मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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615.
नहीं आता
ग़ज़ल नहीं कहती
यूँ कि मुझे कहना नहीं आता
चाहती तो हूँ मगर
मन का भेद खोलना नहीं आता...
डॉ. जेन्नी शबनम
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एक ग़ज़ल :
जब भी ये प्राण निकले--
जब भी ये प्राण निकलें ,पीड़ा मेरी घनी हो
इक हाथ पुस्तिका हो .इक हाथ लेखनी हो...
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साहिर और अमृता
अमृता का प्यार सदाबहार
उसके गले का हार
साहिर बस साहिर
उसका चैन उसका गुरूर
उसकी आदत उसकी चाहत उसका सुकून
उसकी मंज़िल साहिर बस साहिर...
प्यार पर Rewa Tibrewal
सुन्दर लिन्क्स. मेरी कविता शामिल की. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति शानदार मंच
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र आज की चर्चा में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
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