ईंट ईंट घर की दरकने लगी
नीव खुद-ब-खुद ही सरकने लगी
बात जब बदलने लगी शोर में
छत दरो दिवार चटकने लगी...
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मेरा वजूद बदलता दिखाई देता है
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देवलिश -भारत में एक नई भाषा की खोज!
Ravishankar Shrivastava
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क्यूँकि लाखों हैं यहाँ स्वाँग रचाने वाले.....कुँवर कुसुमेश
yashoda Agrawal
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कहानी : डर
Arun Roy
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ऊँचे-ऊँचे लोगों के अब...
आनन्द विश्वास
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तेवर
Asha Saxena
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Satish Saxena
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कोखुली चिट्ठी
haresh Kumar
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Sushil Bakliwal
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नैतिकता
*(2012 की एक रचना)*
नैतिकता का पतन इसे या कह दूँ कत्ले आम हो गया।
भ्रष्टाचार फले फूले अपनाए उसका नाम हो गया...
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आँगन का नीम
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
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कालीपद "प्रसाद"
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तेरी छत से चाँद निकलना जारी है
Naveen Mani Tripathi
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डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन'
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रमजान मुबारक!
Vineet Verma
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जेहन से एक उछला पत्थर
महेश कुशवंश
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किताबों की दुनिया -126
नीरज गोस्वामी
-- सिंगापुर यात्रा संस्मरणभाग 3.
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सरिता भाटिया
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घर मेरा है बादलों के पार ....
दिन-रात सुबह -शाम भोर -साँझ कुछ नहीं बदलते
दोनों समय का नारंगी पना.....
उजली दोपहर अँधेरी काली आधी रात हो
सब चलता रहता है अनवरत सा ....
सब कुछ वैसे ही रहता है बदलता नहीं है !
किसी के ना होने या होने से ....
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कार्टून :-कालाधन वापस लाने में मज़ा ही मज़ा है-- बालकविता"काक-चेष्टा को अपनाओ"(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रंग-रूप से लगता काला।
दिखता बिल्कुल भोला-भाला।।
जब खतरे की आहट पाता।
काँव-काँव करके चिल्लाता...
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