मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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उनकी तरह होने का मर्म
पेड़ों के पास
जो भाषा होती हमारी तरह
जो उनके पास
अभिव्यक्त होने की सहूलियतें होती
तो क्या वे भी उस भाषा में
रोते-चिल्लाते शिकायत करते...
अनुशील पर अनुपमा पाठक
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दोहे
"करता क्यों अभिमान"
(राधा तिवारी)
जब से जग में जिन्दगी, हुई नशे में चूर l
हिंसा बैर समा गया, हम सब मैं भरपूर ll
करना नहीं गुमान को , धरती के इंसान l
चार दिनों की जिंदगी , क्यों करता अभिमान...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
मनमोहक प्रस्तुति हेतु बधाई। शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की निरंतरता बनी रहे सदा सर्वदा!
जवाब देंहटाएंअशेष शुभकामनाएं!
आभार!
हमेशा की तरह आज की सुन्दर चर्चा के शीर्षक पर 'उलूक' की दूरबीन को जगह देने के लिये आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंsarthak links chayan kiya hai aapne.mere blog ko sthan dene ke liye hardik dhanyawad
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा! मेरी रचना शामिल कार्ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी!
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