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शनिवार, नवंबर 04, 2017

"दर्दे-ए-दिल की फिक्र" (चर्चा अंक 2778)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दोहे 

"कार्तिक पूर्णिमा-चहके गंगा-घाट"  

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छोड़ो मेरे दर्दे-ए-दिल की फिक्र तुम..  

अधीर 

धरोहर पर yashoda Agrawal  
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कलियुग केवल नाम अधारा , 

सुमर सुमर नर उतरे पारा। 

Virendra Kumar Sharma 
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सेतु हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता 

Smart Indian  
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अक्सर दिवाली में 

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी  
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ईश्वर के पछताने का प्रकरण... 

हमारी आवाज़ पर शशिभूषण  
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कुछ रिश्ते !!! 

कुछ रिश्ते होते हैं कुम्हार से 
गढ़ते ही नहीं आकार भी दे देतें हैं जीवन को । ..  
कुछ रिश्ते होते हैं अजनबी से 
अन्जाने बिना नाम के 
शायद भावनाओं के 
जो वक़्त और परिस्थिति से निर्मित 
मन के आँगन में बने 
और पनपे होते हैं... 
SADA 
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अनेकता के साथ एकता  

शरारती बचपन पर sunil kumar 
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कुछ है,कुछ नहीं 

जिंदगी से सवाल कुछ किये, कुछ नहीं 
सवालों के जबाब कुछ मिले, कुछ नहीं... 
अर्चना चावजी Archana Chaoji 
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कोमल हथेली 

कोमल हथेली छह महीने बाद नौकरी से घर लौटे हुए पति अविनाश ने एकांत होते ही रमोला का हाथ पकड़ना चाहा, किन्तु यह क्या! रमोला ने हाथ परे करते हुए मुस्कुराकर पति को गलबहियाँ डाल दी... 
ऋता शेखर 'मधु'  
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दोहे  

"सुमन बाँटता गन्ध" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

नभ में कुहरा छा गया, आफत में है जान। 
लगा नहीं पाता मनुज, मौसम का अनुमान।।
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पानी नभ में है नहीं, शीतल है अब भोर।
हरियाली पीली हुई, धरती पर चहुँ ओर।।
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जाड़े-पाले में हमें, अच्छा लगता घाम।
बारिश से बरसात में, मिलता है आराम... 

4 टिप्‍पणियां:

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