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शुक्रवार, सितंबर 18, 2020

"सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी" (चर्चा अंक-3828)

मित्रों!

सबसे पहले भगवान विश्वकर्मा जी की आरती 

हम सब उतारें आरती तुम्हारी हे विश्वकर्मा, हे विश्वकर्मा।
युग–युग से हम हैं तेरे पुजारी, हे विश्वकर्मा...।।
मूढ़ अज्ञानी नादान हम हैं, पूजा विधि से अनजान हम हैं।
भक्ति का चाहते वरदान हम हैं, हे विश्वकर्मा...।।
निर्बल हैं तुझसे बल मांगते, करुणा का प्यास से जल मांगते हैं।
श्रद्धा का प्रभु जी फल मांगते हैं, हे विश्वकर्मा...।।
चरणों से हमको लगाए ही रखना, छाया में अपने छुपाए ही रखना।
धर्म का योगी बनाए ही रखना, हे विश्वकर्मा...।।
सृष्टि में तेरा है राज बाबा, भक्तों की रखना तुम लाज बाबा।
धरना किसी का न मोहताज बाबा, हे विश्वकर्मा...।।
धन, वैभव, सुख-शांति देना, भय, जन-जंजाल से मुक्ति देना।
संकट से लड़ने की शक्ति देना, हे विश्वकर्मा...।।
तुम विश्वपालक, तुम विश्वकर्ता, तुम विश्वव्यापक, तुम कष्टहर्ता।
तुम ज्ञानदानी भण्डार भर्ता, हे विश्वकर्मा...।।

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शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

अब चलते हैं कुछ ब्लॉगों की यात्रा पर! 

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दोहे  

"हमारे प्रधानमन्त्री मोदी जी का जन्मदिन"  

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गांधी के बाद जनजुड़ाव वाले  

सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी  

राजनीति के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति की पूर्ण रूप से सामाजिक चर्चा, पारंपरिक, सड़ी-गली राजनीति से ऊबे भारतीयों को ताजा हवा के झोंके की तरह लगती हैं। ऐसा नहीं हैं कि यह सारे अवसर पहले के नेताओं के पास नहीं थे, लेकिन एक या कई वजहों से पहले के नेता इसे छोड़ते चले गये और मोदी ने उन्हीं रास्तों पर चलकर देश का भरोसा जीत लिया। नरेंद्र मोदी गुजरात से देश के नायक यूं ही नहीं बन गये, इसे समझने के लिए उनके व्यक्तित्व और उनके व्यवहार का आंकलन ठीक से किया जाना चाहिए जो शायद अभी उनके प्रधानमंत्री रहते ईमानदारी से नहीं किया जाता है, लेकिन निश्चित तौर पर भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी को सर्वाधिक जनजुड़ाव वाले नेता के तौर पर स्थान मिलेगा। 

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तुम समझ के पतवार बाँधो हवा को समझो 
निर्जीव प्रयासों को जीवितकर पानी पिलाओ।
एक आँख से न ही दोनों आँखों से जग को निहारो 
सूखे कुएँ की पाल पर झूलती टहनी पर बैठी 
  चमगादड़ की चाकरी को न पुकारो अभी भी।
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1. 
मीठी-सी बात   
पहली मुलाक़ात   
आई है याद!   

2. 
दुखों का सर्प   
यादों में जाके बैठा   
डंक मारता!   

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कैसी हो मेरी "अपना"  

तुम अब नहीं ही मेरे पास
फिर भी 
मेरे पास हो
तुम्हारे होने का अहसास
थोड़े से लम्हों के लिए ही सही
प्रेम को जिंदा रखने का
सलीका तो सिखाता है
 कैसी हो मेरी "अपना"

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श्राद्ध भोज बंद होना चाहिए 

श्राद्ध और श्राद्ध भोज बंद होना चाहिए |इसके बदले श्रद्धा सभा का आयोजन होना चाहिए जिसमे इष्ट मित्र श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे | इसमें ब्राह्मणों का कोई काम नहीं होगा और न कोई दान दक्षिणा होगा  | स्वल्पाहार का आयोजन किया जा सकता है | सामर्थ्यवान यजमान चाहे तो भोज का पैसा किसी गरीब बच्चे की शिक्षा दीक्षा में खर्च कर सकते है |

