फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, जून 06, 2016

"पेड़ कटा-अतिक्रमण हटा" (चर्चा अंक-2365)

मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

--

कटा पेड़ 

पर्यावरण दिवस पर विशेष 
पेड़ है कटा अतिक्रमण हटा बेघर पंछी ! 
क्रूर मानव हृदयहीन सोच पंछी हैरान... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
--
--

मुक्त-ग़ज़ल : 189 -  

उसे कैसे मैं आइसक्रीम कह दूँ ? 

सबब कुछ भी नहीं जब , किसलिए फिर बेवजह बोलूँ ?  
तुम्हीं बतलाओ कैसे हार को अपनी फ़तह बोलूँ... 
--
--

पर्यावरण दिवस पर 

फैलते कंक्रीट के जंगल ढलती शाम में जब सूर्य देवता धीरे धीरे पश्चिम की ओर प्रस्थान किया करते थे तब नीतू का मन अपने फ्लैट में घबराने लगता । वह अपने बेटे के साथ अपने फ्लैट के सामने वाले पार्क में टहलने आ जाया करती थी । वहाँ खुली हवा में घूमना उसे बहुत अच्छा लगता था , 
और वह ठीक भी था... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
--

स्वभाव का विरूपण 

अच्छाई विरूपता है और बुराई व्यक्ति का मूल स्वाभाव। अच्छाई सिखाई जाती है और बुराई जन्म से व्यक्ति में विद्यमान होती है। स्वाभाव से हर व्यक्ति उद्दण्ड होता है किन्तु विनम्रता ग्रहण या अनुकरण करने की विषय-वस्तु होती है।
विरूपता सीखी जाती है। वास्तव में किसी भी शिशु के व्यवहारिक विरूपण की प्रक्रिया उसके जन्म के समय से ही प्रारम्भ हो जाती है। परिवार के सभी सदस्य विरुपक होते हैं। सबका सामूहिक उद्देश्य होता है कि कैसे शिशु का आचरण मर्यादित हो,व्यवहारिक हो और बोधगम्य हो...ये सभी तत्त्व विरुपक तत्व हैं जिनको ग्रहण किया या कराया जाता है... 
वंदे मातरम् पर abhishek shukla 
--

मनचाही सन्तान 

मनचाही सन्तान के लिये हिन्दू शास्त्रों में अनेक उपायों का वर्णन है । जिससे लगभग सटीक परिणाम निकलते हैं । आप भी इन्हें आजमा सकते हैं । क्योंकि इनमें कोई परेशानी नहीं है ।
यज्ञार्थात कर्मोण्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः । 
अर्थात यज्ञ के लिए ही कर्म होना चाहिए... 
rajeev kumar Kulshrestha 
--
--

सूरज नासपिटा  

(चोका) 

सूरज पीला  
पूरब से निकला  
पूरे रौब से  
गगन पे जा बैठा,  
गोल घूमता  
सूरज नासपिटा  
आग बबूला  
क्रोधित हो घूरता... 
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम 
--

जौहर क़ीमती तक आ गये 

नेकियाँ थीं ऑप्शन फिर भी बदी तक आ गये 
सामने दर्या था और तुम तिश्नगी तक आ गये 
आज के उश्शाक़ सारे शोख़ियों पर हो सवार 
जोश में तो थे चले पर बुज़्दिली तक आ गये...  
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
--

तमंचे पर डिस्को 

वक्त का जालीदार बिछौना है ज़िन्दगी 
जर्रे जर्रे से रेत सी फिसलती मौत के स्पंदन 
ख़ारिज करने से खारिज नहीं होते... 
vandana gupta 
--
--

कई बेगुनाह खून , चिरागों का हो गया। 

वो दूर जाके चाँद, सितारों सा हो गया।
मैं काँच सा टूटा तो, हजारों सा हो गया।

हालांकि दरम्यां में बहुत, फासला न था,
दरिया सी जिंदगी के, किनारों सा हो गया... 
अभिव्यक्ति मेरी पर मनीष प्रताप 
--
--
देश की ज्यादातर पहाडि़यों में कहीं न कहीं शिव का कोई स्थान मिल जाएगा, लेकिन शिव के निवास के रूप में सर्वमान्य कैलाश पर्वत के भी एक से ज्यादा प्रतिरूप पौराणिक काल से धार्मिक मान्यताओं में स्थान बनाए हुए हैं। तिब्बत में मौजूद कैलाश-मानसरोवर को सृष्टि का केंद्र कहा जाता है। वहां की यात्रा आर्थिक, शारीरिक व प्राकृतिक, हर लिहाज से दुर्गम है। उससे थोड़ा ही पहले भारतीय सीमा में पिथौरागढ़ जिले में आदि-कैलाश या छोटा कैलाश है। इसी तरह एक और कैलाश, मणिमहेश कैलाश हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में है।
मणिमहेश-कैलाश
धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है और हजारों वर्षो से श्रद्धालु इस मनोरम शैव तीर्थ की यात्रा करते आ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला के भरमौर में स्थित मणिमहेश को तरकोर्डज माउंटेन के नाम से भी पुकारा जाता है। जिसका का अर्थ है नीलमणि। कहा जाता है समुद्र तल से 18564 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश को भगवान् शिव और माँ पार्वती का निवास स्थान माना जाता है। यहां मणिमहेश नाम से एक छोटा सा पवित्र सरोवर है जो समुद्र तल से लगभग 13,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी सरोवर की पूर्व की दिशा में है वह पर्वत जिसे कैलाश कहा जाता है। मणि महेश में हर वर्ष भाद्रपद मास में कृष्णाष्टमी और राधाष्टमी को मेला लगता है... 
--

चौल राजवंश 

चौल वंश दक्षिण भारत का प्राचीन राजवंश है| इसकी चर्चा बाल्मीकि रामायण, पाणिनि की अष्टाध्ययी तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलती है| इन प्रश्नों में इस वंश को पांडव वंश की शाखा माना गया है| ये चन्द्रवंशीय राजा थे| चन्द्रवंशीय तीन भाइयों पांड्य, चोड़ (चोल) तथा चेरी के अपने अपने नाम से ये तीन वंश चले| एक दूसरी धारणा के अनुसार भारतवंशी दुष्यन्त की दूसरी पत्नी महती के दो पुत्र थे- करुरोम और द्वाद्श्व| दूसरे पुत्र द्वाद्श्व के कलिंजर, केरल, पांड्य और चोल चार पुत्र हुए| इनके नाम से इनके वंश चले| किसी समय ये दक्षिण भारत में बसे और यहीं राज्य करने लगे| इस धारणा के अनुसार भी चोल चन्द्रवंशीय क्षत्रिय ही थे... 
ज्ञान दर्पण पर Ratan singh shekhawat 
--
--

तरक़्क़ी के मा'नी 

इस तरह तो जहां में उजाला न हो 
के: शबे-तार का रंग काला न हो 
मैकदे में चला आए सैलाबे-नूर मै 
बहे इस क़दर पीने वाला न हो... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil 
--
--
--
गीत  
"पहली बारिश जून की"  
बहुत सताती थी कल तक जो,
भीषण गर्मी माह जून की।
आज इन्द्र लेकर आये हैं,
पहली बारिश मानसून की।
 
फटी पपेली-हुआ उजाला,
आसमान पर बादल छाया,
पहले आँधी चली भयंकर,
उमड़-घुमड़ फिर पानी आया,
कितनी सुखदायी लगती है,
पहली बारिश मानसून की... 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।