मित्रों
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
परमात्मा से मिलाने का धंधा
एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा । एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ ।
उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा - स्वामी, एक प्रश्न 20 वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूँ । कोई उत्तर नहीं मिलता । क्या आप मुझे उत्तर देंगे ?
स्वामी ने कहा - निश्चित दूंगा ।
संन्यासी ने राजा से कहा - नहीं, आज तुम खाली नहीं लौटोगे । पूछो ।
उस राजा ने कहा - मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूँ । ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना । मैं सीधा मिलना चाहता हूँ ।
संन्यासी ने कहा - अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर...
उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा - स्वामी, एक प्रश्न 20 वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूँ । कोई उत्तर नहीं मिलता । क्या आप मुझे उत्तर देंगे ?
स्वामी ने कहा - निश्चित दूंगा ।
संन्यासी ने राजा से कहा - नहीं, आज तुम खाली नहीं लौटोगे । पूछो ।
उस राजा ने कहा - मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूँ । ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना । मैं सीधा मिलना चाहता हूँ ।
संन्यासी ने कहा - अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर...
rajeev kumar Kulshrestha
--
ग़ज़ल
"इलज़ाम के पत्थर"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भले हों नाम के पत्थर
मगर हैं काम के पत्थर
समन्दर में भी तिरते हैं
अगर हों राम के पत्थर
बढ़े जब पाप धरती पर
गिरे शिवधाम के पत्थर...
--
याद आएंगे दोस्त।
कल कालेज का आख़िरी दिन था आज। पांच साल कब बीते कुछ पता ही नहीं चला। मम्मी बिना मैं एक दिन भी नहीं रह पाता था लेकिन मेरठ में पांच साल बिता गए , बिना रोये, कुछ पता ही नहीं चला। पता भी कैसे चलता मौसी जो पास में थीं। मौसा दीदी, हिमानी सब तो थे..घर की याद भी कैसे आती? वीरू भइया और मैं ....पांच साल पहले घर से निकले थे जिस मकसद के लिए वो पूरा हो गया...
--
जहाँ तुम कहोगे वहीं मैं चलूँगी
जिधर पग धरोगे उधर पग धरूँगी !
जो चाहोगे मैं खुद को छोटा करूँगी
मैं पैरों के नीचे समा के रहूँगी...
--
--
एक गीत -
मछली तो चारा खायेगी
कोई भी तालाब बदल दो मछली तो चारा खायेगी |
और हमारे हिस्से राजन ! जलकुम्भी ही रह जायेगी...
जयकृष्ण राय तुषार
--
--
--
यक-ब-यक जागके, खुद से ही लिपट जाना
सरकती रात.. सुबह तलक जगता हूँ मैं -
तस्सवुर में हर बार तुमको लजाते देखा !!
वही लम्हा तुम्हारी हसरतें करता है बयाँ
इश्क में भीग के बैठी हो – लेके अंदाज़ नया
कभी आँखों पे आकाश उठा लेती हो -
कभी तारों को उन आँखों में समाते देखा...
मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल
--
प्रदूषण, धूल-मिट्टी, तनाव, धूप और दौड़भाग न जाने कितनी चीजों का सामना हमारी त्वचा को प्रतिदिन करना पड़ता है। ऐसे में समय रहते उचित देखभाल न करने से उम्र के पहले ही चेहरे पर झुर्रियों पड़ जाती हैं। चिरयुवा बने रहने तथा सौंदर्य कायम रखने में सबसे बड़ी बाधा हैं झुर्रियों की समस्या। बढ़ती उम्र के निशान सबसे पहले चहरे पर ही नजर आते हैं। यदि त्वचा की उचित तरीके से देखभाल की जाए तो वर्षो तक चेहरा स्निग्ध व कमनीय बना रहेगा...
रोग विनाशक कारगर नुस्खे
--
--
गरीब बेचारा क्या जाने।
किसी को तोहफा देने के बारे मे।
पहले वो अपना घर तो देखे।
अपने पेट के बारे मे तो सोचे।
अपने पेट के बारे मे तो सोचे।
इसलिए गरीब का कोई दोस्त नहीं होता।
पैसे वाले उससे दूर-दूर रहते है...
पैसे वाले उससे दूर-दूर रहते है...
--
--
दो मुर्दे थे .पास –पास ही उनकी कब्रें थीं .एक नया आया था और दूसरे को आए चर पाँच दिन हो चुके थे .
नये ने पुराने मुर्दे से पूछा –“भाई ,यह जगह कैसी है ?तुमको कोई कष्ट तो नहीं है ?”
“नहीं ,इस जगह तो मौज ही मौज है ,कष्ट का नाम नहीं ,आबहवा भी अच्छी है.”...
--
तुम्हें क्या लगता है
तुम्हें क्या लगता है यूँ
हाथ झटक कर चले जाओगे
और ये रिश्ता टूट जायेगा
जो बना है
कई रिश्तों को ताक पर रख कर...
--
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
हर कीमत पर बचाने की जरूरत है
वीरेंद्र यादव
क्रांति स्वर पर
विजय राज बली माथुर
--
बढ़ती मंहगाई से जीवनयापन करना दूभर :
सरकारें मंहगाई रोकने में असफल
देश में दिनोंदिन मंहगाई बढ़ती जा रही है
जिसके कारण मध्यम वर्ग और गरीबी रेखा के नीचे आने वाले परिवारों का जीवन यापन करना मुश्किल होता जा रहा है । प्रतिदिन खानपान में उपयोग आने वाली सामगी राशन, तेल, दूध , दालें मंहगी होने के कारण आम आदमी की पहुंच से दूर होते जा रही हैं और इन चीजों के रेट बढने के कारण अन्य व्यापारी और दूसरा वर्ग जो उपभोक्ताओं को अन्य सेवाएं प्रदान करता है वह भी मंहगाई का हवाला देते अपनी सामगी और सेवाओं के दाम बढ़ा रहे हैं जिससे मंहगाई घटने की बजाय सुरसा की तरह बढ़ती ही चली जा रही है । सरकार कभी भी किन कारणों से मंहगाई बढ़ रही है उनकी और ध्यान नहीं दे रही है...
--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।