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रविवार, अप्रैल 12, 2020

शब्द-सृजन-16 'सैनिक' (चर्चा अंक-3669)

रविवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 
शब्द-सृजन-१६ का विषय था-
'सैनिक '
गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर तेज-तर्रार, चुस्त-दुरुस्त सैनिकों की शानदार परेड देश के सभी नागरिकों को ख़ूब भाती है। देश की सुरक्षा का भार सहर्ष अपने कँधों पर लेकर अपना सर्वस्व न्योछावर करने में हम दम आगे रहते हैं परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों। मीडिया में अब सैनिकों की ख़बरें दब गयीं हैं क्योंकि उसकी प्राथमिकताएँ बदल गईं हैं फिर भी सैनिक हर मोर्चे पर डटे हुए हैं अपने सर्वोत्कृट बलिदानी जज़्बे के साथ। 
-अनीता सैनी 
आइए पढ़ते हैं शब्द-सृजन-१६ के विषय 'सैनिक' पर सृजित रचनाएँ-
**
 उच्चारण 
**
प्रहरी 
घनघोर अंधेरों में भी , ये दुर्गम पथ पर होते हैं । रखते निज देश का मान , चैन दुश्मन का खोते हैं ।। **

माटी के लाल,तूने माँ भारती संग प्रेम की गाथा रची
अपना सर्वस्व न्योछावर कर प्रेम की पराकाष्ठा लिखी
तुम्हारी विरासत सहेजने का वादा हम करते है
वीर सैनिकों की शहादत को हम नमन करते है।
**


ये बात 1965 के भारत - पाक  युद्ध  के समय की है. 
  जिसे मैंने अपने घर के बड़े बुजुर्गों के मुंह से कई बार  सुना  है | 
हमारे  गाँव   क्योंकि  वायुसेना  स्टेशन है .
 सो युद्ध  की   आहट होते ही वहां   
सुरक्षा  व्यवस्था  बढ़ा दी जाती   है   | 
 उस  समय  क्योंकि   
संचार के साधन इतने नहीं थे
 सो  लोग बाग़ रेडियो  या 
अखबार के जरिये ही  युद्ध की सारी खबरें पाते थे |
प्रिये सोचता था जब आयेगी होली 
रंगूंगा तबीयत से प्रिया अपनी भोली ! 
छकाऊँगा जी भर तुम्हें कुमकुमों से 
सताऊँगा मल-मल के चेहरा रंगों से !
**
शेखर भाई ,मेरा तो अंत समय आ गया हैं.....
तुम मुझ पर एक एहसान करना ...
तुम मेरी माँ तक मेरा एक संदेश पहुँचा देना....
माँ से कहना - तुम ने सच कहा था माँ  -
 " आज मातृभूमि पर न्योछावर होकर... 
उसकी गोद में सोकर... 
जो सुख मिल रहा हैं उस पर कई जीवन कुर्बान हैं  "
 -  दीपक गहरी साँस लेते हुए बोला
**
"पत्नी,बच्चे, परिवार और समाज हमारी ज़िंदगी नहीं,  
हम देश के सिपाही हैं; वो आप से जुड़े हैं और आप देश से।
 समझना-समझाना कुछ नहीं,  
विचार यही रखो कि हम चौबीस घंटे के सिपाही हैं
 और परिवार हमारा एक मिनट!"
** 
निहारना चाहता हूँ 
सुदूर पहाड़ी से झरते 
श्वेताभ झरने से उठता 
रुपहला धुआँ
ह्रदय-कपाटों में 
उड़ेलना चाहता हूँ...   
क्योंकि 
नियति-चक्र 
अनवरत, अबाध, अविराम अपनी ड्यूटी पर 
मानव-ज़ात विज्ञान की सुझायी सलाह पर 
बस्तियों-बसेरों में क़ैद है 
** 
आज सफ़र यहीं  तक 
फिर मिलेंगे आगामी अंक में 
-अनीता सैनी 


12 टिप्‍पणियां:

  1. 'सैनिक' शब्द पर रची गईं बेहतरीन रचनाएँ पढ़ने को मिलीं। सुंदर प्रस्तुतीकरण शब्द-सृजन का। मेरी रचना को इस विशेष प्रस्तुति में स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार अनीता जी।





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  2. स्वार्थ की प्रचुरता के कारण मूल्याकंन की दृष्टि भी बदली है। मीडिया भी इससे अछूता नहीं है। व्यापार और बलिदान में क्या अंतर है, यह एक सच्चे सैनिक ही बता सकता है।
    सैनिकों को समर्पित इस सुंदर अंक में मेरे लेख को स्थान देने के लिए अनीता बहन आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. शब्द सृजन-16 के अन्तर्गत "सैनिक" विषय पर सुन्दर रचनाओ का चयन किया है आपने।
    हार्दिक आभार आपका, अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. शब्द सृजन की बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति अनीता जी !'प्रहरी' को चर्चा में मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. देश के सैनिको को सत सत नमन ,"शब्द -सृजन " का बेहतरीन अंक अनीता जी ,सभी रचनाएँ लाज़बाब ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  6. आज के संकलन में हमारे देश के शूरवीर सैनिकों को रचनाओं के माध्यम से सम्मान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! चंद शब्दों में इन वीर योद्धाओं के शौर्य को समेटा पाना असंभव सा है लेकिन हर रचना अनुपम है हर भाव अनमोल ! मेरी रचना को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे अनीता जी !

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  7. सैनिक पर बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आ0

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  8. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. सैनिक एक शब्द नहीं पुरे देश का रक्षा कवच है ।
    विषय बहुत सुंदर है प्रस्तुति बहुत शानदार
    सभी लिंक आकर्षक और सैनिकों पर शानदार सृजन के साथ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह प्रिय अनिता . सैनिक जीवन पर अद्भुत रचना संकलन आज के अंक की विशेषता है सही रचनाएँ भुत भावपूर्ण | सांय जीवन के अलग अलग रंगों को समेटे |

    यही कहूँगी --
    युद्धभूमि में वीर तुम
    संकटकाल में धीर तुम
    माँ जननी के सिंहसुत
    रख देते दुश्मन को चीर तुम!!
    सभी रचनाकारों ने कमाल लिखा | मेरी छोटी सी कोशिश को भी चर्चा में जगह मिली | कोटि आभार | सभी रचनाकार सराहना और बधाई के पात्र हैं | सस्नेह

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