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बुधवार, जून 15, 2022

"तोल-तोलकर बोल" (चर्चा अंक-4462)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

देखिए कुछ अद्यतन लिंक।

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हिन्दी-आभा*भारत 

(http://www.hindi-abhabharat.com)

यह साइट खुल नहीं रही है!

आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी देखें कि 

कहाँ गड़बड़ है।

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दोहे "बिगड़ गया है वेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

लड़की लड़का सी दिखें, लड़के रखते केश।
पौरुष पुरुषों में नहीं, दूषित है परिवेश।१।
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देख जमाने की दशा, मन में होता क्षोभ।
लाभ कमाने के लिए, बढ़ता जाता लोभ।२।

-0- 

"गरमी में घनश्याम" 

वाक्शक्ति हमको मिलीईश्वर से अनमोल।
सोच समझकर बात कोतोल-तोलकर बोल।।

कुछ लोगों के तंज कीकरना मत परवाह।
आगे बढ़ते जाइएमिल जायेगी राह।।

उच्चारण 

--

समीक्षा “चिन्तन के स्वर” (अभिनव निबन्ध) 

"अशोक निर्दोष" 

(समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

हिन्दी साहित्य में गद्यलेखन की बहुत सारी विधायें हैं किन्तु उनमें सबसे सशक्त विधा निबन्ध लेखन ही है। जिसके लिए शीर्षक प्रथमिकताप्रस्तावनाविषयविस्तार और उपसंहार आवश्यक अंग होते हैं। विद्वान और अनुभवी साहित्यकार अशोक निर्दोष ने कृति में लिखे निबन्धों में इस मर्यादा का सम्यकरूप से निर्वहन किया है और अपने निबन्धों में यह सिद्ध कर दिया है कि आप शब्दों के कुशल  चितेरे भी हैं।

साहित्यकार इस संकलन में सत्रह निबन्धों को स्थान दिया है-

 

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धरती धोरा री 

वीर भूमि धरती धोरा री

 सोन्य बरगो भळके रूप।

भाळ रै पैर घुँघरू बंध्या 

पाणी प्यासा कुआँ कूप।। 

गूँगी गुड़िया अनीता सैनी 'दीप्ति'

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  • हाइकु गीत 
  • खुद बेवफा 
    दूसरों से चाहते 
    करें वो वफा .

    सच कहा तो 
    तमाम दोस्त मेरे 
    हो गए खफा . 
  • साहित्य सुरभि -दिलबाग सिंह विर्क 

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सत्य अजेय है.... एकता ताकत 

सत्य को सब्र चाहिए जिन्दगी में भला कबतक
पत्थर बाजी बिगड़ते बोल भला सहे कब तक
कौन झुका कौन जीता कौन हारा मतलब नही 
थप्पड़ खाकर गाल आगे करता रहोंगे कबतक।।

सागर लहरें उर्मिला सिंह

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Sologamy: क्षमा का ये साहसी फैसला है या सिर्फ़ सनक? 

 
गुजरात के वडोदरा की 24 साल की महिला क्षमा बिंदु ने 9 जून 2022 को खुद से (sologamy marriage) शादी कर ली है। क्षमा का यह निर्णय पूरी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था पर असर डालने वाला होने से चारों ओर इस निर्णय की चर्चा हो रही है। क्या यह शादी के बाद आने वाली जिम्मेदारियों से मुक्ति पाने का रास्ता है? क्या यह युवाओं की सामाजिक रिश्तों का तिरस्कार करने की प्रवृत्ति है या बिना जीवनसाथी के जीवन जीने का साहसिक फैसला? आइए जानते है क्षमा का सोलोगैमी शादी का फैसला एक साहसिक कदम है या उसकी एक सनक? 
सोलोगैमी क्या है? 
क्षमा का सोलोगैमी शादी का फैसला एक साहसिक कदम है या नहीं यह जानने के लिए पहले हमें सोलोगैमी का मतलब समझना होगा। सोलोगैमी का मतलब है किसी व्यक्ति का खुद से ही शादी कर लेना। 

