मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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सब्जी बिकती धान से,
दाम नहीं है पास
झनकइया वन में लगा, मेला बहुत विशाल।
वियाबान के बीच में, बिकता सस्ता माल।।
यहाँ सिँघाड़े बिक रहे, गुब्बारों की धूम।
मस्ती में-उल्लास में, लोग रहे हैं घूम।।
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डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’—
हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा के अग्रगण्य पथदीप---
एक पुनरावलोकन ---
डा श्याम गुप्त...
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फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को
वो रात भर यादें छूती रहीं..
मेरे जहन के हर हिस्सों को,
सुबह तक कोशिश की सोने की..
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को ...
Dipanshu Ranjan
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कार्तिक पूर्णिमा
"बढ़ जाएगा प्यार" (राधे गोपाल)
गुरू पूर्णिमा पर सभी,
करलो आज नहान।
संकट सारे दूर हों,
कृपा करें भगवान।।
पावन दिन है जाइए,
सब नदिया के तीर ।
ईश्वर की भक्ति करो,
भर अंजुलि मैं नीर।।
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सब्र किस दर्जा काम आता है
[आज इस 'ब्लॉग' के चार वर्ष पूरे हो गए।
इन चार वर्षों में आप लोगों का जो स्नेह और सहयोग मिला,
उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार।
यूँ ही आप सभी का स्नेह और
मार्गदर्शन मिलता रहे यही चाह है।
इस मौक़े पर एक ग़ज़ल
आप सब के लिए...
Himkar Shyam
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात,
जवाब देंहटाएंवो रात भर यादें छूती रहीं..
मेरे जहन के हर हिस्सों को,
सुबह तक कोशिश की सोने की..
फिर नींद आ गई मेरी कोशिशों को ...
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को भी सम्मानित करने के लिए आभार आदरणीय मयंक जी।
सभी साथी रचनाकारों को मेरी भी हार्दिक शुभकामनाएँ।
नींद आ गई मेरी कोशिशों को ...बहुत बढ़िया
हटाएंबहुत उम्दा रचनायें
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
सभी रचनाकारों को बहुत बधाई
सुन्दर रविवारीय अंक।
जवाब देंहटाएंsundar v sarthak links ,meri posts ko sthan dene hetu hardik dhanyawad
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी,मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात, कल व्यस्तता के कारन चर्चा पढ़ नहीं पाया, आज पढ़ा, सुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंआभार
सुंदर चर्चा, पठनीय लिंक्स.... आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंमेरी कवीता को चर्चा में शामिल करने के लिये बहुत बहुत आभार
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