यद्यपि सहारे बिन जिया वह लाश के ही भेष में-
रविकर
तुम रंग गिरगिट सा बदलना छोड़ दो।परिपक्व फल सा रंग बदलो अब जरा। जैसे नरम स्वादिष्ट मीठा फल हुआ। वैसे मधुरता नम्रता विश्वास ला ।। |
चढ़े बदन पर जब मदन, बुद्धि भ्रष्ट हो जाय
रविकर
है भविष्य कपटी बड़ा, दे आश्वासन मात्र।
वर्तमान से सुख तभी, करते प्राप्त सुपात्र।। |
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसबकी रचनाएँ अति उत्तम सबको बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति रविकर जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार ... बढ़िया लिनक्स की चर्चा
जवाब देंहटाएंsarthak links sanyojan ,meri post ko sthan dene hetu hardik aabhar
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