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लाशें जिंदा रहना बहुत जरूरी हैं  

मरे हुऐ लोगों के  जिन्दा समाचारों लिये हमेशा  

एक पुड़िया सफेद पाउडर मिला है

उस जगह पर जहाँ चॉक ही चॉक
पायी जाती रही है हमेशा से डिब्बा बन्द

अलग बात है
कहीं जरा सा भी नहीं घिसी रखी है इतिहास बनाने के लिये भी

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शिखरारूढ के लिए जिम्मेदारी निभाना जरूरी है  

आजकल किसी भी समारोह, सम्मान, उपाधि आदि को सदी से जोड़ देने का चलन चल पड़ा है ! सदी का यह, सदी का वह,  इत्यादि, इत्यादि ! सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा आयोजन करने वालों को उस विधा विशेष के सौ सालों के दिग्गजों के बारे में पूरी जानकारी होती भी है ? क्या जिन्हें सम्मानित किया जा रहा है वे पिछले सौ वर्ष में उस विधा के महापुरुषों के पासंग भी हैं ? पिछले लोगों की समाज के प्रति निष्ठा, देश के प्रति समर्पण, अवाम से लगाव व प्रेम जैसा कुछ, आज उपाधि लेने को अग्रसर होते व्यक्ति में भी है ? उनकी और इनकी उपलब्धियों की कोई तुलना की गई है ? ऐसा क्यूँ है कि दशकों बाद भी वे लोग लोगों के जेहन में जीवित हैं, जबकि आज इन उपलब्धियों से नवाजे जाने वालों को, कुछेक को छोड़, उनके शहर से बाहर भी कोई नहीं जानता ! शायद यही कारण है कि अधिकांश सम्मान समारोह विवादित रहते हैं और अधिकांश अलंकरणों का पहले जैसा मान नहीं रह गया है ! और लेने वाले भी अपने कप-बोर्ड पर एक और शो पीस टांग देते हैं बिना उसके साथ आई जिम्मेदारी को महसूसने के 

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दूरियाँ  

हमारे बीच एक खाई है जिसे पार नही किया जा सकता, पर मैंने फ़िर भी हार नही मानी है। मैं एक पुल बनाने की कोशिश में लगा हूँ। मैं इतने सालों से पुल बना रहा हूँ पर उस पुल का दूसरा सिरा तुम तक पहुँच नही रहा। शायद मैं अच्छा इंजीनियर नही हूँ या हो सकता है मेरे पुल तैयार करते वक़्त ये खाई और लंबी हो गयी हो।
कुछ दूरियाँ इतनी दूर होती हैं कि कभी तय नही हो पाती। 

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यूरिक एसिड 

यूरिक एसिड बढ़ने पर क्या- क्या एतियाहत बरतने चाहिए?

सबसे पहले अण्डा सेवन बन्द करें। इससे सबसे ज्यादा यूरिक एसिड बनता है। आपका तो पहले से बढा है न !

दही बिलकुल बन्द। यह भारी ( अभिष्यन्दि) होता है। पाचन तंत्र तो पहले से गङबङ है जो लिमिट से ज्यादा यूरिक एसिड बना रहा। यानि पहले ही लङखङा कर चल रहा। भारी चीज कैसे सम्भालेगा ? यानि यूरिक एसिड जयादा बनेगा, दर्द बढ जायेगा। 

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बस यूँ ही 

डूब रहा सूरज वहाँ पीछे ओट लिए,
और मैं एकटक देखती रही कि जैसे
 तुम छुप गये हो कहीं पीछे,
लाल लालिमा में कैद 
मुस्कुराते से।
#बसयूँही 

