उन्मुक्त दोहे -
भाषा वाणी व्याकरण, कलमदान बेचैन।
दिल से दिल की कह रहे, जब से प्यासे नैन।।
सकते में है जिंदगी, दिखे सिसकते लोग |
भाग भगा सकते नहीं, आतंकी उद्योग || |
प्रशिक्षण की सघनता
Praveen Pandey
न दैन्यं न पलायनम्
-- प्रकृति, पर्यावरण और हम १०:कुछ कड़वे प्रश्न और कुछ कड़वे उत्तर
Niranjan Welankar
|
इस्लामाबाद।पाकिस्तान में किन्नर भी कर सकेंगे निकाह,इस्लाम ने बताया जायज
chandan bhati
|
गरीब घर चलाना जानता है
Prem Farukhabadi
|
तो, रवि रतलामी किस खेत की मूली है!
Ravishankar Shrivastava
|
जब लिखा एक पत्र
Asha Saxena
|
माया द्वन्द्वों का है खेल
Anita
|
MTCR में हैं ये 34 देश ,चीन विफल भारत सफल
SACCHAI
|
मानवधर्म
Priti Surana
|
ब्लॉग पे लगता है जैसे शायरी सोई हुई ...
Digamber Naswa
|
पत्नीजी के जन्मदिवस पर
Ghotoo
|
ग़ज़ल"मत तराजू में हमें तोला करो"(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तुम कभी तो प्यार से बोला करो।
राज़ दिल के तो कभी खोला करो।।
हम तुम्हारे वास्ते घर आये हैं,
मत तराजू में हमें तोला करो।
ज़र नहीं है पास अपने तो ज़िगर है,
चासनी में ज़हर मत घोला करो...
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।