मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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मैं, बस मैं नहीं
मैं, बस इक मैं ही नहीं.....इक जीवन दर्पण हूँ.....!
मैं, बस इक मैं ही नहीं.........
इक रव हूँ, इक धुन हूँ,
सहृदय हूँ, आलिंगन हूँ, इक स्पंदन हूँ,
गीत हूँ, गीतों का सरगम हूँ
गूंजता हूँ हवाओं में,
संगीत बन यादों में बस जाता हूँ,
गुनगुनाता हूँ मन में, यूँ मन को तड़पाता हूँ.....
Purushottam kumar Sinha
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व्यथा शब्दों की....
शबनम शर्मा
आसमान के ख़्याल,
धरा की गहराई,
रात्री का अँधेरा,
दिन की चमक,
शब्द बोलते हैं...
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आई एम सॉरी
लकड़ी से सहारेभीड़ भरी
फुटपाथहीन सडक पर किनारे किनारे
धीरे धीरे चलते वृद्ध से
टकराता है एक सत्रह अठारह साल का
मोबाइल पर वयस्त मार्ड्न युवक...
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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गुलाब
लाख जतन की हमनें इश्क़ छुपाने की
पर उनके दिए गुलाबों ने
खुश्बू चमन में ऐसी बिखरा दी
बात जो अब तलक जो
दिलों की दरम्यां थी
अब वो हर महफ़िल में
चर्चें ख़ास हो गयी यारों...
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जवाब तो जिम्मेदारों से मांगा जाना चाहिए
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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आज के काव्य-मंच -
आल्हा छन्द
काव्य मंच की गरिमा खोई, ऐसा आज चला है दौर
दिखती हैं चुटकुलेबाजियाँ, फूहड़ता है अब सिरमौर ।।
कहीं राजनेता पर फब्ती, कवयित्री पर होते तंज
अभिनेत्री पर कहीं निशाना, मंच हुआ है मंडी-गंज...
दिखती हैं चुटकुलेबाजियाँ, फूहड़ता है अब सिरमौर ।।
कहीं राजनेता पर फब्ती, कवयित्री पर होते तंज
अभिनेत्री पर कहीं निशाना, मंच हुआ है मंडी-गंज...
हाफ़िज़ सईद की रिहाई का जश्न ...
राहुल - मोदी जी बात बनी नहीं -हाफ़िज़ सईद रिहा हो गया ,पाक को अमरीकी सैन्य सहायत बहाल होगी -राहुल (यह सुर्खी थी एक हिंदी के अखबार की ) (गांधी तो ये व्यक्ति है नहीं ,क्योंकि पारसियों में गांधी उपनाम और वर्ण ,गोत्र आदि नहीं हैं ये नेहरू वंश का बचा खुचा उच्छिष्ट है वर्ण - संकर रूप में ),राहुल को गांधी कहना उस महात्मा की तौहीन है जिसे मोहनदास करमचंद गांधी कहा जाता था। खुद गांधी वंश के नातियों ने एतराज जताया है इन कांग्रेसियों के आरएसएस पर आक्षेपों का और इनके गांधी उपनाम बनाये रहने पर ) हम अपने मूल विषय की ओर लौटते हैं...
Virendra Kumar Sharma
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अँधेरा है जीवन
जीवन
अँधेरा ही तो है
अँधेरा न हो तो
क्या है रात का अस्तित्व
पर्वतों की गुफाओं से लेकर
पृथ्वी के गर्भ तक
नदियों के उद्गम से लेकर
समुद्र की तलहटी तक
पसरा हुआ है
अँधेरा ही अँधेरा
सरोकार पर Arun Roy
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धर्म मनुष्य की पहचान क्यों हो ?
यद्यपि लेखन में कविता आपकी मुख्य विधा थी। आपका समूचा स्वर भी उसी में सधा। लेकिन हिंदी में दलित साहित्य की जो धारा प्रस्फूटित हो चुकी थी उसके प्रवाह को जारी रखना और उसे हर तरह से समृद्ध करने की जिम्मेदारी भी आपके ऊपर थी। दलित चेतना के स्वर में लिखने वाले चंद लोग ही उस वक्त तक सक्रिय थे। आयुध कारखाने ओ एल एफ, जिसमें आप कार्यरत थे, बहुत से नये लोग भर्ती हुए थे। उन नये लोगों में बहुत से ऊर्जावान दलित साथी थे जिन्होंने एक संस्था बनायी थी- अस्मिता अध्ययन केन्द्र...
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़
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रँग चुके हैं यहाँ सब तेरे रंग में ...
अपने मन मोहने सांवले रंग में
श्याम रँग दो हमें सांवरे रंग में
मैं ही अग्नि हूँ जल पृथ्वी वायु गगन
आत्मा है अजर सब मेरे रंग में...
Digamber Naswa
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सतरंगी प्रस्तुति👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार!
मस्त लाजवाब चर्चा ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे भी शामिल करने का ...
हमेशा की तरह सुंदर चर्चा। चर्चा में मुझे भी स्थान देने के किये आभार आपका।
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