
शीतल छाया में सुस्ताने,
पथिक तुम्हारे नीचे आता।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अमलतास खिलता-मुस्काता।।
पर
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस तरफ़ मौज उस तरफ़ साहिल
लुट गया आज नाख़ुदा मेरा
बदगुमानी तबाह कर देगी
मानिए आप मश्वरा मेरा
पर
Suresh Swapnil
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‘वह दो वर्ष भारत से चला गया था, अपने पिता की मृत्यु के बाद. वहीं बस गया. अब लौटा है. वह भी सिर्फ घर को बेचने के लिए.’
उसकी बात सुन मुझे थक्का लगा. मुझे लगा कि मेरे हाथ कांप रहे थे. मैंने सहमी आवाज़ में पूछा, ‘उसके पिता की मृत्यु कैसे हुई? कोई जानकारी है तुम्हारे पास?’
‘उसके पिता पुलिस अधिकारी थे, कुछ शक्तिशाली लोगों से उनकी शत्रुता हो गयी थी. उन्हीं लोगों ने उनकी हत्या कर दी. बहुत ही निर्मम हत्या थी, उन्हें पिघली हुई
पर
i b arora
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यहां दो अलग कानून है , मुसलमान चार चार शादिया कर सकता है पर हिन्दू दूसरी करे तो उसे जेल में डाल दिया जायेगा जबकि
एक से ज्यादा शादी दोनों के लिया अवैध होना चाहिए , ये एक ऐसा देश है जहां मेजोरिटी को नेता हमेशा से इग्नोर करते आये है पर माइनॉरिटी को खुश करने के लिए किसी
भी हद तक गए है , उदहारण के लिए आप शाहबानो केस ले सकते है, शाहबानो केस में जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला सही ठहराया तब तात्कालिक सरकार ने जमा
मस्जिद के सही इमाम के अनुरुप संविधान बदल दिया |
कशमीरी पंडितो पर क्या कोई बहस इस कांग्रेस सरकार ने आज तक की ? क्या उत्तर प्रदेश में धर्म आधारित आरक्षण और कैश स्कीम नहीं है
पर
Deepak Chaubey
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एक बड़ा सवाल यह भी है कि हम कैसे बच्चे बड़े कर रहे हैं ? बाहुबल और रसूख के दम पर दुनिया को अपने पैरों तले रखने की सोच वाले बच्चों में संवेदनशीलता कहाँ
से आएगी ? महंगी गाड़ियों और बन्दूक को साथी बनाने वाली इस नई पीढ़ी की पौध में मानवीय भाव बचेंगें भी तो कैसे ? जब रसूख का नशा इन घरों की ही नस-नस में
बहत हो | नतीजतन यही मद इन बच्चों के के भी सर चढ़कर बोलता है, तो यह समझना मुश्किल कहाँ कि ये किसी इंसान के जीवन मोल समझ ही नहीं सकते |
पर
डॉ. मोनिका शर्मा
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गुमसुम चुप-चुप कहती मन में
उन्हीं कणों के वाहक तुम भी
उन्हीं कणों की वाहक मैं भी
जिसे तलाशो अंतरिक्ष में
नींद वहीँ पर, चैन वहीँ
और वहीँ पर तेरा साकी, तेरा सांप
रात नहीं वो, बिना स्वप्न जो बीत गयी
कह देना उस साकी से तुम
पर
निहार रंजन
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पर
डॉ टी एस दराल
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जब जीवन ने बहुत रुलाया
कदम - कदम पे अड़चनों ने सताया
तब जाकर कहीं अकल आया
और ऑखों के द्वार पर लगा हुआ
स्याह पर्दा हट पाया।
पर
Sanjay kumar maurya .
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कहीं बच्चों के खिलौनों सी हो
मासूम छुवन .......
तपती दुपहरी में अल्हण सी थिरक
झूमें लरजते बादलों की धड़कन
बादलों में खिले न खिले इंद्रधनुष
मन में कहीं कम न पड़े ये रसरंग
छुम छन्नन्न छुम छन्नन्न ..... निवेदिता
पर
निवेदिता श्रीवास्तव
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वहीँ कहीं बेपरवाही से पड़ा
एक गुलाब का काँटा
चुभ गया बच्चे के
छोटे कोमल पांव में.
बच्चा रोया, चिल्लाया,
साथ ही वह काँटा भी रोया.
पर
Onkar
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इनसान के जानवर और जानवर के इंसानियत दिखाने का यह वाकया शहर के कांच मिल स्थित शांति निकेतन शिक्षा समिति के बालिका गृह में हुआ जहां मुरैना के पहाड़ी गांव
थाना बानमोर की नाबालिग सीमा गुर्जर को कोर्ट के आदेश पर रखा गया था सीमा प्रेम विवाह करना चाहती थी और घरवाले उसके खिलाफ थे उसके पिता कल्याण सिंह गुर्जर
और चाचा लाखन बालिकागृह पहुंचे रिजिस्टर में एंट्री के बाद बालिका गृह की कर्मचारी रजनी झा ने सीमा को बुलाया पिता-चाचा दोनों दस मिनट तक सीमा को घर चलने के
लिए समझाते रहे लेकिन जब बात नहीं बनी तो उन्होने सीमा पर हमला बोल दिया सीमा जमीन पर गिर गई और चाचा लाखन उस पर चाकु से ताबड़तोड़ वार करने लगा सीमा के चीखने
की आवाज सुनकर बालिकागृह के साथ ही बने वृद्ध्आश्रम से ६५ वर्षीय बुजुर्ग प्रेमबाबू शिवहरे भागकर आए और लाखन को पीछे से पकड़ लिया छूटने के लिए हमलावर ने उनके
पेट पर चाकू से वार कर दिए हमले के दौरान सीमा जहां गिरी उससे दो कदम की दूरी पर एक गाय और बछड़ा बंधा हुआ था
पर
Vivek Surange
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मैंने छुट्टी उसे नहीं दी थी...
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चौपाल म एक दिन के दफ्तर
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प्रकृति, पर्यावरण और हम ३:
आर्थिक विकास का अनर्थ
Niranjan Welankar
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सुप्रभाती दोहे-3
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जे.एन.यू विवाद से निकला प्रतिरोध -
संभावनायें और सीमायें
Randhir Singh Suman
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गीत
"जमा न ज्यादा दाम करें"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पहले काम तमाम करें।
फिर थोड़ा आराम करें।।
आदम-हव्वा की बस्ती में,
जीवन के हैं ढंग निराले।
माना सबकुछ है दुनिया में,
पर न मिलेगा बैठे-ठाले।
नश्वर रूप सलोना पाकर,
काहे का अभिमान करें।
पहले काम तमाम करें।
फिर थोड़ा आराम करें...
उच्चारण पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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