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सोमवार, जुलाई 24, 2017

"क्‍यों माना जाए तीन तलाक" (चर्चा अंक 2676)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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तलाक..तलाक..तलाक। ये तीन शब्‍द कहने मात्र से पति‍-पत्‍नी का रि‍श्‍ता खत्‍म हो जाता हैचाहे उस रि‍श्‍ते की उम्र दो महीने पुरानी हो या बीस वर्ष। इस संबध में हि‍ंदू और मुस्‍लि‍म धर्म के अनुसार स्‍थि‍ति‍ अलग है। हि‍ंदू धर्म में जहां इसे सात जन्‍मों का बंधन माना गया है वहीं मुस्‍लि‍म धर्म में यह एक अनुबंध है। यह स्‍त्री-पुरुष के बीच का करार है कि‍ अगर उनमें कि‍सी भी हाल में नि‍भ नहीं पाए तो तलाक लेकर संबध तोड़ा जा सकता है। मगर यह अधि‍कार केवल पुरुषों को है कि‍ वो चाहे तो तीन तलाक बोलकर शादी तोड़ दे। सुनने में बहुत सहज लगता है मगर इसके पीछे की पीड़़ा और डर सि‍र्फ एक औरत ही समझ सकती है। अब तक यह होता आया था,  पर अब आगे नहीं हो सकेगाइसकी उम्‍मीद नजर आने लगी है... 
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771 
कृष्णा वर्मा

शब्द कमाल
हिलें ना डुलें पर
चलते ऐसी चाल
बे हथियार
सहज कर देते
जुदा रिश्तों से प्यार... 
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मैं ..
जगह-जगह
बिताये हुये समय की
एक लम्बी
फ़ेहरिस्त बनाती गयी..
और ..
इस जोड़ -घटाव
गुणा-भाग के
हिसाब -किताब में
उम्र , खरीद-फ़रोख्त
करती हुई
चुपचाप निकलती गयी.. 
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750 

1
जल संवेदना
 अब नहीं शृंगार
प्रणय-याचना के
मैं लिखूँगा गीत जल संवेदना के
पूछते हैं रेत के टीले हवा से
खोखला संकल्प क्यों जल संचयन  का
गोद में तटबन्ध के लगता भला है
हो नदी का नीर या पानी नयन का
अब नहीं मनुहार
मधुवन यौवना के... 
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काठ की बांसुरी से... 

अनुशील पर अनुपमा पाठक 
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प्राथमिक शिक्षा और भेदभाव की नीति 

22 जुलाई 17 की पोस्ट 

कल एनडीटीवी पर प्राइम टाइम पर मप्र के शाजापुर और आगर जिले में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की पोस्टमार्टम परक रपट देखकर बहुत दुख हुआ। प्रदेश में मैंने 1990 से 1998 तक बहुत सघन रूप से राजीव गांधी शिक्षा मिशन के साथ काम करके पाठ्यक्रम, पुस्तकें लिखना, शिक्षक प्रशिक्षण और क्षमता वृद्धि का कठिन काम किया था । अविभाजित मप्र में बहुत काम करके लगा था कि अब आगे निश्चित ही शिक्षा की स्थिति में सुधार होगा, इसके बाद कई स्वैच्छिक संस्थाओं में रहा, प्राचार्य के पदों पर रहा , फंडिंग एजेंसी में रहकर शिक्षा को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं को पर्याप्त धन उपलब्ध करवाया... 
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik 
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साध्यबेला. . . 

सुबह से तीन बार पढ़ चुके ईमेल पर एक बार पुनः देवव्रत की निगाहें दौड़ने लगी थीं. लिखा था- “पापा, कल दीपक चाचा आए थे. उनसे पता चला, पिछले डेढ़ वर्ष से आपने अपने घर में एक पति-पत्नी को किराएदार के रूप में रखा हुआ है और वे दोनों आपका बहुत ख़्याल रखते हैं. आजकल समय बहुत ख़राब है पापा. ज़रा सोचिए, कोई बिना किसी स्वार्थ के एक पराए इंसान की देखभाल भला क्यों करेगा? कहीं आपने उनसे अपने पैसे या प्रॉपर्टी का ज़िक्र तो नहीं किया है? भारत में आए दिन ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं कि बुज़ुर्ग को मारकर लोग पैसा लूटकर चले गए. इसलिए ज़्यादा दिनों तक एक ही किराएदार को रखना ठीक नहीं है... 
राज भाटिय़ा 
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मर्यादाएं तोड़ना 

अक्सर तबाही की ओर ले जाता है.. 

भरपूर बारिश का इन्तजार किसान से लेकर हर इंसान और प्रकृति के हर प्राणी को रहता है. भरपूर बारिश शुभ संकेत होती है इस बात का कि खेती अच्छी होगी, हरियाली रहेगी, नदियों, तालाबों, कुओं में पानी होगा. सब तरफ खुशहाली होगी. लेकिन जब यही बारिश भरपूर की मर्यादा तोड़ बेइंतहा का दामन थाम कर बाढ़ की शक्ल अख्तियार कर लेती है, तब वह अपने साथ तबाही का मंजर लाती है. मर्यादाएं तोड़ना अक्सर तबाही की ओर ले जाता है... 
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6 टिप्‍पणियां:

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