हिन्दी साहित्य मंच पर एक बेहतरीन तस्वीर देखिए श्यामल की कूची से शब्दों का कमाल! अगर तू बूँद स्वाती की, तो मैं इक सीप बन जाऊँ कहीं बन जाओ तुम बाती, तो मैं इक दीप बन जाऊँ अंधेरे और नफरत को मिटाता प्रेम का दीपक बनो तुम प्रेम की पाँती, तो मैं इक गीत बन जाऊँ |
बुरा भला सुना रहे हैं शिवम् मिश्रा और कहते है समीर भाई और धीरू भाई ............कहाँ हो आप लोग ?? एक बहुत ही बुरी खबर लाया हूँ !! एक नया मीटर आ गया है ...................साला सवारी के वजन के हिसाबसे चलेगा !! :-( मतलब समझे ................हम में से कोई भी जब किराया पूछेगा तब जवाब मिला करेगा...............२० रूपया किलो के हिसाब से चलेगे बाबु जी !! |
अनुभव पर गिरीन्द्र नाथ झा कहते हैं फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्य पर चर्चा के साथ उनके इलाके पर भी चर्चा होनी चाहिए. रेणु के गांव में उनकी प्रासांगिकता. कोसी के दोनों पाटों के बीच गूंजती हैं चिड़िया-चूरमून की आवाजें...चूं..चूं.चूं.। भैया उठिए, आ गया रेणु का देश, भोर (सुबह) हो गई है। जम्हाई लेते हुए, गाड़ी से बाहर देखता हूं। बांस-फूस की बनी बस्तियां। कुछ पक्के मकान भी। मटमैल धोती और कुर्ते में एक बुजुर्ग पर नजर टिकी तो उसने पूछा- कि बात भाईजी, गाम में पहली बार आएं है क्या? किसके घर जाना है? मैंने कहा, रेणु जी का घर किधर है? उन्होंने पूछा- दिल्ली-विल्ली से आए हैं क्या? रिसरच (रिर्सच) करने आए हैं?दरअसल यहां बाहर से लोग रेणु के गांव की फोटू उतारने आते हैं..फेमस राटर (राइटर) कहते हैं सब रेणु बाबू को………….। |
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय जी कहते हैं दिन दिन से बनता जीवन मुझे एक दिन में एक जीवन का प्रतिरूप दिखता है। प्रातः उठने को यदि जन्म माने और रात्रि सोने को मृत्यु तो पूर्वाह्न, अपराह्न और सायं क्रमशः बचपन, यौवन व वृद्धावस्था के रूप में प्रकट हो जाते हैं। इस समानता का दार्शनिक अर्थ निकाला जा सकता है, इसे वैज्ञानिकता से सुस्पष्ट करना रोचक हो सकता है पर इसका कोई व्यवहारिक संदेश भी है, यह प्रश्न कभी कभी चिन्तन को कुरेदने लगता है। |
सप्तरंगी प्रेम पर सप्तरंगी प्रेम ' आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को तरंगित करती डॉ.मीना अग्रवाल जी की कविता 'सार्थक संगीत'प्रस्तुत कर रहे हैं। स्मृतियाँ धुन हैं बाँसुरी की जो सुनाई देती हैं कहीं दूर बहुत दूर, मन की वीणा झंकृत हो मिलाती है स्वर बाँसुरी के स्वर में, तन के घुँघुरू लगते हैं थिरकने |
कुछ औरों की , कुछ अपनी ... पर अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी बताते हैं कि यह पत्र शहीद कॉमरेड चंद्रशेखर की माँ द्वारा लिखा गया था , शहीद की मृत्यु पर सरकार द्वारा दिए गए एक लाख के बैंक-ड्राफ्ट को लौटाते हुए | कॉ. चंद्रशेखर नवें दशक की भारतीय छात्र-राजनीति के जुझारू नायक के तौर पर जाने जाते हैं | इनकी हत्या सीवान , बिहार के तत्कालीन सांसद शहाबुद्दीन द्वारा की गयी | हत्यारे को आज भी सजा नहीं दी गयी है | यह भारतीय लोकतंत्र पर एक धब्बा है | जे.एन.यू. छात्र-संघ के अध्यक्ष रह चुके कॉ. चंद्रशेखर जे.एन.यू. की छात्र-राजनीति के एक युग के तौर पर जाने जाते हैं | शहीद चंद्रशेखर पर हम गर्व करते हैं ! |
