मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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...तो फिर तो दूल्हा भिखारी हुआ?
आप जैसे हो वैसे के वैसे चले आइए। फौरन। मैंने अभी-अभी दादा का वो व्यवहार का पंचशील वाला ब्लॉग पढ़ा है। मेरे पास भी आपको सुनाने के लिए वैसी ही जोरदार बात है। दादा की ही। आप चले आओ। मैं आपही राह देख रहा हूँ।’ उधर से सुभाष भाई बोल रहे थे। उन्होंने मेरे लिए बोलने को कुछ रखा ही नहीं। सब कुछ तय कर चुके थे। मुझे जाना ही था। सुभाष भाई रतलाम के, गिनती के उन लोगों में हैं जिन्हें मैं अपना संरक्षक मानता हूँ। उनकी कई बातों से मैं दुःखी होने की सीमा तक असहमत हूँ और वे भी मुझसे इतने ही दुःखी हैं। हम लोग आपस में खूब बहस, तर्क-वितर्क करते हैं। बात-बात पर असहमत होते हैं। और हर बार ...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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रेलयात्रा में चोरी,
दानापुर, पटना, बिहार
बहुत दुखी मन से घटना लिख रही हूं,जो हुआ वो किसी के साथ न हो, जरूर कोई पुण्य आड़े आया होगा जो जान बची वरना चलती ट्रेन से एक महिला के गिरने की खबर भर होती मैं .......इस घटना ने बिहार के प्रति मेरे विश्वास की धज्जियां उड़ा दी ...
मेरे मन की पर
अर्चना चावजी Archana Chaoji
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कबीर दौड़ रहा है
सूर को सावधान रहने के लिये
कहने के लिये
ढूँढ रहा है
तुलसी अदालत में फंसा हुआ है
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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विश्वास बड़ी चीज है
विश्वास बड़ी चीज होती है, लेकिन यह बनता-बिगड़ता कैसे है, इसका किसी को पता नहीं। शतरंज का खेल सभी ने थोड़ा बहुत खेला होगा, खेला नहीं भी हो तो देखा होगा , इसमें राजा होता है, रानी होती है, हाथी होता है घोड़ा होता है, ऊँट है तो पैदल भी हैं। सभी की चाल निश्चित है, खिलाड़ी इन निश्चित चालों के हिसाब से ही अपनी चाल चलता है। उसे घोड़ा मारना है तो अपनी रणनीति तदनुरूप बनाता है और हाथी मारना है तो उसी के अनुसार। राजनीति भी एक शतरंज के खेल समान है, दोनों तरफ सेनाएं सजी हैं और दोनों ही सेनाएं अपनी-अपनी योजना से खेल को खेल रही हैं। खिलाड़ी को पता है कि मुझे क्या चाल चलनी है लेकिन दर्शक को पता नही..
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