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शनिवार, जून 25, 2022

"गुटबन्दी के मन्त्र" (चर्चा अंक-4471)

 शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

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उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत 

इस जगत में जो कुछ भी त्रुटिपूर्ण होता है वह किसी न किसी चाहत के कारण है। स्वयं को पूर्ण करने की चाहत के कारण ही सभी किसी न किसी कर्म में रत हैं, चाहे उनका परिणाम कितना ही विपरीत क्यों न हो। किंतु जो पूर्ण है और स्वयं को अपूर्ण मान रहा है, वह कितना भी कर ले, पूर्णता का अनुभव तब तक नहीं करेगा जब तक अपनी भूल का अहसास न कर ले; स्वयं को पूर्ण स्वीकार न कर ले, अपने अनुभव के स्तर पर जान ले कि वह पहले से ही पूर्ण है। अभाव का अनुभव ही संसार है, तृप्ति का अनुभव ही सन्यास ! पीड़ा का अनुभव ही विरह है और आनंद का अनुभव ही योग ! परमात्मा पूर्ण था, पूर्ण है और पूर्ण रहेगा। उसमें जीवों के कल्याण के लिए सृष्टि का संकल्प जगा। हम सुबह उठकर यह संकल्प जगाते हैं कि हमें आज क्या पाना है ताकि हम थोड़ा सा और पूर्ण हो सकें पर वास्तव में हमारी हर इच्छा अपूर्णता की पीड़ा से उपजी है। हमें भी संकल्प उठाने आ जाएँ कि सबका कल्याण हो, सब सुखी हों। हमें अपनी पूर्णता का भास हो, हम सत्य का साक्षात्कार करें। ऋषियों की वाणी हमें जगाने के लिए आयी है।​​​​​​उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।जब मन में अपने लिए कोई कामना ना रहे और जगत का हित कैसे हो यह भावना जगे तो परमात्मा भीतर से स्वयं ही पूर्णता का अनुभव कराता है। 
डायरी के पन्नों से
 अनीता

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दोहे "गुटबन्दी के मन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

जब भी लड़ने के लिएलहरें हों तैयार।

कस कर तब मैं थामताहाथों में पतवार।1।

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बैरी के सपने करेंकैसे चकनाचूर।

जब अपने हो सामनेहो जाता मजबूर।2। 

उच्चारण 

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उद्धव ठाकरे के सामने मुश्किल चुनौती 

ताजा समाचार है कि गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ 41 विधायक आ गए हैं। इतना ही नहीं पार्टी के 18 में से 14 सांसद बागियों के साथ हैं। शिंदे ने अभी तक अपने अगले कदम की घोषणा नहीं की है। शिवसेना के इतिहास के सबसे बड़े घमासान में एक तरफ़ जहां महाविकास अघाड़ी के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लग गया है, वहीं दूसरी ओर शिवसेना के नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं। बीबीसी हिंदी में विनीत खरे की रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कैसे हो गया कि मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की नाक के नीचे मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बड़ी संख्या में विधायकों ने विद्रोह कर दिया और उन्हें इसकी ख़बर ही नहीं लगीवह भी तब जब मुंबई में जानकार बताते हैं कि राज्य में ये बात आम थी कि एकनाथ शिंदे नाख़ुश चल रहे हैं। बीबीसी मराठी के आशीष दीक्षित की रिपोर्ट के अनुसार शिवसेना के इस संकट के पीछे भारतीय जनता पार्टी का हाथ है। जिज्ञासा 

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पायलट मोनिका खन्ना: एक 'beauty with brain' मसीहा, जिसने 191 लोगों की जान बचाई!! 

आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल 

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गर्ल्स गैंग ट्रिप , किस्से घुमक्कड़ी के भाग 3 

यह  है गुजरात की न भूलने वाली यात्रा जो सिर्फ हम गर्ल्स गैंग ने पहली बार की और बहुत सफल रही, इस यात्रा के मजेदार अनुभव के बाद हमारे इस तरह से घूमने के हौंसले बुलंद हुए😊 कुछ मेरी कलम से  kuch meri kalam se ** 

