आप सभी को मेरा नमस्कार , फिर सजा कर लायी हूँ काव्य की थाली…कुछ अक्षत हैं तो कोई रोली , कुछ चन्दन है तो कोई आरती का दिया…कुछ राई के दाने हैं तो थोड़ी मिश्री भी है….और आपके आगमन से पहले स्वागत हेतु सजा दी है काव्यमयी रंगोली ….आपसे विनम्र निवेदन है कि छक कर करें कविताओं का रसास्वादन……आज की चर्चा प्रारम्भ करते हैं डा० रूप चन्द्र शास्त्री जी की इस वंदना से ………… |
उच्चारण » पर डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की खूबसूरत रचना पढ़िए “पाँव वन्दना”….. किन पावों की वंदना कर रहे हैं कवि….जानिये कविता पढ़ कर - पूजनीय पाँव हैं, धरा जिन्हें निहारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। चरण-कमल वो धन्य हैं, जो जिन्दगी को दें दिशा, वे चाँद-तारे धन्य हैं, हरें जो कालिमा निशा, प्रसून ये महान हैं, प्रकृति है सँवारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। |
शिखा वार्ष्णेय की जीवन के प्रति एक सकारात्मक सोच लिए कविता का आनन्द उठाइए स्पंदन पर आज इन बाहों मेंरक्तिम लाली आज सूर्य की यूं तन मेरा आरक्त किये है. तिमिर निशा का हौले हौले मन से ज्यूँ निकास लिए है. उजास सुबह का फैला ऐसा जैसे उमंग कोई जीवन की आज समर्पित मेरे मन ने सारे निरर्थक भाव किये हैं |
शानू शुक्ला राष्ट्र सर्वोपरि » पर अपने क्रोध से ही कुछ पूछ रहे हैं.. कि ऐ मेरे क्रोध तुम कब आये ? ऐ मेरे क्रोध | नवनीत पांडे जी बहुत सुन्दर शब्दों में प्रेम की हर बात बता रहे हैं.. एक और प्रेम कविताप्रेमतुम केवल प्रेम क्यूं नहीं हो क्यूं है तुम्हारे साथ तुम्हारी चाह तुम्हारी आह क्यूं बेकल है हर कोई जानने के लिए तुम्हारी थाह |
शोभना चौरे जी पिछडेपन की अहमियत बताते हुए क्या कहना चाहती हैं..आइये ज़रा जाने..उनकी अभिव्यक्ति » पर पिछड़ापन उनमे कोई न कोई कहानी जीवित है , इसीलिए खंडहर सदा आकर्षित करते रहे मुझे |
राज़ी शहाब Awaz Do Hum Ko से कह रहे हैं कि तुमसा कुछ पाना चाहता हूं..पाने को तो बहुत कुछ हैपर तुमसा कुछ पाना चाहता हूं मुस्कुराते हुए लब मस्ती में डूबी निगाहें और गालों पर फैली थोड़ी सी लाली पाने को तो बहुत कुछ है... | क्रांतिदूत अपने ब्लॉग क्रांतिदूत » पर अपना पक्ष रख रहे हैं कि चश्मदीद मैं भी हूं.राक्षस बाप के हाथोंलक्ष्मी बिटिया के गर्दन कटने का, राखी पहनानेवाली हाथों को भरोसे की अंगुली पकङाकर कोठे तक पहुंचाने का चश्मदीद मैं भी हूं. |
अमिताभ » ब्लॉग अमिताभ जी का है जिस पर वो ईसा वाक्य की महिमा बता रहे हैं -- -मैं भूल गया उन मानसिक दबावों, जानबूझ कर दिये गये अप्रत्यक्ष तनावों को, भूल गया तमाम कडवे अनुभव....... |
अरुणा कपूर जी अपनी मेरी माला,मेरे मोती... पर बाढ़ से भी राहत मिलती है..पर ये कैसी बाढ़ है आइये जाने इस कविता से … जहाँ बाढ़ है आशीर्वाद!और साहित्य के आकाश का.... रंग गहराता चला गया...... लाल, पीला , नीला , नारंगी... इन्द्रधनुष के सात रंग.... एक रंग में रंग गए.... |
