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शनिवार, अगस्त 05, 2017

"लड़ाई अभिमान की" (चर्चा अंक 2687)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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लघुकथा  

"मेरी मुहबोली बहन"  

मैं उस समय ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ता था। 
जीवविज्ञान विषय की क्लास में 
मेरे साथ कुछ लड़कियाँ भी पढ़तीं थीं। 
परन्तु मैं बेहद शर्मीला था। 
इसी लिए कक्षाध्यापक ने मेरी सीट 
लड़कियों की बिल्कुल बगल में निश्चित कर दी थी... 
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बांध कलाई में राखी बहिना अपना प्यार जताती है 

बहिन विवाहित होकर अपना
अलग घर-संसार बसाती है।
पति-बच्चे, पारिवारिक दायित्व
दुनियादारी में उलझ जाती है।।... 
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बिखराव 

Akanksha पर Asha Saxena 
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कविवर मैथलीशरण गुप्त को 

जयंती पे नमन 

किसान (कविता) / मैथिलीशरण गुप्त 
हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है 
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है ... 
चौथाखंभा पर ARUN SATHI 
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हठीलो राजस्थान-26 

जौहर ढिग सुत आवियो, माँ बोली कर प्रीत | 
लड़णों मरणों मारणों, रजवट रुड़ी रीत ? ||१५४|| 
जौहर में जलती हुई माँ के सम्मुख जब वीर पुत्र आया
 तो वह बड़े प्रेम से बोली - 
हे पुत्र ! युद्ध में लड़ना और मरना-मारना; 
यही राजपूतों की अनोखी परम्परा है ; इसे निवाहना |
 बैरी लख घर बारणे, करवा तीखी मार | 
सुत मांगै निज मात सूं, न्हांनी सी तरवार ||१५५... 
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संस्मरण  

(वो शाम ) 

हरे भरे लहलहाते गेहूँ के खेत ,उन खेतों के बीच थोड़ी सी चौड़ी पगडंडीनुमा कच्ची सड़क जो मुझे गाँव की याद दिला रही थी | इस खुबसूरत सी जगह जिसे बंजारावाला नाम से जाना जाता है | ये जगह मेरे लिए एकदम नयी थी घर ढूढने में मुझे परेशानी न हो सोच कर अतुल जी और उनकी बहन रेखा मुझे सामने ही मोड़ पर खड़े मिले | मैं करीब डेढ़ दो साल बाद अतुल जी के परिवार से मिलने आ रही थी... 
अभिव्यंजना पर Maheshwari kaneri 
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कानपुर का हाहाकारी मुँहनोचवा !!! 

जैसे आजकल चोटी कटवा का 
सुर्रा चलायमान है 
उसी तरह 12-13 बरस पहले 
कानपुर में "मुँहनोचवा" का प्रकोप हुआ था... 
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नचिकेता- 

लघुकथा 


मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु'
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लालू नीतीश के गठबंधन को तोडने का सारा दोष सरकार पर आ रहा है और इसी तरह चोटी कटुआ से बचाने का दबाव भी सरकार पर आ रहा है. अब बताईये इसमे सरकार क्या करे? लालू नीतीश ने अपना गठबंधन भी खुद तोडा और महिलाएं भी अपना चुटिया बंधन खुद ही तोड रही हैं तो सरकार को दोष क्यों? यदि कोई चोटी कटुआ होता तो जरूर किसी ना किसी पुरूष पर भी अवश्य हाथ आजमाता. चोटी कटुआ के पास महिला पुरूष में भेदभाव करने का कोई उपाय भी नही है. अंधेरे में सोया पुरूष है या महिला....ये उसे कैसे मालूम पडेगा... 
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मेरी अंतरात्मा की आवाज में
बहुत - बहुत रूप हैं , बड़े - बड़े भेद हैंऔर जो - जो कान उसे सुन पाते हैंबेशक , उनमें भी बहुत बड़े - बड़े छेद हैं
मेरी अंतरात्मा की आवाज मेंबड़ी - बड़ी समानताएं हैं , बड़ी - बड़ी विपरितताएं हैंऔर इनके बीच मजे ले - लेकर झूलती हुईसुनने वालों की अपनी - अपनी चिंताएँ हैं... 


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ओह, फिर से जीना -  

महाश्वेता देवी 

शब्द। 
मैं नहीं जानती कि कहाँ से। एक लेखिका जो वेदना में है? शायद, इस अवस्था में पुनः जीने की इच्छा एक शरारतभरी इच्छा है। अपने नब्बेवें वर्ष से बस थोड़ी ही दूर पहुँचकर मुझे मानना पड़ेगा कि यह इच्छा एक सन्तुष्टि देती है, एक गाना है न ‘आश्चर्य के जाल से तितलियाँ पकड़ना’।इस के अतिरिक्त उस ‘नुकसान’ पर नजर दौड़ाइए जो मैं आशा से अधिक जीकर पहुँचा चुकी हूँ।अट्ठासी या सत्तासी साल की अवस्था में मैं प्रायः छायाओं में लौटते हुए आगे बढ़ती हूँ... 
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik 
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8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. इस बेहतरीन चर्चा में मुझे भी स्थान देने के लिए आभार सर....
    हार्दिक शुभकामनायें...

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन चर्चा.मेरी रचना को स्थान देने पर दिल से शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन चर्चा.मेरी रचना को स्थान देने पर दिल से शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं

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