मैं और मेरी कलम पर Prem Kumar Sagar बताते हैं सत्यजित रे, गोविन्द निहलानी, श्याम बेनेगल और प्रकाश झा जैसे फिल्मकारों की याद आते ही अगर कुछ जुबान पर आता है तो वो है कहानी और किरदार, पर बदलती सोच से बदलते दौर में भारतीय सिनेमा को आज अगर देखा जाय तो कहानी और किरदार से भी पहले स्टार और मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को नजरंदाज नही किया जा सकता। |
सर्प संसार (World of Snakes) पर ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ बताते हैं साँप काटने की दशा में यदि प्रभावित व्यक्ति को साँप झाड़ने वाले ओझाओं के पास जाने के बजाए यदि सक्षम डाक्टर के पास ले जाया जाए और एंटीवेनम लगवाया जाए, तो जहरीले साँप के काटने पर भी रोगी को बचाया जा सकता है। |
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र पर डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर का कहना है राग अलापना है तो अलापना है। यह बात उसके ऊपर पूरी तरह से सिद्ध होती है जो कुछ भी करने की ठान लेता है फिर चाहे बात बने या बिगड़े। यही बात बहुत हद तक हमारे प्यारे से देश और पड़ोसी अतिप्यारे देश पाकिस्तान के संदर्भ में भी सौ फीसदी सिद्ध होती है। (चित्र गूगल छवियों से साभार) पहले अपनी एक बात को स्पष्ट कर दें नहीं तो पता नहीं क्या हो जाये। पाकिस्तान अतिप्यारे की श्रेणी में इस कारण से आता है कि हमारे ऊपर वो किसी भी तरह की कार्यवाही करे हम तो उसके साथ शान्ति-शान्ति का राग अलापते रहेंगे। आप कुछ भी कहो मगर हमारे देश के अतिप्रबुद्ध वर्ग को लगता है कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते मधुर होने की चाहिए। |
.....मेरी कलम से..... पर Avinash Chandra की लाजवाब प्रस्तुति पढिए। ओ स्वेद की बूंदों बह जाओ, अब धरा ही देगी नेह तुम्हे. इतने दिन रक्त से क्या पाया, क्या दे पाई यह देह तुम्हे. क्या जिजीविषा, क्या माँसल तन, और क्या धीरज के विरले क्षण. ये सब कवि की भ्रामकता है, अब भी है क्या संदेह तुम्हे. |
ज़िन्दगी पर वन्दना जी की अभिव्यक्ति। खुले विचारों के साथ स्वच्छंद उड़ान भरती औरत माँ बनते ही वो भी एक बेटी की माँ उस पर जवान होती बेटी की माँ के सभी खुले विचार ना जाने कब दरवाज़े की चूल में फँसकर चकनाचूर हो जाते हैं |
अनामिका की सदाये... पर अनामिका की सदाये...... की प्रस्तुति। ज़ख्म-ए-ज़िन्दगी को भरम में बहला भी ना सके हंसी से खुद के घाव सहला भी ना सके ! रातों की तन्हाइयाँ जिन्दगी को चाटती गयी, खुद के शव पे आंसू बहा भी ना सके ! बिस्तर की चादर में लिपट खुद को कफ़न तो दे दिए हिज्र की जलन से मगर इस शव को जला भी ना सके ! |
बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंरविवासरीय चर्चा बहुत बढ़िया रही!
जवाब देंहटाएंसुंदर व समग्र. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स से भरी बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को लेने के लिए आभार.
bahut sundar charcha.
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा ..
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स से भरी बढ़िया चर्चा..........आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रही रविवासरीय चर्चा, मेरी पोस्ट को लेने के लिए आभार|
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक के साथ अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बढिया चयन व प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा के लिए बधाई .साथ ही मेरी कविता को पहली बार 'चर्चा मंच'का हिस्सा बनाने के लिए बहुत-बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंडॉ. मीना अग्रवल