मोनाली जौहरी मन के झरोखे से... पाप और पुण्यकी बात कितनी संवेदनशीलता से कर रही हैं..कमरे की खामोशी में उनकी आंखों से दर्द बहा करता है और मैं उसे चुप्चाप पी लिया करती हूं करते हैं जब सब उनसे अपनेपन की बातें... झूठे दिखावे के कडवे किस्से और एह्सान के तौर पर जागती रातें. | Tajurba पर मुहम्मद शाहिद मंसूरी “ अजनबी" परेशान हैं कि सारी शाम जाया कर दी इक शाम और जाया कर दी हमेशा की तरह देखकर यूँ ही चंद तमाशे और झूठी तालियों के दरमियाँ तमाम बनावटी चेहरे भागती हुई ज़िन्दगी की रेस से चंद ठिठके हुए क़दम !!! |
साधना वैद जी कितनी मासूमियत से कह रही हैं कि बस इतना ही तो तुमसे माँगा था….पढ़िए उनके Sudhinama पर छोटी सी आशा …. मुट्ठी भर आसमान टुकड़ा भर धूप दामन भर खुशियाँ दर्पण भर रूप इतना ही बस मैंने तुमसे माँगा है ! |
अभिषेक कुशवाहा की एक नयी कविता पढ़िए आर्जव पर वैजयंती … कहॊ ! राग की यह वैजयन्ती तुम कहां से लहा लाये ? सजाये पलाश-पल्लव , गूंथ माला, फेर दी नेह विजड़ित मन मेरा , बन मुर्तिका , सज गया ! |
स्वार्थपर पढ़िए कृष्ण बिहारी की रचनाख़तरनाक डगर बहुत आसान है … बहुत आसान है किसी से प्यार कर लेना चाहने लगना झूमते हुये बांस के पेड़ों की तरह हवा को। | मानवीय सरोकारपर डा० सुरेश उजाला जी की कवितामज़बूरी पढ़ें --लाचार-मज़बूर-अशक्त | Apne-apne Raste..परदिव्या पांडे ढूँढ रहीं हैं अपनीएक कवितापढ़ा था कहीं...कि मन के भावों को बस लिख भर देने से बन जाती है कविता ... तो फिर कहाँ हैं मेरी तमाम कवितायेँ जो मैंने कभी लिखनी चाही थी पर लिख नहीं पायी थी |
वंदना गुप्ता संवरिया को ढूँढने का असफल सा एक प्रयास » कर रही हैं …उनकी विरह वेदना को इस कविता काहे भूल गए सांवरिया... में महसूस कीजिये .. प्रियतम प्राण प्यारे नैना जोहते बाट तिहारी तुझ बिन तडपत रैन हमारी पी -पी पुकारत सांझ सकारे |
इन्द्रनील भट्टाचार्य जज़्बात, ज़िन्दगी और मै … पर लाये हैं पगडण्डी १ उसे बारिश में भींगना, पसंद है बहुत ! मुझे नहीं । बस इसी बात पे, हमारे बीच चमकती है बिजलियाँ |
मिताली पुनिथा mere sapno ki duniya... पर बता रही हैं मन और इच्छाऐँ.. आखिर क्या हैं .. तन के किसी कोने मेँ बसा एक छोटा सा संसार। मन रूपी संसार, एक प्यारा सा संसार... ये संसार ही तो है | --डीहवारा ब्लॉग पर रजनीकांत जी एक ऐसे खत की बात कर रहे हैं जो लिखा ही नहीं है… एक अनलिखा खतचाहता हूँ मैं कि तुमको ख़ूबसूरत ख़त लिखूं ख़त कि जिसमें मौन भी हो बात भी हो ख़त कि जिसमें चाँद भी हो रात भी हो ख़त कि जिसमें शबनमी सौगात भी हो ख़त कि जिसमें स्नेह की बरसात भी हो |
स्वप्निल कुमार “ आतिश “ को पढ़िए कोना एक रुबाई का पर .. तन्हाई को टा टा कर …कुछ भी कहने से बेहतर है की नज़्म पढ़ी जाये .. तन्हाई को टा टा कर कुछ तो सैर सपाटा कर फटे पुराने चाँद को सी अपनी रातें काटा कर आवाज़ों में से चेहरे अच्छे सुर के छाँटा कर |
