फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, नवंबर 27, 2018

"जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है" (चर्चा अंक-3168)

मित्रों! 
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।  
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
--

ग़ज़ल  

"जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है"  

किसने कह दिया 

‘उलूक’  

कि पागलों को  

प्रयोग करने के लिये  

मना किया जाता है 

सुशील कुमार जोशी  
--

सूरज तुम जग जाओ न..... 

श्वेता सिन्हा 

धुँधला धुँधला लगे है सूरज
आज बड़ा अलसाये है
दिन चढ़ा देखो न  कितना
क्यूँ न ठीक से जागे है
छुपा रहा मुखड़े को कैसे
ज्यों रजाई से झाँके है... 
yashoda Agrawal  
--

'तूँ प्रकाशो दा मुंडा वें ?''....... 

मेरे पंजाब की बात ही कुछ और है 

सोचता हूँ क्या है यह ? कौन सा अपनत्व है ? 
 कौन सा लगाव है ? कौन सी ममता है ?  
कौन सा रिश्ता है जो वर्षों बाद मिले  
दूर-दराज के रिश्ते के लोगों को भी गले लगा,  
अपना वात्सल्य उड़ेलने को तत्पर रहता है... 
गगन शर्मा 
--

अस्ताचल 

purushottam kumar sinha 

--

हाइकु 

मेरा भारत
अनेक भाषाभाषी
रहते यहां।

पालते धर्म
बिना भेदभाव के
करते कर्म... 
Jayanti Prasad Sharma  
--

एक कन्हैया भारतीय राजनीति का अपशब्द है , 

एक अद्भुत शिशुपाल का राजनीतिक अवतरण है 

Virendra Kumar Sharma  
--

एक दोहा

--

उखड़े हुए पेड़ पर  

हर कोई कुल्हाड़ी मारता है 

मक्खन की हंड़िया सिर पर रखकर धूप में नहीं चलना चाहिए
बारूद के ढ़ेर पर बैठकर आग का खेल नहीं खेलना चाहिए... 
--

मेघ-दूत :  

आर्थर रैम्बो की कविताएँ :  

अनुवाद मदन पाल सिंह 

समालोचन पर arun dev  
--

लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का आभाव  

आतंकवाद को मदद पहुंचाता है  

अनिल सिन्हा  

विजय राज बली माथुर 
--

झुग्गियो मे सर्द रातें  

रो रहा है हिन्दुस्तान .... 

--

कालपात्र की तरह  

खानदान को उखाड़ने का समय  

चन्द्रिका को तो एलजाइमर था इसलिये वह सारे परिवार को भूल गयी लेकिन उसका बेटा अमोल बिना अलजाइमर के ही सभी को भूल गया! मोदी को अलजाइमर नहीं है, वे अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम भी लगाते हैं, राजीव गांधी को भी अलजाइमर नहीं था, फिर वे अपने पिता का नाम अपने साथ क्यों नहीं लगाते थे? राहुल गाँधी अपनी दादी का नाम खूब भुनाते हैं लेकिन दादा का नाम कभी भूले से भी नहीं लेते! यह देश लोकतंत्र की ओर जैसे ही बढ़ने लगता है, वैसे ही इसे राजतंत्र की ओर मोड़ने का प्रयास किया जाता है। बाप-दादों के नाम का हवाला दिया जाता है, देख मेरे बाप का नाम यह था, बता तेरे बाप का... 

--

किताबों की दुनिया -  

205 

नीरज पर नीरज गोस्वामी 

7 टिप्‍पणियां:

  1. खुद जिनके किरदार में भांति -भांति के छेद ,

    वे हमको समझा रहे ,भले बुरे का भेद।

    बढ़िया भाव अभिव्यक्ति
    veerujan.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया भाव अभिव्यक्ति शास्त्री जी की :

    जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है
    हाड़ धुनने का काम जारी है
    क्या करें जीने की लाचारी है ,
    ये आदतन ही खेल ज़ारी है।
    उम्र सारी ही यूं गुज़ारी है ,
    कोई तो है जो हम पे तारी है।

    veerujan.blogspot.com
    kabirakhadasaraimen.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात आदरणीय
    चर्चामंच की सुन्दर प्रस्तुति 👌
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर मंगलवारीय चर्चा। आभार आदरणीय 'उलूक' के प्रयोग को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर मंगलवारीय चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।