जय माँ हाटेश्वरी....
सफलता भी फीकी लगती है,
यदि कोई बधाई देने वाला नहीं हो।
विफलता भी सुंदर लगती है,
जब आपके साथ कोई अपना खड़ा हो।
तुम पानी जैसे बनो,
जो अपना रास्ता खुद बनाता है।
पत्थर जैसे ना बनो,
जो दूसरों का रास्ता भी रोक लेता है।
जिसका जैसा " चरित्र " होता है,
उसका वैसा ही " मित्र " होता है।
अब देखिये आज की रविवारीय चर्चा में मेरी पसंद के कुछ चुने हुए लिंक...
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विविध दोहे "वीरों का बलिदान"
कितने ही दल हैं यहाँ, एक कुटुम से युक्त।
होते बारम्बार हैं, नेता वही नियुक्त।।
देश भक्ति का हो रहा, पग-पग पर अवसान।
भगत सिंह को आज भी, नहीं मिला है मान।
याद हमेशा कीजिए, वीरों का बलिदान।
सीमाओं पर देश की, देते जान जवान।
पर
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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प्रेम प्रीत की बात करते, थकते नही व्याख्यान में
जाति धर्म की आड में, व्यवस्था को ही निगल रहा
खो गयी शर्मो हया , सूख गया आँखो का पानी
देख कर सुन्दरी, सुरा, आचरण भी फिसल रहा
पर
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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बंदिश नहीं है कोई ग़ज़लगोई पर यहां
बस हमको मुंतज़िम की अदा रोक रही है
मक़्तूल के अज़ीज़ परेशां हैं दर ब दर
सरकार क़ातिलों की सज़ा रोक रही है
पर
Suresh Swapnil
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शाम गहराने लगती है, कुछ है जो राग अपना गाने लगती है, मैं ढूँढने लगता हूँ ज़िंदगी यहाँ-वहाँ, वह लावारिस, ललचाई निगाहों से - मुझे निहारने लगती है। समझ नहीं
पाता निहितार्थ उसका मैं, आँखें चुरा कर मुक्ति पाता हूँ, मुड़ कर देखता हूँ जो पीछे, आत्मग्लानि से ख़ुद को भरा पाता हूँ।
पर
Dr.Mahesh Parimal
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हम मांगते ही रह गए,परछाइयों का साथ
हर बार अक्स लेकिन , उनके बदल गए ।।
इक रोज टूट जाएगा , ये प्यार का महल
विश्वाश के कभी जो ,पत्थर पिघल गए ।।
पर
Manoj Nautiyal
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अगर इन सर्वे और हाल ही में हुए चुनावो के आधार पर बात कही जाए तो निश्चित रूप से नतीजे सरकार के पक्ष में ही जायेंगे और मोदी जी का दो साल का कार्य-काल संतोषजनक
ही कहलायेगा । स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं से एक नयी आशा जगी है और इस तरह की योजनाओं में रोजगार की सम्भावनाएं भी दिखती है जिससे और युवाओं
में एक जोश आया है। जनधन योजना , मुद्रा बैंक , प्रधानमंत्री फसल विमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार और स्वच्छता अभियान आदि एक अच्छी शुरुआत है ।
पर
Deepak Chaubey
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अंधेरे में भी मुझे ताकती रहती हैं चिडि़यां
एक द्वीप मेरे भीतर चिडि़यों का
गाता रहता है गीत उजालों के:
काफी पहले विदा हो गया मेरा घर
नारीयल और केलों के पेड़ो के साथ
सपनों में देखती हूं खिली हुई दोपहर ने
गढ़ दिया है एक स्वच्छंद द्वीप
पर
विजय गौड़
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कितने ही दल हैं यहाँ, एक कुटुम से युक्त।
होते बारम्बार हैं, नेता वही नियुक्त।।
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समालोचन पर arun dev
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चाँद कहता है मुझसे
आदमी क्या अनोखा जीव है
उलझन खुद पैदा करता है
फिर न सोता है,
और मुझसे बाते करता है रात भर...
aashaye पर garima
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गर सोच में तेरी पाकीज़गी है
इबादत सी तेरी मुहब्बत लगी है
मेरी बुतपरस्ती का जो नाम दे दो
मैं क़ाफ़िर नहीं ,वो मेरी बन्दगी है...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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शीश झुका कर ज्यों रोये हैं
देवदार के पेड़
बादल के घर ताक-झाँक
करने की उनको डाँट पड़ी है
भरी हुई पानी की मटकी
सर से टकरा फूट पड़ी है
सूरज भी तो क्षुब्ध हुआ है
उसका रस्ता रुद्ध हुआ है
दिन भर चिंता में खोये हैं
देवदार के पेड़...
मानसी पर Manoshi Chatterjee
मानोशी चटर्जी
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दूसरों से शिक्षा लें भूली-बिसरी यादें पर
राजेंद्र कुमार
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२८ मई का दिन आज़ादी के परवानों के नाम
बुरा भला पर शिवम् मिश्रा
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मोहब्बत और कुछ नहीं ....
एक रोज़
चखा था वर्जित फल का स्वाद
उस दिन
पेड़ से झड़ी सुनहरी पत्तियाें ने
सजाया था अनोखा बिस्तर
चांद पलकें झपकाकर देख रहा था
रूप-अरूप पर रश्मि शर्मा
आज की चर्चा बस यहीं तक...धन्यवाद।
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दूसरों से शिक्षा लें भूली-बिसरी यादें पर
राजेंद्र कुमार
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२८ मई का दिन आज़ादी के परवानों के नाम
बुरा भला पर शिवम् मिश्रा
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मोहब्बत और कुछ नहीं ....
एक रोज़
चखा था वर्जित फल का स्वाद
उस दिन
पेड़ से झड़ी सुनहरी पत्तियाें ने
सजाया था अनोखा बिस्तर
चांद पलकें झपकाकर देख रहा था
रूप-अरूप पर रश्मि शर्मा
आज की चर्चा बस यहीं तक...धन्यवाद।
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