मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
प्रकाशन
साहित्य सुधा में मेरी बालकविता
वर्ष: 3, अंक 62, जून(प्रथम), 2019
शिव-शंकर को प्यारी बेल
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सांस लेते हुए मुर्दे
उसूलों पर जहाँ आँच आए,
टकराना ज़रूरी है,
जो ज़िंदा हो, तो फिर
ज़िंदा नज़र आना, ज़रूरी है....
तिरछी नज़र पर
गोपेश मोहन जैसवाल
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सूरज और दीया-बाती
वो डूबते हुए अपनी थाती बाती को सौंप गया।
बाती ने मिट्टी की काया को आधार किया
अंधियारे में रोशनी की नाव ने
यूँ दर्द का सागर पार किया
अनुशील पर अनुपमा पाठक
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बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसादर
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
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