मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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ग़ज़ल
अफसान-ऐ-दर्द को नज्मो की तरह गाने की जरूरत नही है।
आश्ना हु मैं हाँ अब तुम्हे कुछ भी बताने की जरूरत नही है...
कविता मंच पर
Himanshu Mittra
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व्यामोह
यह कैसी नीरसता है
जैसे अब किसी भी बात में
ज़रा सी भी रूचि नहीं रही
पहले छोटी-छोटी चीज़ें भी
कितना खुश कर जाती थीं...
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...और मुझे गुरुद्वारे जाना पड़ा
छः बजनेवाले हैं।
साँझ होनेवाली है।
जो कुछ मेरे साथ हुआ
उसे कोई छः घण्टे हो रहे हैं
लेकिन मैं अब तक
उससे बाहर नहीं आ पाया हूँ...
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चिड़िया:
जीवन - घट रिसता जाए है...
काल गिने है क्षण-क्षण को,
वह पल-पल लिखता जाए है...
जीवन-घट रिसता जाए है ...
आपका ब्लॉग पर Meena Sharma
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति
आभार
सादर
विविधताओं को समेटे सम्पूर्ण प्रस्तुति। बधाई। मेरी रचना को स्थान देकर मान बढाने हेतु विशेष धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन को हार्दिक श्रद्धांजलि ! आज की चर्चा में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंश्रधंजलि बाबा नागार्जुन को। आज के उनको समर्पित अंक में 'उलूक' की बात को भी जगह देने के लिये आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंविस्तृत बुलेटिन ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, विविधता से परिपूर्ण अंक । मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुदंर
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन को सच्ची श्रधांजलि
जवाब देंहटाएंसुदंर
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर धन्यवाद