ललितडॉटकॉम
पहली जुलाई है--स्कूल चलो--स्कूल चलो-----ललित शर्मा - आज जुलाई की पहली तारीख है, स्कूल जाने का दिन। जब पहली बार स्कूल में नाम लिखाने गए दादा जी के साथ तो इतना भय नहीं था। लेकिन जब एक साल बाद दूसरी क्लास की पढ... |
सवाल....
| Author: निपुण पाण्डेय | Source: अपूर्ण
कभी किसी अँधेरी गुफा में देखा है कैसे लटके रहते हैं चमगादड़ और टोर्च से निकलते ही एक जरा सी रौशनी उड़ने लगते हैं अचानक ना जाने क्यों ? ना कोई मकसद, ना कोई मंजिल, बस उड़ते रहते हैं |
एक अनलिखा खत
Author: prkant | Source: deehwara
चाहता हूँ मैं कि तुमको ख़ूबसूरत ख़त लिखूं [read more] |
"मैंने देखा है सब कुछ" ......................................
Jun 30, 2010 | Author: Archana | Source: मिसफिट:सीधीबात |
मेरे मन की
वाह !!! क्या अदा है ............................................ - ------आपके लिए एक गिफ़्ट है ...................अदा जी की एक गज़ल.................मैने गाई है ..................पर अभी अदा जी से अनुमति नही मांगी है..... ---... |
प्रतिभा की दुनिया ...!!!
सितारों भरी रातें, प्यार की बातें... - अरे..अरे..अरे...इतनी तेज सीढिय़ां मत चढ़ो, गिर जाओगी.रुक जाओ...रुक जाओ...अरे रुको भी. लड़का पीछे से चिल्लाता रहा. लेकिन लड़की के कान आज मानो सुनने के लिए थे... |
उफ़ ब्लागिरी.कॉम ने तो पसीना छुडवा दिया..
काजल कुमार Kajal Kumar | Source: नुक्कड़
पता नहीं किस सर्वर से चलती है ये साईट ...डायल अप दिनों की याद ताज़ा कर दी इसने, इससे धीमी साईट पर गए ज़माना हो गया था मुझे. पहले तो ये ही नहीं पता चला की url कैसे जमा कराएं. माथा पच्ची करने दे बाद तुक्का लगाया की शायद पहले रजिस्टर करने की चिरोरियाँ करता लगती है ये साईट भी. रजिस्टर करने के बाद भी कल से submit करने की कोशिश कर रहा था ...पर आज सहनशीलता जवाब दे गई. |
कवि की संगत कविता के साथ : 8 : समर्थ वाशिष्ठ
Author: anurag vats | Source: सबद...
{ समर्थ अपने नामानुरूप ही कविता और गद्य लिखने वाले युवाओं में विशिष्ट हैं. हिंदी की पहली कविता-पुस्तक यहां छपी ऐसी ही अनेक कविताओं से इन दिनों बन रही है. अंग्रेजी में उनकी दो कविता-पुस्तक पहले आ चुकी है. इस स्तंभ लिए उन्हें न्योतने की एक वजह इधर लिखी जा रही युवा कविता और विचार के बहुरंग से पाठकों को लगातार अवगत कराना भी है.} आत्मकथ्य |
मौन के खाली घर में... ओम आर्य
सपने बिना शीर्षक के अच्छे नहीं लगते - *जिस सपने में पहली बार तुम मिली मुझे उसे मैंने जागने के बाद न जाने कितनी बार देखा होगा पहले की तरह हीं आगे भी मैं देखता रहूँगा बार-बार उसे, उस ख्वाब को जिसम... |
स्वप्नदर्शी
बँटवार - किसी अबावील की तरह दिन उड़ते है पंजों में दबाये जीवन हर रोज़ कुछ शब्द बचे रहते है कुछ प्यार बचा रहता है सौ संभावनाएं सर उठाती हैं उम्मीद बची रहती है उसी क... |
मेरी छोटी सी दुनिया
"परती : परिकथा" से लिया गया - भाग ३ - गतांक से आगे : मूर्छा खाकर गिरती, फिर उठती और भागती । अपनी दोनों बेटियों पर माँ हंसी--इसी के बले तुम लोग इतना गुमान करती थी रे ! देख, सात पुश्त के दुश्मनों... |
शब्दों के माध्यम से
आज उसके रुखसार को जी भर देखा - आज उसके रुखसार को जी भर देखा मुस्कुराई वह या वस्ल की वो राहत थी... जर्द चेहरे पर भी एक नूर सा आ गया उस नज़र में भी क्या बरकत थी... गुल भी खिले थे, खार भी द... |
अजेय
कविता मे एक और सुरंग - कल सोनिया गाँधी मनाली आ रहीं हैं। रोह्ताँग सुरंग का शिलान्यास (दूसरी बार) करने। लाहुल की जनता प्रफुल्लित है. इस *फील गुड* अवसर पर भारत सरकार और लाहुल वासिय... |