ज्योत्स्ना मैं... » पर ज्योत्सना पाण्डेय जी कर रही हैं चिर-प्रतीक्षा ….शब्दों का चयन और भाव बहुत सुन्दर हैं….आप भी पढ़ें… कब तक अवगुंठित रहूँ जीवन या जीवन-क्षरण में? मैंने तो न देर की प्रिय! आपके शुभ संवरण में...... प्रेम वर्षा से प्रिय तुम आज अंतस सिक्त कर दो, संग रहना तुम सदा ही प्रेम के इस आचरण में.... |
यथार्थ » पर पढ़िए राहुल रंजन की व्यथा न थकन, न चुभन न शोक, न आह्लाद, बस चिंतन-मनन कर रहा हूँ. न विघटन, न विखंडन, न प्रतिकार,न चीत्कार बस भावनाओं का दमन कर रहा हूँ. | Dr. Ajay की "अभिव्यक्ति" पर पढ़िए जीना तो पड़ेगा ही ! जीना तो पड़ेगा ही ! उदासी और ख़ुशी की - एक ही है सबा दोनों को दिल के बात कहने की मिलती है सजा । मगर जीना तो पड़ेगा ही ....... |
प्रतिभा सक्सेना जी के ब्लॉग तक पहुंचाने के लिए सतीश सक्सेना जी को धन्यवाद ..उत्कृष्ट हिंदी भाषा का नमूना देखना है तो इनके ब्लॉग पर अवश्य जाईएगा..इनके दो ब्लोग्स से परिचय करा रही हूँ.. शिप्रा की लहरें पर पढ़िए बंधु रे !बंधु रे , लौट चलो अब ! इतनी देर मत कर देना कि तुम्हारी ही धरती तुम्हें पहचान न सके , :भूल जाये तुम्हारा नाम और पहचान । यात्रा - एक मन की पर पढिये प्रथम छंदवह प्रथम छंद, बह चला उमड़ कर अनायास सब तोड़ बंध, ऋषि के स्वर में वह वह लोक-जगत का आदि छंद ! |
अनामिका की सदायेंपर पढ़िए जीवन दर्शन…दे दो मुझको माटी रूपमुझको दे दो माटी रूप.मंद मंद मुस्काते नारद तथास्तु कह, कर गए गमन. स्वप्न सच हो गया मेरा अंत मिलन है माटी रूप | अपूर्ण » पर निपुण पाण्डेय कर रहे हैं एक सवाल....कभी किसी अँधेरी गुफा में देखा हैकैसे लटके रहते हैं चमगादड़ और टोर्च से निकलते ही एक जरा सी रौशनी उड़ने लगते हैं अचानक ना जाने क्यों ? ना कोई मकसद, ना कोई मंजिल, बस उड़ते रहते हैं | |
---- Nitin Jalan पर पढ़िए कुछ रिश्ते….. कुछ रिश्ते न कहे जाये. न बोले जाये, न सुने जाये, न देखे जाये ********************************************************* ------- काव्यांजलि » पर (title unknown) शाम से लेकर सुबह का इन्तजार इन दो पहरों में दूरियाँ हुई हजार |
नीरज जी नीरज पर बता रहे हैं की कैसी थाली पूजा की थाली हो गई बात सचमुच में निराली हो गईं अब नसीहत यार गाली हो गई ये असर हम पर हुआ इस दौर का भावना दिल की मवाली हो गई डाल दीं भूखे को जिसमें रोटियां वो समझ पूजा की थाली हो गई |
और अब पूजा( चर्चा ) के अंत में मनोज जी की मनोज » पर एक प्रार्थना तेरी अनुकंपा से प्रभु ! तेरी अनुकम्पा से जेठ की दोपहरी भी सावन की भोर भई . शब्द नए मिलने लगे गीतों को अर्थ मिला.. |
आशा है कि आज की काव्य प्रार्थना - सभा आप लोगों को रुचिकर लगी होगी….इसी उम्मीद के साथ फिर हाज़िर होऊँगी अगले मंगलवार को साप्ताहिक काव्य मंच सजा कर…तब तक के लिए विदा…..नमस्कार .. |
आज की काव्य चर्चा भी सुन्दर रही.
