फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, नवंबर 22, 2017

"मत होना मदहोश" (चर्चा अंक-2795)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
--

शीर्षकहीन 

" एकात्म मानववाद और धर्म " -- 
नवीन मणि त्रिपाठी 
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का कहना था कि 
भारत एक ऐसा देश है जो विश्वपटल पर 
अपनी सर्वश्रेष्ठ पहचान बनाने में पूर्ण सक्षम है... 
Naveen Mani Tripathi 
--

वही धुन 

Purushottam kumar Sinha  
--
--
--
--

अटलांटिक के उस पार - 2 

31 अक्टूबर 2017 को जब मैं पत्नी व पुत्र प्रद्युम्न के साथ जब अमेरिका की धरती पर पदार्पित हुआ तो वे सारे अहसास फिर से ज़िंदा हुए जो मुझे 2011 में यहाँ आने पर हुए थे, और मैंने दिनांक 28 जुलाई 2011 को अपने ब्लॉग ‘जाले’ में संस्मरण के रूप में प्रकाशित किये थे.... 
--

तुम्हे लिखना है मुझे 

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी 
--

फ़िक्र की धूप !! 

कुछ रिश्ते जिंदगी होतें हैं 
परवाह और अपनापन लिए 
जिनमें फ़िक्र की धूप होती है 
और ख्यालों की छाँव !!! ... 
शब्दों की बारिश से भीगा है मन 
मेरे आस पास कुछ नमी सी है 
कहीं तुम उदास तो नहीं ?? 
SADA 
--
--

( रब जैसी है माँ मेरी ) 

धरती माँ जैसी है माँ मेरी। 
जैसे धरती घूमती है 
अपनी ही धुरी पर। 
वैसे ही मेरी माँ भी घूमती है 
अपने परिवार की धुरी पर। 
बादलों जैसी है माँ मेरी... 
नयी उड़ान + पर Upasna Siag  
--

हमारा इतिहास हमारा सम्मान 

एक -दो दिन से कई पोस्ट पढ़ चुकी हूँ कि आज की महिलाओ के मान-सम्मान से दूर लोग इतिहास में अटके हैं आज की नारी का सम्मान हो न हो पद्मावती के सम्मान की चिंता है मुझे लगता है नारी इतिहास की हो ,आज की हो या भावी सम्मान सभी महिलाओ का आवश्यक और उतना ही महत्वपूर्ण। इतिहास का सम्मान भी उतना ही आवश्यक जितना वर्तमान का... 
अरुणा 
--
--

कि पहुंचना कहीं नहीं है 

सूखे पत्ते
बर्फ़ के फ़ाहों से
ढँक चुके हैं 
मन की ज़मीं पर
जमी परत
कितना कुछ सहेज रही है
क्या कुछ छुपा रही है... 
अनुशील पर अनुपमा पाठक  

7 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात,बेहतरीन प्रस्तुति विविधतापूर्ण। किसी मैगजीन की तरह। बधाई स्वीकारें।
    अनुशील पर आदरणीय अनुपमा पाठक जी की कविता मेरे मनोनुकूल बेहतरीन लगी।।।

    पीड़ा का अध्याय वृहदाकार है
    इस अध्याय के विश्राम तक की यात्रा
    दुष्कर है, तो है
    चलते चलना ही
    एकनिष्ठ आधार है

    पहुंचना कहीं नहीं है
    रास्तों के डाढ़-पात की सन्निधि ही
    जैसे सार है

    यूँ लुके-छिपे पात
    रह जाने हैं

    मौसम के अनछुए विम्बों में व्यक्त
    हृदय के कई घाव
    अजाने हैं !

    जवाब देंहटाएं
  2. हमेशा की तरह एक सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बहुत ही बढ़िया लिंक्स एवं प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।