मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गरमी में ठण्डक पहुँचाता,
मौसम नैनीताल का!
मस्त नज़ारा मन बहलाता,
माल-रोड के माल का...
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पिता
१)
रक्षा सूत्र सी
लिपटी इर्द गिर्द
सीख पिता की ।
२)
पिता है वृक्ष
सहते धूप-वर्षा
खिलेंगे फूल ।
३)
झलके पापा
बच्चों को समझाते
शब्दों में मेरे ।
sunita agarwal
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हमारे बाबूजी
पितृ दिवस पर सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई
विश्वास का आधार – बाबूजी
अनुशासन की पुकार – बाबूजी
सह्माती फटकार – बाबूजी
प्यार की फुहार – बाबूजी...
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पितृ दिवस पर !
बहुत याद आते हो तुम रोने को जब दिल करता है ,
पापा ऐसा क्यों लगता है ,साथ हमारे आज भी हो।
अपनी छाया में रखते थे ,अलग कभी भी नहीं किया ,
साया बन कर साथ चले थे ,साथ हमारे आज भी हो...
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मन-आँखों का नाता
(सेदोका)
1.
गहरा नाता
मन-आँखों ने जोड़ा
जाने दूजे की भाषा,
मन जो सोचे -
अँखियों में झलके
कहे संपूर्ण गाथा !
2. ...
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रेलवे का ऑलराइट तन्त्र
कभी आपने ध्यान दिया है कि जब भी कोई ट्रेन किसी स्टेशन, गेट आदि से निकलती है तो ड्राइवर, गार्ड, स्टेशन मास्टर व गेटमैन आदि हरे रंग की झण्डी लहराते हैं। इसे ऑलराइट संकेत कहते हैं और इसका अर्थ है कि सब ठीक है। देखने में तो यह अत्यन्त साधारण सा कार्य लगता है, परन्तु इस पर रेलवे की सुरक्षा का पूरा आधार अवस्थित है...
Praveen Pandey
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क्या आप डाकघर से एक पोस्ट-कार्ड खरीद सकते हैं ?
विडंबना देखिए कि सात-सात रुपये का घाटा एक पोस्टकार्ड पर सह कर जिस गरीब मानुष के लिए इस सेवा की कीमत नहीं बढ़ाई जा रही, वही यदि एक पोस्ट कार्ड लेने जाएगा तो क्या डाकघर वाले उसे उपलब्ध करवाएंगे ? कहाँ से लाएगा वह या डाक-खाने वाले पचास पैसे का सिक्का ? अपने देश में शायद ही ऐसा कोई इंसान होगा जिसका साबका डाकघर यानि पोस्ट-आफिस से ना पड़ा हो। अठाहरवीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा रेल की तरह अपने कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए डाक सेवा की शुरुआत की गयी थी। आज से कुछ वर्षों पहले तक यह एकमात्र सस्ता व सुलभ जरिया था, लोगों को आपस में जोड़े रखने, दूर-दराज बैठे सगे-संबंधियों की कुशलक्षेम पाने, जानने का, उन्हें आर्थिक मदद पहुंचाने, पाने का। सबसे अच्छी बात यह थी कि नागरिकों का इस सरकारी संस्थान के कर्मचारियों की कर्मठता और ईमानदारी पर अटूट विश्वास था। होना भी चाहिए था क्योंकि लोग देखते जो थे कि, चाहे आंधी हो, बरसात हो, झुलसा देने वाली गर्मी हो, उनके पत्र, जरुरी कागजात, मनी-आर्डर, राखी, बधाई संदेश, निमंत्रण पत्र इत्यादि को बड़ी साज-संभार से डाकिया उनके हाथों तक पहुंचा कर जाता था। गांव-देहात के अनपढ़ पुरुष-महिलाओं के लिए डाक-बाबू द्वारा पत्र बांचना और लिखना आम बात होती थी। ऐसी जगहों में डाक्टर के बाद डाकिया ही ज्यादा सम्मान पाता था...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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चूमते पंखुरी चुभ जाएं हैं कांटे तुमको,
ऐसे फूलों से गुलदान सजाते क्यों हो
रोज़ हालात रंजिश के बनाते क्यों हो ....?
सुलह करने मुंसिफ तलक जाते क्यों हो .?
चूमते पंखुरी चुभ जाएं हैं कांटे तुमको
ऐसे फूलों से गुलदान सजाते क्यों हो...
मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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वह सोचती
खिड़की के भीतर झांकती
फिर सोच में डूबी डूबी सी
धीरे से कदम पीछे हटाती
यह मेरा नहीं है न कभी होगा
कमरा है भैया का उसी का रहेगा |
फिर सोच में डूबी डूबी सी
धीरे से कदम पीछे हटाती
यह मेरा नहीं है न कभी होगा
कमरा है भैया का उसी का रहेगा |
Akanksha पर Asha Saxena
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लौट सके मुस्कान जी
चाहत है ऐसी दुनिया की सब हो एक समान जी
कब समझेंगे इक दूजे को अपने सा इन्सान जी ...
मनोरमा पर श्यामल सुमन
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वो पिता हमारे कहाँ गये
गोद में जिनकी खेले-कूदे छाँव में
जिनके सोये-जागे ममता में जिनके
बड़े हुये वो पिता हमारे कहाँ गये....
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