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बुधवार, जून 12, 2019

"इंसानियत का रंग " (चर्चा अंक- 3364)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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तनिक उदासी 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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कोई जान रहा है सब कुछ 

*बगीचे* से कोकिल की आवाज निरंतर आ रही है. खिड़की से बेला के फूलों की गंध आकर सहज ही नासापुटों को आकर्षित करती है. आँखें कम्प्यूटर की स्क्रीन पर लगी हैं तो कभी की बोर्ड पर. अभी भोजन का समय नहीं हुआ है और कोई सम्मुख नहीं है, इसलिए मुख बंद है... 
Anita  
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लघुकथा :  

लक्ष्मण रेखा 

झरोख़ा पर 
निवेदिता श्रीवास्तव 
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प्रधानपति 

अगले चुनावों में पत्नी को टिकट दिलवाऊंगा मैं  
वो प्रधान बनेगी तो, प्रधानपति बन जाऊंगा मैं |  
कौन उसको पूछेगा, वो बस मुहर बनकर रहेगी  
प्रधान की सारी जिम्मेदारी मेरे सर रहेगी ... 
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मृत होती संवेदनाएं 

आज बहुत दिनों बाद 
 एक मित्र के कहने पर कुछ लिख रही हूँ।  
अन्यथा अब कभी कुछ लिखने का मन नहीं होता।  
लिखो भी तो क्या लिखो।  
कहने वाले कहते है  
अरे यदि आप एक संवेदन शील व्यक्ति हो तो  
कितना कुछ है आपके लिखने लिए... 
Pallavi saxena 
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छतरी का आस्माँ हो जाना 

बारिश और छतरी का भी  
कैसा अद्भुत नाता है 
जब बरसता है अम्बर तो 
छतरी हमारा आसमान हो जाती है ... 
अनुशील पर अनुपमा पाठक 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
    शानदार रचनाएँ, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें,
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! पठनीय रचनाओं के सूत्र देता चर्चा मंच..आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार लिंकों का चयन।

    जवाब देंहटाएं
  4. अत्यंत हृदयग्राही प्रस्तुति ...सादर धन्यवाद मेरी पोस्ट को चर्चा में शामिल करने के लिए 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं

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