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पौशानाटिका के जलवे 

कोज़प्ले यानि पौशानाटिका

कोज़प्ले की शुरुआत जापान में पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक में हुई, जब कुछ किशोर रोलप्ले वाले खेलों और माँगा कोमिक किताबों के पात्रों की पौशाकें पहन कर मिलते थे। 1990 के दशक में कमप्यूटर खेलों का प्रचलन हुआ जब गेमबॉय जैसे उपकरण बाज़ार में आये तो कोज़प्ले और लोकप्रिय हुआ। तब से आज तक इस कोज़प्ले या पौशानाटिका का दुनिया में बड़ा विस्तार हुआ है। नये कमप्यूटर खेल, विरच्युल रिएल्टी, एनिमेटिड फ़िल्में आदि के पात्र भी इस परम्परा का हिस्सा बन गये हैं। जो न कह सके 

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बाल श्रम पर रोक लगे 

”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,
उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”
........................................................................
”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको , 

ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन 

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पाठकीय में कमल कपूर जी की पुस्तक  छंद विधान के अनुसार लेखन का अपना सौन्दर्य होता है| मात्र ४८ मात्राओं में कोई धारदार बात कह देना दोहा छंद की विशेषता है| इसी ध्र को महसूस करते हुए हम यह पुस्तक पढ़ेगे| पुस्तक लेखन की दुनिया के सहृदय लेखक रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी को समर्पित की गई है| उसके आगे लेखिला का गुरु के प्रति समर्पित दोहै है जो गुरु के प्रति लेखिका का सम्मान प्रदर्शित करता है| 

मधुर गुँजन 

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देखो! हम अब वरिष्ठ लेखक हो गये हैं!  फिर सत्ता पक्ष का मंत्री अपना चार छः गाड़ियों का असला लेकर सिक्यूरीटी के साथ लाल बत्ती और सायरन बजाते न चले तो कौन जानेगा कि मंत्री जी जा रहे हैं. शायद यही सोच कर हम भी हर संभव दरवाजे की घंटी बजाते हैं कि लोगों को पता तो चले कि हम अब वरिष्ठ लेखक हो गये हैं. देखो! हम आज के अखबार में छपे हैं. 

उड़न तश्तरी .... समीरलाल समीर

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भस्मासुर साबित होने लगे हैं इमरान खान 

 

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लाजवाबी 

गुलब्बो कहाँ तक गुलाबी रहेगी,
नजर से कहाँ तक शराबी रहेगी,
मगर नेह की अग्नि उर से उठी है,
जहाँ तक रहे लाजवाबी रहेगी।। 

मेरी दुनिया विमल कुमार शुक्ल

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कुछ अनुभूतियाँ 

सच क्या बस उतना होता है

जितना हम तुम देखा करते ?,

 कुछ ऐसा भी सच होता है

अनुभव करते सोचा करते 

आपका ब्लॉग 

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सेकुलर समाज में ही मुसलमानों का भविष्य बेहतर है  - क़मर वहीद नक़वी | 

 

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यह कम्युनिस्ट होने की तोहमत कैसी है? 

पिछले कई दिनों से अपने 'वामपंथी' या 'कम्युनिस्ट' होने की तोहमत झेल रहा हूं। जब भी मैं कोई ऐसी टिप्पणी करता हूं जिसमें भावुकता की जगह संवेदना की बात होती है, उन्माद की जगह विवेक का पक्ष होता है, अंधविश्वास की जगह तार्किकता की दलील होती है, मंदिर-मस्जिद झगड़ों को व्यर्थ बताने का उपक्रम होता है, इतिहास के तथ्यों पर बात करने की कोशिश होती है, धार्मिक और जातिगत वर्चस्ववाद की जगह लोकतांत्रिक सहमति की वकालत होती है, राष्ट्रवाद के हुजूमी अतिरेक की आलोचना और स्वस्थ आधुनिक नागरिकता का बचाव होता है तो अचानक कई विद्वान लोग किसी कुएं से प्रगट होते हैं और मुझे 'वामपंथी' करार देते हैं। यह बहुत मज़ेदार स्थिति है। 