जवाब देंहटाएंबहुत हा परिश्रम के साथ आपने चर्चा के साप्ताहिक काव्य-मंच को सजाया है!
जवाब देंहटाएं--
संगीता जी!
आपके श्रम को नमन है!
bahut sundar charcha...
जवाब देंहटाएंaabhaar..
सुंदर चर्चा,सब से मिल्वाने के लिये आभार...
जवाब देंहटाएंआज की प्रार्थना संगीतमय रही और सप्ताह भर की कविताओं के विस्तृत स्वरूप का दर्शन करा गई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा के लिए आभार संगीताजी ! आपने इसे कितनी रूचि के साथ सजाया है उसकी जितनी सराहना की जाये कम ही होगी ! आपको कोटिश: धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा काव्य चर्चा ! आभार !
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ! आपकी चर्चा सुन्दर है ... बहुत सारे लिंक मिले जिनमे बढ़िया रचनायें पढ़ पाया ... आभार
जवाब देंहटाएंरचनाकारों, कवियों/कवयित्रियों लेखकों/लेखिकाओं की सामग्रियों के प्रस्तुतीकरण से उसके स्वरूप मे चार चांद लग जाता है और यह है आदरणीया संगीता स्वरूप के परिश्रम का नतीजा। आज पढ़ने को कुछ और सामग्री बाकी है। कार्यालय जाना है। फिर होगा पठन।
जवाब देंहटाएंbadhiya links mile
जवाब देंहटाएंकाव्य की थाली…कुछ अक्षत हैं तो कोई रोली , कुछ चन्दन है तो कोई आरती का दिया…कुछ राई के दाने हैं तो थोड़ी मिश्री भी है….और आपके आगमन से पहले स्वागत हेतु सजा दी है काव्यमयी रंगोली.....wah ji maja aa gaya itni sunder saji thali dekhkar to.
जवाब देंहटाएंbahut sunder charcha aur apki itni acchhi mehnat ke liye aabhari hu me aur ye charcha manch.
bahut sundar kaavy charchaa.
जवाब देंहटाएंकितना कुछ सुंदर...और फिर सब कुछ एक जगह पर!....मानों एक ही पौधे पर विविध रंगों के. खुश्बु की विविधता लिए हुए...सुंदर मनोहारी फूल खिले है!....सुंदर प्रायोजन के लिए धन्यवाद संगीताजी!
जवाब देंहटाएंaapki charchaon ka intjaar rahta hai :)
जवाब देंहटाएंbahut mehnat ki hai aapne dekh ke hi lagta hai ...ek dum sloid charcha ...:)
जवाब देंहटाएंआपकी तो भूमिका पढकर ही मन खुश हो जाता है ..बहुत सुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंबेहद सुरूचिपूर्ण चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार्!
