मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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हे प्रिय
ये सुनने मे कोई कष्ट नही
तुम किसी और की हो सत्य है ये
कष्ट तो तब होता है
जब तुम मेरे वास्तविक स्वप्न मे आती हो...
कविता मंच पर
Himanshu Mittra
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दिल्ली का प्रदुषण ---
दिल जीवन भर धड़कता है ,
साँस जिंदगी भर चलती है ,
पर कभी अहसास नहीं होता ,
दिल के धड़कने का,
साँसों के चलने का...
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ये कहानी भी सुनानी, है अभी तक गाँव में ...
बस वही मेरी निशानी, है अभी तक गाँव में
बोलता था जिसको नानी, है अभी तक गाँव में...
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बिखरा मन,
बिखरे शब्द
कोरा ही था सब
कोरा ही रहा
अपने कोरेपन को
क्या ही भरते
उस शून्यता को
भर ही नहीं सकते थे!
हताश
कागज़ो के कोरेपन में
अर्थ तलाशते रहे ...
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काल का प्रवाह..
वे दुष्यंत थे
भूल गये थे शकुन्तला को
आज के दुष्यंत हैं
जो शकुन्तला से मिलते ही हैं
भूलने के लिए...
ममता त्रिपाठी
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शब्द...
राजेन्द्र जोशी
डरते हैं, दुबकते हैंप्रेम करते ,
कांपते हैंकभी तानाशाह होकरभीख मांगते दिखते हैं...
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विविधतापूर्ण प्रस्तुति हेतु भधाई।सुप्रभात।।।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर
सुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह। आभार आदरणीय 'उलूक' की बकवास को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंवाह ... अच्छे चर्चा सूत्र ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे भी जगह देने का आज के मंच पर ...
बहुत अच्छा लगा इतनी विविधताओ को पढ़
जवाब देंहटाएंकर
आभार
मेरी रचना को स्थान देने के लिये