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पुत्री के नाम पिता का पत्र 

(45 दिन पहले गीतांजली श्री का उपन्यास - ‘रेत समाधि’ भेंट करने वाली दुबईवासिनी सुश्री गीतिका जैसवाल को
उनके पिता जनाब गोपेश मोहन जैसवाल का
प्यार भरा पत्र)
गीतिका रानी,
अपने बूढ़े पिता की इतनी कठिन परीक्षा मत लिया कर.
अब 45 दिनों में जा कर उन्होंने 376 पृष्ठ का उपन्यास - ' रेत समाधि' पूरा पढ़ डाला है.
तेरे पिता श्री का ब्लड प्रेशर कभी बढ़ा, कभी कम हुआ, आँखों के सामने कभी अँधेरा छाया तो कभी चक्कर भी आए.
इस पुस्तक के कुछ अंश उनके पल्ले पड़े, ज़्यादातर पल्ले नहीं पड़े.

तिरछी नज़र गोपेश मोहन जैसवाल

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हकिमवा सोवे रे हारी.. कजरी 

अरे रामा सूखा परा बड़ी जोर,

हकिमवा सोवे रे हारी 

चाहे जेतना मचाऊँ सोर

हकिमवा सोवे रे हारी 


मैं द्वारे पै उनके ठाढ़ी

 बतिया सुनै  हमारी

मैं भूख पियास की मारी रामा

अरे रामा सौ सौ हाँक गुहारी

जियरा मोरा रोवे रे हारी ॥ 

जिज्ञासा के गीत 

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क्षणिका: परिचय 

मैं, नहीं कोई सागर हूं, 

नहीं कोई नदी हूं।

नहीं, मैं कोई झील हूं, 

और नहीं कोई तलैया हूं।।

मैं, तो सिर्फ एक गागर का,,,,

ठंडा - मीठा नीर हूं।। 

Mera Kavya Sankalan मंजू बोहरा बिष्ट 

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अथ श्री बुलडोज़र कथा 

चेतावनी: इस पोस्ट में योगी जी का न तो हाथ है न ही दिमाग इसलिए कृपया MYogiAdityanath योगी जी जैसे अनुभवहीन को इससे जोड़ कर न देखा जाए।* [image: 🤭][image: 🤪] समय के साथ सोच, शब्द, भावनायें और उनकी परिणति ही नहीं बदली बल्कि तेजी से बदलते समय, मशीनीकरण और मानसिकता से प्रेम भी अछूता नहीं रहा है। अभी तक शब्दों और भावनाओं का मानवीयकरण हो रहा था पर आज यहां शब्दों, भावनाओं और मुहावरों का मानवीयकरण न होकर मशीनीकरण होगा। आज के घोर मशीनीकरण और घनघोर टीवीकरण के कर्कश, कर्णकटु स्वर [image: 🥺] [image: 🥺] के प्रदूषण से उपजी एक अनोखी, अनहोनी सी प्रेम कथा प्रस्तुत है यहां।  
रचना रवीन्द्र रचना दीक्षित
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प्रकृति से भयंकर छेड़ छाड़ 

प्रशासन आंखे बंद कर के बैठा है। या सब मिलीभगत से हो रहा है। पता चला कि सब प्रॉपर्टीज वहां के प्रभावशाली लोगों की हैं। यानी रक्षक ही भक्षक हो गए हैं। फिर आम जन भी क्षणिक आनंद के चक्कर मे अपना फर्ज़ भूल रहे हैं, आने वाली पीढ़ी के लिए।

प्रकृति का ऐसा निर्मम दोहन कहीं और देखा है क्या !

अंतर्मंथन 

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मम्मी-डैडी की इकतीसवी विवाह वर्षगाँठ पर कुछ पंक्तियाँ अर्पित। 

इकतीसवी विवाह वर्षगाँठ के सुअवसर पर मेरे प्यारे से मम्मी-डैडी को अनंत बधाई,शुभकामनाएँ और ढेर सारे प्यार संग कुछ पंक्तियाँ अर्पित हैं 🙏💕

हे शतकोटि अंबर सम ऊँचे,

विमल धरित्रि सम गुण भींचे,

हे भवभूषण,हे त्रिपुरसुंदरी,

हे मधु से मधुर आम्र मंजरी,

हम बालक भँवरा सम डोलें,

वात्सल्य-सुधा-रस का सुख भोगें,

अमृत है सौभाग्य हमारा,

भव-सिंधु में आप किनारा, 

आत्म रंजन 

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मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान 

