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सोमवार, नवंबर 06, 2017

"बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि पर" (चर्चा अंक 2780)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि पर"  

उच्चारण पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
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मेरे पल 

Purushottam kumar Sinha  
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ग़ज़ल 

अफसान-ऐ-दर्द को नज्मो की तरह गाने की जरूरत नही है। 
आश्ना हु मैं हाँ अब तुम्हे कुछ भी बताने की जरूरत नही है... 
Himanshu Mittra 
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व्यामोह 

यह कैसी नीरसता है 
जैसे अब किसी भी बात में 
ज़रा सी भी रूचि नहीं रही 
पहले छोटी-छोटी चीज़ें भी 
कितना खुश कर जाती थीं... 
Sudhinama पर sadhana vaid  
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...और मुझे गुरुद्वारे जाना पड़ा 

छः बजनेवाले हैं। 
साँझ होनेवाली है। 
जो कुछ मेरे साथ हुआ 
उसे कोई छः घण्टे हो रहे हैं 
लेकिन मैं अब तक 
उससे बाहर नहीं आ पाया हूँ... 
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चिड़िया:  

जीवन - घट रिसता जाए है... 

काल गिने है क्षण-क्षण को, 
वह पल-पल लिखता जाए है...  
जीवन-घट रिसता जाए है ... 
आपका ब्लॉग पर Meena Sharma 
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ग़ज़ल 

अकसीर दवा भी अभी’ नाकाम बहुत है  
बेहोश मुझे करने’ मय-ए-जाम बहुत है... 
कालीपद "प्रसाद" 
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11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    उम्दा प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. विविधताओं को समेटे सम्पूर्ण प्रस्तुति। बधाई। मेरी रचना को स्थान देकर मान बढाने हेतु विशेष धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. बाबा नागार्जुन को हार्दिक श्रद्धांजलि ! आज की चर्चा में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. श्रधंजलि बाबा नागार्जुन को। आज के उनको समर्पित अंक में 'उलूक' की बात को भी जगह देने के लिये आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर, विविधता से परिपूर्ण अंक । मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बाबा नागार्जुन को सच्ची श्रधांजलि

    जवाब देंहटाएं
  8. सुदंर
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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