#दीप्तिशर्मा 

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खो जायेगा छोटा मन जब  

महामारी  के इस काल में सब कुछ अनिश्चतता के दौर से गुजर रहा है. एक भय और असुरक्षा की भावना पहले से बढ़ गयी लगती है. ऐसे में अध्यात्म का आश्रय लेकर हम सहज ही अपने मन को तनाव से मुक्त रख सकते हैं. ‘मैं’ और ‘मेरा’ के सीमित दायरे से निकाल कर अध्यात्म हमें औरों के प्रति संवेदनशील होना सिखाता है. तनाव होता है स्वयं के बारे में सोचते रहने से, यदि हम अपनी सोच में बदलाव ले आएं और यह विचारें कि क्या इस दौर में हम अन्यों की किसी भी तरह की मदद कर सकते हैं,

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अमृतसर की यात्रा भाग 13 

हमारे सामने पतित पावनी गंगा होले - होल बह रही थी, मानो कोई स्वर लहरी धीरे धीरे फ़िजा में फैल रही हो...जिसकी सुरीली तान सुनने सैकड़ों की तादाद में कान एक ही जगह पर लगे हुए हो। 
हम भी थोड़ा पीछे एक खाली जगह देखकर खड़े हो गए..थोड़ी देर बाद अनुराधा पोडवाल की आवाज में माँ गंगा की आरती गूंजने लगी और नदी के दूसरे छोर पर जगह-जगह दीपों से आरती होने लगी सभी लोग तालियां बजाकर आरती गाने लगे बहुत ही भक्तिमय वातावरण हो गया था..एक निश्छल बहती नदी की आरती, इतना बड़ा जन समुदाय कर रहा था ये सब हमारे देश मे ही सम्भव हो सकता हैं इसीलिए तो हमारा देश इतना महान हैं. 

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इन दिनों 

आजकल मेरे साथ कोई नहीं, 
पर मैं अकेला नहीं हूँ. 
सुबह-सवेरे आ जाते हैं  
मुझसे मिलने परिंदे, 
मैं बालकनी में  
आराम-कुर्सी पर बैठ जाता हूँ, 
मुंडेर पर जम जाते हैं वे, 
फिर ख़ूब बातें करते हैं हम. 

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शक्ति छंद (फकीरी)  

फकीरी हमारे हृदय में खिली।
बड़ी मस्त मौला तबीयत मिली।।
कहाँ हम पड़ें और किस हाल में।
किसे फ़िक्र हम मुक्त हर चाल में।। 

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कुमाऊंनी सरस्वती वंदना  

माँ शारदे माँ शारदे तू ,हम सबू कैं तार दे,

तू छै ज्ञान देवी, स्वरै की देवी ,हम सबू कैं तार दे।

विद्या देवी, बुद्धि देवी, सरस्वती त्यर नाम छ,

वीणापाणी,हंसवाहिनी आदि शक्ति लै नाम छ।

हाथ जोड़ि बै विनती छू माँ ,ज्ञान क भण्डार दे।

माँ शारदे--

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हिन्दुस्तान की फिलवक्त जितनी आबादी है  

स्वामी अग्निवेश एक जन - सन्यासी  

प्रदीप कुमार सिंह  

विनम्र श्रद्धांजलि 
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आज के लिए बस इतना ही...!
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10 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार चर्चा सभी चर्चाकारों को नमन

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  2. विश्वकर्मा जी की आरती से शुभारंभ,और प्रधानमंत्री को बधाई संदेश के साथ-साथ ,विविधिताओं से भरा सुंदर लिंकों का चयन,बेहतरीन प्रस्तुति सादर नमन सर

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  3. विश्वकर्मा जी की आरती से सूंदर शुरुवात
    सुंदर सूत्र संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    आपको साधुवाद
    सादर

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  4. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.

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  5. सभी पोस्ट एक सक बढ़कर एक... बहुत अच्छा संकलन शास्त्री जी

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  6. बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर।

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  7. अनेक रंगों से सजी हुई चर्चा प्रस्तुति

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  8. उम्दा लिंको से सजी सराहनीय चर्चा प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  9. बेहतरीन सूत्रों से सजी सराहनीय चर्चा प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं

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