अभिप्राय 

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किसी के कहने सुनने से 

किसी के कहने सुनने से

 कुछ ना होता पर

जब मन को धुन आए

बिना कहे रह न पाए |

मनमोजी होना मन का

 कोई नई बात नहीं है

पर खुदगर्ज होना है गलत

यही समझ समझ का है फेर | 

 

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कोई इंसान नज़र आए तो बुलाओ उसको 

 https://youtu.be/sSa1_mabHJk 

कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se ** 

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मई 2022 में पढ़ी गई किताबें 

मई 2022 में पढ़ी गई किताबें 
पढ़ने की बात करूँ तो पढ़ने के मामले में मई का माह अप्रैल से बेहतर ही रहा।  अप्रैल में जहाँ मैंने चार रचनाएँ ही पढ़ी थीं वहीं इस बार मई में दस का आँकड़ा छू गया। आजकल व्यस्तता के चलते पढ़ना कम हो रहा है और इस कारण हल्का फुल्का पढ़ने पर जोर है। मई के माह में मैंने पाँच कॉमिक बुक्सचार उपन्यास और एक उपन्यासिका संग्रह पढ़ी। भाषा के हिसाब से देखा जाए तो इस बार केवल हिंदी की ही रचनाएँ मैंने पढ़ीं। हाँ, इन रचनाओं में से एक बाँग्ला से हिंदी में अनूदित रचना थी तो इसे भाषाई विवधता के मामले में  जैसा देखना चाहें देख सकते हैं।   

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नाक 

मालिक ने छीन लिया था
उस दिन भरी बरसात में 
पहरेदार का छाता 
और कहा हट जाकर 
खड़ा हो जा बाजू में
निकल न सकी कोई भी आवाज 
उसके मुख से 

कावेरी 

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समस्या--पूर्ति 

झूठ  पर   झूठ  वो   बोलता  रह   गया,
देखकर   मैं   तो  हैरान-सा   रह   गया।   
    
अर्ज़  हाकिम  ने लेकिन  सुनी  ही  नहीं,
एक  मज़लूम   हक़  माँगता   रह   गया।
       
जीते  जी   उसके, बेटों  ने   बाँटा  मकां,
बाप अफ़सोस  करता  हुआ  रह   गया। 

मेरा सृजन 

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सोचा न था 😔 

यूँ भी यहाँ का हाल होगा, सोचा न था

यूँ शहर बदनाम होगा सोचा न था

बुदबुदाते लबों पर आयतें होंगी ज़रूर  

 दिल में नफरत हाथ में हथियार होगा सोचा न था

🌈🌹शेफालिका उवाच🌹🌈 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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16 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया मेरी पोस्ट को इस में शामिल करने के लिए । और नई पोस्ट से परिचय करवाने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए मंच का अतिशय आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद आदरणीय मरी रचना को स्थान देने के लिए बढिया संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन संकलन।
    सभी रचनाएँ सराहनीय।
    'धरती धोरा री ' को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
    सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. रूपचन्द्र जी, चिट्ठों के सुन्दर आकलन के लिए बधाई तथा उनमें मेरे ब्लाग को जगह देने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. डॉ विभा नायक15 जून 2022 को 1:36 pm बजे

    बढ़िया संयोजन 🌹मेरी रचना भी शामिल करने के लिये शुक्रिया🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी पोस्ट को चर्चा में स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।

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  10. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  11. डोमेन (http://www.hindi-abhabharat.com)

    दोषपूर्ण था अतः उसका पुनः नवीनीकरण नहीं कराया है। अब Blog Address है-
    https://hindilekhanmeridrishti.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

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