स्नेहिल अभिवादन
रविवासरीय चर्चा में आप का हार्दिक स्वागत है|
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देखिये मेरी पसन्द की कुछ रचनाओं के लिंक |
- अनीता सैनी
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"उड़नखटोला द्वार टिका है"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' at उच्चारण
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भाष्य :
प्रभात की कविता : सदाशिव श्रोत्रिय
समालोचन
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पीड़ा का अर्थशास्त्र
अनुशील
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तृप्त धरा
मेरे मन का एक कोना
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परिवर्तन की लहर
Poet and Thoughts
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मेजी की आग
एक जीवन एक कहानी
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उम्मीदें
अनकहे किस्से
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मैं ऐसा ही हूँ
भाव-यवनिका : पंकज त्रिवेदी
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आरजू
मुसाफ़िर...अल्फ़ाज़ों का
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सुनो ज़िंदगी ….निधि सक्सेना
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कविता : चिड़िया
जब से हुई है तुमसे आँखें चार ख्यालों में रहते हमारे सदा तुम करने लगे तुमसे प्यार हम अपार ..दिल में मेरे जब से आए हो तुम आँखे बंद कर निहारें बार बार ... जाओ गे दूर हमसे जब कभी तुम ज़िंदगी भर करेंगे हम इंतजार ..तुम ही तुम हो जिंदगी में हमारी है तुमसे ही अब हमारा संसार रेखा जोशी
Ocean of Bliss
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बने सार्थक जीवन अपना
चेतना अपने आप में पूर्ण है. जब उसमें जगत का ज्ञान होता है, वह दो में बंट जाती है. जहाँ दो होते हैं, इच्छा का जन्म होता है, और फिर उस इच्छा को पूर्ण करने के लिए कर्म होते हैं. कर्म का संस्कार पड़ता है, और कर्मफल मिलता है. जिससे पुनः-पुनः कर्म होते हैं. कर्मों की एक श्रंखला बनती जाती है. 'ध्यान' में हम पहले सब कर्म त्याग देते हैं. फिर सब इच्छाओं का विसर्जन कर देते हैं. भीतर केवल स्वयं ही बचता है...
डायरी के पन्नों से ------
पत्ता गोभी और चना दाल के कुरकुरे और चटपटे बड़े
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल
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वलीउल्लाही आन्दोलन
शरारती बचपन
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घास
कविताएँ
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शमशानघाट से विदा
पंडित जी ने अपना कमन्डल उठाया और शमशानघाट से विदा लेने के लिए तैयार हो गए। बहुत ही नराज़ थे दिल्ली की सरकार से। अब शमशान घाट नये तरीके बनाया जा रहा है। जिसमे उसको बैठने के लायक बनाया जाएगा। जहाँ पर गन्दगी और कोई जानवर ना तो आएगा और ना ही दिखाई देगा। इसलिए पंडित जी की भी विदाई कर दी गई है…
एक शहर है
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