मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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617.
कड़ी
अतीत की एक कड़ी
मैं खुद हूँ
मन के कोने में, सबकी नज़रों से छुपाकर
अपने पिता को जीवित रखा है
जब-जब हारती हूँ
जब-जब अपमानित होती हूँ
अँधेरे में सुबकते हुए, पापा से जा लिपटती हूँ
खूब रोती हूँ, खूब गुस्सा करती हूँ
जानती हूँ पापा कहीं नहीं...
डॉ. जेन्नी शबनम
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पापा
अँधेरों को चीरते सन्नाटे में
अपने से ही बात करते
पापा यह सोचते थे कि
कोई उनकी आवाज नहीं सुन रहा होगा...
Jyoti khare
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शुप्रभात सर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सजा चर्चा मंच, बेहतरीन रचनाएँ
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की 161वीं पुण्यतिथि पर बहुत ही शानदार प्रस्तुति |
सादर
मेरी कविता की शीर्षक से प्रारम्भ यह अंक मुझे बहुत ही प्यारा लगा। बेहतरीन प्रस्तुति । शुभ प्रभात ....
जवाब देंहटाएंअन्यान्य सूत्रों तक पहुँचाने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंभारत की पूज्य वीरांगना को शत शत नमन!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा अंक शानदार प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर सर मै ऐसे ही ज्ञान से संबंधी ब्लॉग खोज रहा था Computer Sikho
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