हलंत
फुर्सत में पहाड़ की सैर और कुछ तस्वीरें - कोई दस-बारह सालों बाद पहाड़ों की ओर रुख किया इसलिए काफी उत्साहित और रोमांचित था. पहाड़ मुझे बहुत आकर्षित करते हैं और इस बार कुछ लोगों से भी लम्बे अरसे के बा... |
बृहस्पतिवार की रात आठ बजे जब आखिरकार यह कन्फर्म हो गया कि पति-पत्नी दोनों को अपने-अपने दफ्तरों में दो दिन की छुट्टी मिल गई है और तीसरी छुट्टी के रूप में इतवार का आनंद भी उठाया जा सकता है, तो सवाल उठा कि छुट्टियों की इस संपदा का आखिर करें क्या। बेटे की छुट्टियों का यह आखिरी हफ्ता है, सो इस नेमत को हाथ से जाने नहीं दिया जा सकता था। लेकिन बीतते जून की भीषण गर्मी में दिल्ली के आसपास घूमने का कोई मतलब नहीं था और इतने कम समय में दूर जाने की थकान की कल्पना ही मारे डाल रही थी। कहां जाएं, कहां जाएं, |
एक ज़िद्दी धुन
बनारस से वाचस्पति जी ने फोन पर बताया कि आज बाबा नागार्जुन की जन्मशती शुरु हो रही है। बाबा से उनका आत्मीय रिश्ता रहा है. इच्छा यही थी कि वे ही कोई टुकड़ा यहाँ लिख देते पर तत्काल यह संभव नहीं था. इसी बीच किसी ने कबीर जयंती की बात बताई जिसकी मैंने तस्दीक नहीं की लेकिन यूँ ही लगा कि कबीर और नागार्जुन के बीच गहरा और दिलचस्प रिश्ता है…. |
यूनुस ख़ान का हिंदी ब्लॉग : रेडियो वाणी ----yunus khan ka hindi blog RADIOVANI
'उड़ जायेगा हंस अकेला' :कुमार गंधर्व। अफ़सोस उनकी फ़रमाईश पूरी न हो सकी और वो चली ग… |
शब्दों के माध्यम से
आज उसके रुखसार को जी भर देखा - आज उसके रुखसार को जी भर देखा मुस्कुराई वह या वस्ल की वो राहत थी... जर्द चेहरे पर भी एक नूर सा आ गया उस नज़र में भी क्या बरकत थी... गुल भी खिले थे, खार भी द... |
सर, आपके घर चोर आये हैं!!!
Author: Udan Tashtari | Source: उड़न तश्तरी ....
एक बार कहीं का सुना किस्सा याद आ रहा है |
Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
कार्टून:- मालामाल वीकली -
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बहुत अच्छी और विस्तृत चर्चा....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्दे अच्छे लिंक्स मिले .. आभार !!
जवाब देंहटाएंgood links
जवाब देंहटाएंमेरे द्वारा एक नया लेख लिखा गया है .... मैं यहाँ नया हूँ ... चिटठा जगत में.... तो एक और बार मेरी कृति को पढ़ाने के लिए दुसरो के ब्लॉग का सहारा ले रहा हूँ ...हो सके तो माफ़ कीजियेगा .... एवं आपकी आलोचनात्मक टिप्पणियों से मेरे लेखन में सुधार अवश्य आयेगा इस आशा से ....
जवाब देंहटाएंसुनहरी यादें
बहुत अच्छी और विस्तृत चर्चा....
जवाब देंहटाएंआभार....
bahut sundar charcha ki hai .......kafi naye links bhi mile .......aabhaar.
जवाब देंहटाएंbahut acchhe links mile..abhar.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और विस्तृत चर्चा....आभार !
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहद उम्दा चर्चा ! मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंअरे वाह ! बहुत सुन्दर चर्चा ! अनजाने लोगों की चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंएक ही जगह पर इतनी सुन्दर रचनाओं के लिंक मिलना बहुत अच्छा है ! :):) बस पढ़ते रहना है ! :)
badhiya charcha
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार.. नए लोगों को प्रोत्साहन की सच में बहुत आवश्यकता है..
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