मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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भावनाओं के बाजार की संभावनाएं
शहर के मुख्य बाजार की पैदल तफरी,
आभासी दुनिया की चर्चाओं
और विवाद के बीच
भावनाओं का कॉकटेल..
ज्ञानवाणी पर वाणी गीत
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तुम और मैं -९
मैंने दिया जला कर
कर दी है रोशनी ...
तुम प्रदीप्त बन हर लो,
मेरा सारा अविश्वास...
सु-मन (Suman Kapoor)
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कागज़ का मन भींग रहा है
लिखते रहने की सम्भावना का बचे रहना
साँसों के बचे रहने की गवाही है
दुःख का अनुभूति में बने रहना
जीवित होने की पुष्टि है ...
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काल का प्रवाह..
वे दुष्यंत थे
भूल गये थे शकुन्तला को
आज के दुष्यंत हैं
जो शकुन्तला से मिलते ही हैं
भूलने के लिए...
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हम तरक्की के सौपान चढ़ते रहे ...
हम बुज़ुर्गों के चरणों में झुकते रहे
पद प्रतिष्ठा के संजोग बनते रहे
वो समुंदर में डूबेंगे हर हाल में
नाव कागज़ की ले के जो चलते रहे...
Digamber Naswa -
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अबकी बार लौटा तो .......
कुंवर नारायण सिंह
1927-2017
अबकी बार लौटा तो बृहत्तर लौटूंगा
चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें
नहीं कमर में बांधें लोहे की पूँछे...
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हास्य-व्यंग्य अर्ज़ है
Tushar Rastogi -
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जमाना भी था तब दिल्लगी का...
डॉ. इन्दिरा
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
आज की विस्तृत चर्चा का स्वागत है ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे शामिल करने का ...
चर्चा मंच यूँ ही सतत गतिमान रहे!
जवाब देंहटाएंसादर!!
आभार आदरणीय 'उलूक' के पन्ने को आज की सुन्दर चर्चा में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंhamesha kee tarah bandhkar rakh diya hai aapke chaynit linkon ne,meri post ko sthan dene detu hardik dhanyawad
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंचर्चा में ब्लॉग को शामिल किये जाने के लिए बहुत आभार...
जवाब देंहटाएंमेरी कविता को चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार...
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