जय माँ हाटेश्वरी...
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आज की रविवारीय चर्चा में..
आप सभी का स्वागत है....
आज 5 जून, यानि विश्व पर्यावरण दिवस है...
मन - में जिजीविषा हो पर्यावरण - बचाओ
जल - वायु स्वच्छ रखो अपना गगन - बचाओ ।
सद्भाव से जियो - तुम यह है कवच - हमारा
वाणी - मधुर हो सब की पर्यावरण - बचाओ ।
नित यज्ञ करो घर में परि - आवरण का रक्षक
इस यज्ञ - होम से तुम ओज़ोन को बचाओ ।
सत - राह पर है चलना सब सीख लें तो बेहतर
गंदी - गली से अपने- अस्तित्व को बचाओ ।
तरु हैं हमारे रक्षक रोपो 'शकुन' तुम उनको
इस - वृक्ष के कवच से अपना वतन बचाओ ।
अब देखिये मेरी पसंद के कुछ चुने हुए लिंक...
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एक साल में एक दिन, होती जय-जयकार।
पर्यावरण दिवस कहाँ, होगा फिर साकार।१।
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कंकरीट जबसे बना, जीवन का आधार।
तबसे पर्यावरण की, हुई करारी हार।२।
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पेड़ कट गये धरा के, बंजर हुई जमीन।
प्राणवायु घटने लगी, छाया हुई विलीन।३...
--पर्यावरण गीत
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बहता तन से बहुत पसीना,
जिसने सारा सुख है छीना,
गर्मी से तन-मन अकुलाता।
नभ में घन का पता न पाता।
पर
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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हिमालय भारत के लिये यह कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि अगर यह नहीं होता तो आज पूरा क्षेत्र मौसमी कहर से नहीं
बच पाता। यह मध्य एशिया से आने वाली ठण्डी हवाओं को रोक देता है, जिससे भारत कड़ाके की ठण्ड से बचा रहता है। हिमालय मानसूनी हवाओं को भी रोकता है, जिसके कारण
पूरे क्षेत्र में तमाम हिस्सों में बारिश होती है। इसकी ऊंचाई और मानसूनी हवाओं के रास्ते में स्थित होने के कारण ऐसा होता है।
हिमालय भारत के लिये लम्बे समय से उत्तर का प्रहरी रहा है। यह हमारे देश के लिये एक प्रकार की नैचुरल बाउन्ड्री है। हिमालय के दर्रे काफी ऊंचे हैं
पर
Kavita Rawat
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राजा बन गया था अंग देश का दुर्योधन की मित्रता चाहे जितनी भारी हो पर सम्मान का जीवन तो यहीं से शुरु होता है! कर्ण बैठा था एक पेड़ की छाया में कुछ सुस्ताते
हुए किसी गहन चिंतन में निमग्न युद्ध अवश्यम्भावी है अब लड़ना ही होगा अर्जुन को अब कौन कहेगा ----- तुम नहीं लड़ सकते अर्जुन से तुम राधेय हो, एक सारथी के पुत्र,
पर
Dr.Mahesh Parimal
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दिल्लगी ज़ख़्म ही न दे जाए
खेल मत खेलिए क़ज़ीबों का
ईद पर भी गले नहीं मिलते
हाल यह है मिरे हबीबों का
पर
Suresh Swapnil
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पर
Priti Surana
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वाण गाँव से मध्यमहेश्वर केदार यात्रा
SANDEEP PANWAR
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हम भाषा मज़हब में बट गये.....
मनजीत कौर
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal
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उन्मादी और हिंसक है हम
हम उन्मादी है। मथुरा में यही दिखा। एक सनकी और उन्मादी के पीछे हम भी उन्मादी होकर खड़े हो गए। कभी कोई आशाराम, कभी कोई नित्यानद, कभी कोई रामपाल, कभी कोई रामदेव, कभी कोई केजरीवाल, कभी कोई मोदी...के पीछे हम उन्मादित होकर चल देते है। अपनी आँख, कान बंद रखते है। हमारे उन्माद को वे हवा देते है। कभी राष्ट्रबाद के नाम पे, कभी सेकुलरिज्म के नाम पे, कभी धर्म के नाम पे...और मथुरा में एक सनकी सुभाष चंद्र बोस के नाम पे हमें अफीम दी और हम जान ले लिए और जान दे दिए...
चौथाखंभा पर ARUN SATHI
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पुराने ख़त
वे ख़त जो तुमने कभी लिखे थे,
मैंने पढ़कर रद्दी में डाल दिए थे,
कितना नासमझ था मैं,
ताड़ नहीं पाया प्रगति की रफ़्तार,
समझ नहीं पाया कि
धीरे-धीरे बंद हो जाएंगे हथलिखे ख़त.
जुड़े रहेंगे लोग हर समय, फ़ोन से,
इन्टरनेट से, देख सकेंगे एक दूसरे को,
कर सकेंगे चैटिंग.
अब तुम्हारे ख़त बंद हो गए हैं...
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व्यंग- सात जन्मों तक यहीं पति मिलें!!
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सुप्रभाती दोहे
आनत लतिका गुच्छ से, छनकर आती घूप
ज्यों पातें हैं डोलतीं, छाँह बदलती रूप
खग मानस अरु पौध को, खुशियाँ बाँटे नित्य
कर ले मेघ लाख जतन, चमकेगा आदित्य
दुग्ध दन्त की ओट से, आई है मुस्कान
प्राची ने झट रच दिया, लाली भरा विहान...
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु
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