वाह वाह्…………………आज की चर्चा तो बेहद सुन्दर है……………एक से बढकर एक कवितायें लगाई हैं…………॥आपकी मेहनत सार्थक हुयी।
जवाब देंहटाएंवाह वाह्…………………आज की चर्चा तो बेहद सुन्दर है……………एक से बढकर एक कवितायें लगाई हैं…………॥आपकी मेहनत सार्थक हुयी।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद पहली बार चर्चा में शामिल हुई हूँ |आपके श्रम को देखकर नतमस्तक हूँ |
आभार |एक से एक अच्छी रचनाये पढने को मिली |
संगीता जी!
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच पर टिप्पणियाँ तो लगातार आ रही हैं! मगर क्या कारण है कि वो दिखाई नही दे रही हैं!
सुंदर संकलन है कविताओं का ...
जवाब देंहटाएंदी आपकी तो भूमिका पढकर ही मन प्रसन्न हो जाता है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा है.
बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंYe to kavitaayo ka khazanaa mil gaya achanak se...thanks a lot...
जवाब देंहटाएंYe to kavitaayo ka khazanaa mil gaya achanak se...thanks a lot...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा बन पड़ा है संगीता जी...मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका आभार..!!
जवाब देंहटाएंआप लोगों का यह प्रयास काफी सराहनीय है, काफी मेहनत का भी। मेरी अनेकानेक शुभकामनायें हैं, इसी तरह एक मंच पर अनेक ब्लॉग एकत्रित होते रहे../
जवाब देंहटाएंचर्चा-मंच पहली बार देख रही हँ,आपका परिश्रम इन चुनी कविताओं द्वारा बहुतों को आनंदित कर रहा है. हाँ आप संभवतः 'सतीश सक्सेना' जी के नाम के बजाय 'अजीत सक्सेना' लिख गई हैं.
जवाब देंहटाएंयहाँ की रचनाएं और जानकारियाँ मुझे बार-बार यहाँ खींच लाएँगी.
आपने मेरी कविताएं मंच के लिए चुनी -आभारी हूँ.
श्रमसाध्य कार्य है इतने सारे कविताओं के ब्लोग्स का परिचय और लिंक देना ...बधाई व आभार !
जवाब देंहटाएंमनभावन काव्य चर्चा ।
जवाब देंहटाएंप्रतिभाजी आपने सही कहा...गलती से ही मैंने सतीश जी के नाम कि जगह अजीत लिख दिया था....
जवाब देंहटाएंभूल सुधार ली गयी है
आभार.
अचरज है कि कल मैंने यहाँ जो टिप्पणी की थी, वो गायब है ...
जवाब देंहटाएंखैर, मैं यही कहना चाहूँगा कि चर्चा बहुत बढ़िया है ... आप इतने सारे सुन्दर रचनाओं को सामने लायी हैं ... आभार !
आज की चर्चा भी काफी महत्वपूर्ण है. काफी अच्छे लिंक्स है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ..... बेहतरीन चर्चा...... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंमै भी आश्चर्यचकित हूं, ढूंढ रहा हूं अपनी टिप्पणि। कल जो यहां छोड़ गया था। आज गायब है। ह्रदय से कहता हूं सभी रचनाकारों की रचनाओं के स्वरूप से अवगत कराने का सराहनीय कार्य किया है आपने। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंsangeeta ji main tahe dil se aabhari hoon ,jo aapne mujhe is kabil samjha .aur isi bahane anya rachnakaro ki bhi sundar sundar rachnaye padhne ko mili yahan ,shukriya aapka .
जवाब देंहटाएंआदरनिये संगीता जी,
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पहली बार आया , आपने लिंक दिया सो ऐसी महफ़िल में शामिल हों पाया. क्या शमा बाँधा है आपने, यकीनन दिल को भा गया.
ख़ुशी होती है, सुकून मिलता है, ऐसे मंचों पर आने पे.
शुक्रिया मेरी नज़्म को यहाँ दर्शाने के लिए.
शाहिद 'अजनबी"