मित्रों
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इक बूँद का अफ़साना - -
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हमने चाय तो दूर, बैठने से पहले ही तोताराम को लपक लिया- देखा, कहाँ तो जिस प्रदेश में नालंदा जैसा विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हुआ करता था और आज ऐसे-ऐसे टॉपर पैदा हो रहे हैं जिन्हें उस विषय के नाम तक का शुद्ध उच्चारण करना नहीं आता जिसमें उन्हें पूरे प्रदेश में सर्वोच्च अंक मिले हैं |कला वर्ग की टॉपर वह रूबी राय पोलिटिकल साइंस को प्रोडिगल साइंस उच्चारित कर रही थी |
तोताराम तनिक भी विचलित हुए बिना बोला- मात्र एक शब्द से किसी के सारे ज्ञान का अनुमान लगाना कहाँ तक उचित हैं ?महान कवि कालिदास अपनी विद्वान पत्नी के सामने 'उष्ट्र' शब्द का गलत उच्चारण क्या कर गए, पत्नी विद्योत्तमा ने उन्हें घर से ही निकाल दिया | लोग कहते हैं-पत्नी के व्यंग्य-वचनों से प्रेरित होकर कालिदास विद्वान बन गए | अगर ऐसे ही होता तो आज तक इस देश में सब विद्वान हो गए होते | एक शब्द के उच्चारण मात्र से बच्ची की योग्यता को कम करके आँकना ठीक नहीं है...
तोताराम तनिक भी विचलित हुए बिना बोला- मात्र एक शब्द से किसी के सारे ज्ञान का अनुमान लगाना कहाँ तक उचित हैं ?महान कवि कालिदास अपनी विद्वान पत्नी के सामने 'उष्ट्र' शब्द का गलत उच्चारण क्या कर गए, पत्नी विद्योत्तमा ने उन्हें घर से ही निकाल दिया | लोग कहते हैं-पत्नी के व्यंग्य-वचनों से प्रेरित होकर कालिदास विद्वान बन गए | अगर ऐसे ही होता तो आज तक इस देश में सब विद्वान हो गए होते | एक शब्द के उच्चारण मात्र से बच्ची की योग्यता को कम करके आँकना ठीक नहीं है...
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हाईकू
१-
सुख मन का
अब आए कहँ से
दुखी दुनिया |
२-
वीरान क्षेत्र
सुनसान सडकें
कुम्भ समाप्त |
३...
सुख मन का
अब आए कहँ से
दुखी दुनिया |
२-
वीरान क्षेत्र
सुनसान सडकें
कुम्भ समाप्त |
३...
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एक ग़ज़ल :
सपनों में लोकपाल था.....
एक ग़ैर रवायती ग़ज़ल
सपनों में ’लोकपाल’ था मुठ्ठी में इन्क़लाब
’दिल्ली’ में जा के ’आप’ को क्या हो गया जनाब...
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तीन अध्याय
जीवन की नाट्यशाला के
निर्गम द्वार पर खड़ी हो देख रही हूँ
पीछे मुड़ के एक नन्ही सी बच्ची को !
बुलबुल सी चहकती,
हिरनी सी कुलाँचे भरती,
तितली सी उड़ती फिरती !
निर्बंध उन्मुक्त बिंदास...
दिल तो वैसे भी कब रहा अपना
जान लो क़त्ल हो गया अपना
नैन उससे अगर मिला अपना
तू ही था अपना पर है ग़ैर का अब
दिल तो वैसे भी कब रहा अपना...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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ग़ज़ल
"डरता हूँ...."
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बड़ों की देख कर हालत, बड़ा होने से डरता हूँ
मैं इस खुदगर्ज़ दुनिया में, खड़ा होने से डरता हूँ
दिया माँ ने जनम मुझको, वो इतना प्यार करती है
मैं नन्हा दीप अच्छा हूँ, घड़ा होने से डरता हूँ...
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