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चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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जीवन की यह अजब पहेली
Asha Joglekar
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अमेरिका की कांग्रेस में मोदी जी का भाषण
को लेकर कई प्रकार की बातें की जा रही हैं. उनका भाषण सार्थक था या नहीं यह एक अलग बहस का मुद्दा है, मैं जिस बात पार आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ वह तथाकथित उदारवादियों (लिबरल्स) की प्रतिक्रिया. तथाकथित कहने का कारण है. मेरे मानने में अगर कोई व्यक्ति सच में उदारवादी है तो वह हर समय और हर स्थिति में उदारवादी होगा. ऐसा व्यवहार हमारे उदारवादियों का नहीं होता. हमारे उदारवादी, चाहे वो वामपंथी हों या कोई और पंथी, स्थिति और समय अनुसार ही उदारवादी होते हैं. अब इन लिबरल्स की समस्या यह है कि...
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"बिल्ले खाते हैं हलवा"(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')सब्जी, चावल और गेँहू की, सिमट रही खेती सारी। शस्यश्यामला धरती पर, उग रहे भवन भारी-भारी।। बाग आम के-पेड़ नीम के आँगन से कटते जाते हैं, जीवन देने वाले वन भी, दिन-प्रतिदिन घटते जाते है, लगी फूलने आज वतन में, अस्त्र-शस्त्र की फुलवारी उच्चारण |
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