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शनिवार, जून 11, 2016

"जिन्दगी बहुत सुन्दर है" (चर्चा अंक-2370)

मित्रों
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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इक बूँद का अफ़साना - - 

अग्निशिखा : पर Shantanu Sanyal 
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बन्नी / विवाह-गीत  

(लोक-गीत) 

अंजुमन पर डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' 
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Sudha Chandran: 

Icon of Extra Ability 

गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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हमने चाय तो दूर, बैठने से पहले ही तोताराम को लपक लिया- देखा, कहाँ तो जिस प्रदेश में नालंदा जैसा विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हुआ करता था और आज ऐसे-ऐसे टॉपर पैदा हो रहे हैं जिन्हें उस विषय के नाम तक का शुद्ध उच्चारण करना नहीं आता जिसमें उन्हें पूरे प्रदेश में सर्वोच्च अंक मिले हैं |कला वर्ग की टॉपर वह रूबी राय पोलिटिकल साइंस को प्रोडिगल साइंस उच्चारित कर रही थी |
तोताराम तनिक भी विचलित हुए बिना बोला- मात्र एक शब्द से किसी के सारे ज्ञान का अनुमान लगाना कहाँ तक उचित हैं ?महान कवि कालिदास अपनी विद्वान पत्नी के सामने 'उष्ट्र' शब्द का गलत उच्चारण क्या कर गए, पत्नी विद्योत्तमा ने उन्हें घर से ही निकाल दिया | लोग कहते हैं-पत्नी के व्यंग्य-वचनों से प्रेरित होकर कालिदास विद्वान बन गए | अगर ऐसे ही होता तो आज तक इस देश में सब विद्वान हो गए होते | एक शब्द के उच्चारण मात्र से बच्ची की योग्यता को कम करके आँकना ठीक नहीं है... 

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हाईकू 

१-
सुख मन का 
अब आए कहँ से 
दुखी दुनिया |
२-
वीरान क्षेत्र
सुनसान सडकें
कुम्भ समाप्त |
३... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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एक ग़ज़ल : 

सपनों में लोकपाल था..... 

एक ग़ैर रवायती ग़ज़ल 
सपनों में ’लोकपाल’ था मुठ्ठी में इन्क़लाब  
’दिल्ली’ में जा के ’आप’ को क्या हो गया जनाब... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
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तीन अध्याय 

जीवन की नाट्यशाला के 
निर्गम द्वार पर खड़ी हो देख रही हूँ 
पीछे मुड़ के एक नन्ही सी बच्ची को ! 
बुलबुल सी चहकती, 
हिरनी सी कुलाँचे भरती, 
तितली सी उड़ती फिरती ! 
निर्बंध उन्मुक्त बिंदास... 
Sudhinama  पर  sadhana vaid  

दिल तो वैसे भी कब रहा अपना 

जान लो क़त्ल हो गया अपना 
नैन उससे अगर मिला अपना 
तू ही था अपना पर है ग़ैर का अब 
दिल तो वैसे भी कब रहा अपना... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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ज़िंदगी बहुत सुन्दर है 

सुनहरा आँचल सागर का चूम रहा 
गगन सूरज के चमकने से चल रहा... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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समर 

सूख रही है ज़मीं ,और शज़र हो जाये  
और भी ख्वाईश ,हासिल घर हो जाये... 
कविता-एक कोशिश पर नीलांश  
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ग़ज़ल  

"डरता हूँ...."  

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 

बड़ों की देख कर हालत, बड़ा होने से डरता हूँ
मैं इस खुदगर्ज़ दुनिया में, खड़ा होने से डरता हूँ

दिया माँ ने जनम मुझको, वो इतना प्यार करती है
मैं नन्हा दीप अच्छा हूँ, घड़ा होने से डरता हूँ... 

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