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प्रकृति का वरदान, नहीं संभलता इंसान 
मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान 
मानव तो धरती पर निश्चित समय का है मेहमान 
नदी, कुएँ, झील, बावड़ी, सागर से रखो अपनापन 
ढ़लती उम्र में साथ इनका भुला न पाओगे बचपन 
हरे-भरे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी करते सबको हैरान है 
सदियों से जुड़ाव है, यही तो मानव की पहचान है 
जल-जंगल-जमीन की रक्षा का सबका अभियान हो 
पर्यावरण चेतना से सम्भलता अपना हिन्दुस्तान हो 
मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान 
मानव तो धरती पर निश्चित समय का है मेहमान 

KAVITA RAWAT 

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मनमीत वो ही 

गुम हो, तुम कहीं,
पर तेरी परछाईयां, थी अभी तो यहीं,
तुम, गुम तो नहीं!

ज्यूं पर्वतों के दायरों में, एक खाई,
तलहटों में, सागरों के, दुनिया इक समाई,
लगती, अनबुझ सी इक पहेली,
अन-सुलझी, अन-कही,
यूं, तुम हो कहीं! 

कविता "जीवन कलश" 

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आवाज आवाज कॉलोनी के अभिजात्य सन्नाटे को चीरती वह आवाज सूनी सड़कों पर दौड़ रही थी। सभी घरों के दरवाजे खिड़की किसी आवारा हवा धूल इंसान और आवाज को घर में घुसने से रोकने के लिए कसकर बंद थे। न जाने क्यों और कैसे उस घर के ऊपरी कमरे की एक खिड़की खुली थी और वह आवाज उसमें बेधड़क घुस गई। जिसे सुनते ही वह किताब छोड़कर खिड़की पर आ गई ताकि बिना किसी टूट-फूट के उस आवाज को पकड़ सके। कहानी Kahani कविता वर्मा

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जो ग़ज़लों को रवानी दे रही है जीवन और समाज से आत्मसात किए गए खट्टे-मीठे अनुभवों की एक झांकी ग़ज़ल के रूप में आप अब के संमुख प्रस्तुत कर रहा हूं।उम्मीद है कि आपको पसंद आएगी ---

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
©️ 
अगर  कुछ   सरगिरानी  दे  रही है,
ख़ुशी   भी  ज़िंदगानी  दे   रही  है।

चलो  मस्ती  करें , ख़ुशियाँ  मनाएँ,
सदा  ये   ऋतु   सुहानी  दे  रही है। 
    ---©️ ओंकार सिंह विवेक

मेरा सृजन 

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मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघु कथा  मेरे पापा 

राम सागर बहुत देर से दरवाजा खटखटा रहा था मगर उसकी पत्नी रम्मो जानबूझकर दरवाजा नहीं खोल रही थी 

साहित्यिक मुरादाबाद 

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मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता, इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की रचना मैं हूँ ना 

एक बार एकांत में 

डूब गई गहरे में

कभी कुछ बनाने में 

साहित्यिक मुरादाबाद 

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आज के लिए बस इतना ही...!

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    विविध रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक।
    हर रचना की झलकियां लिंक पर जाने के लिए उत्साहित कर रही । श्रमसाध्य प्रस्तुति । मेरी कजरी को शामिल करने के लिए आपका
    बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी । मेरा सादर अभिवादन ।

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  2. उत्कृष्ट लिंकस से सुसज्जित इस चर्चा के लिए शास्त्री जो मेरा सादर अभिवादन |
    इस प्रतिष्ठित मंच पर मेरी पोस्ट "अथ श्री बुलडोज़र कथा" को स्थान देने के लिए शुक्रिया|

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  3. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!

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  4. बेहद सुंदर भावपूर्ण चर्चा प्रस्तुति

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  5. देर से आने के लिए खेद है, दो दिन मैसूर की यात्रा पर थी, सुंदर सूत्रों का आयोजन, बहुत बहुत आभार शास्त्री जी 'डायरी के पन्नों से' को स्थान देने के लिए !

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  6. देर से आने का खेद है। ब्लॉग के प्रति आपकी निष्ठा स्तुत्य है। हार्दिक धन्यवाद मेरी कहानी को शामिल करने के लिए

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