उलझ के ज़ुल्फ़ में उनकी गुमी दिशाएँ हैं
की प्रस्तुति।
उलझ के ज़ुल्फ़ में उनकी गुमी दिशाएँ हैं |
जब भी दिल को कोई बात अखर जाती है ...!नुक्कड़ पर वेदिका हर बार तुम्हारी गली नजर आती है जब भी दिल को कोई बात अखर जाती है ...! |
फ़ज़ल इमाम मल्लिक की कविता - बराबर के मुकबाले में
आखर कलश पर नरेन्द्र व्यास की प्रस्तुति कभी-कभी ही कोई तारीख़
कविता समय चक्र के तेज़ घूमते पहिए का चित्रण है। कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं। |
रुक रुक कर यूँ चलना क्या
रुक रुक कर यूँ चलना क्या । अंधेरों में पलना क्या ॥ कर दो जो भी करना है । फिर हाथों को मलना क्या ॥ परवाना सा जल जाओ । टिम टिम कर यूँ जलना क्या ॥ अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है। |
मेरा मन : रावेंद्रकुमार रवि की नई कविता मेरा मन
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सोने की चिड़िया होने में इसका भी हाथ था.
रत यूं ही सोने की चिड़िया नहीं कहलाता था। उस समय राज्य की तरफ से कामगारों को पूरी सुरक्षा तथा उनकी मेहनत का पूरा मुआवजा दिया जाता था। खासकर किसानों को हारी-बिमारी या प्राकृतिक आपदा में भी राजा से पूरा संरक्षण प्राप्त होता था। आखिरकार भूख से लड़ने में वही तो अहम भुमिका अदा करते थे। पेट भरा हो तभी हर काम सुचारू रूप से हो पाता है। |
सिफर का सफ़र.................श्यामल सुमनहिन्दी साहित्य मंच पर प्रस्तुत की गई इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा। नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है |
नगर में जहरीली छी: थू है टीप टॉप चौराहें, चमकीले मॉल्स और मेट्रो कल्चर्ड मल्टीप्लेक्स. कोई शक नहीं कि इंदौर विकास या ज्योग्राफिकल बदलाव (विकास या बदलाव पता नहीं ) की तरफ बढ़ रहा है, जो भी हो इसे विकास कि सही परिभाषा तो नहीं कह सकते. यह सच है कि तस्वीर बदल रही है. इस तस्वीर को देखकर शहर का हर आम और खास गदगद नज़र आता है. शहर के आसपास की ग्रामीण बसाहट भी इस चमक से खुश होकर इस तरफ खिंची चली आ रही है. ये ग्रामीण तबका शहर का इतना दीवाना है कि गाँव में अपनी खेतीबाड़ी छोड़कर यहाँ मोबाइल रिचार्ज करवाकर मॉल्स और मल्टीप्लेक्स में शहरी मछलियों के बीच गोता लगा रहे हैं. माफ़ कीजिये अब ये गाँव वाले भी भोलेभाले नहीं रहे. |
सावन को हरा कर जाये कोई कब तक जलाऊँ अश्कों को |
बेटी हूँ मैंमेरे भाव पर मेरे भाव की एक संवेदनशील प्रस्तुति। धरती के गर्भ में |
ब्रह्माण्ड सुंदरी से मिलने का एक सुंदर अवसर।
क्या आपने कभी किसी बड़े से मैदान में खड़े होकर अपनी धरती को निहारा है? इधर-उधर, चारों तरफ जहाँ तक हमारी नज़र जाती है, पृथ्वी नज़र आती है और साथ ही हमें नज़र आते हैं पेड़-पौधे, नदी-नाले, खेत-खलिहान, पहाड़, जंगल आदि। और इसी के साथ हमारे दिमाग में बहुत सारे प्रश्न भी कौंधने लगते हैं कि पृथ्वी कितनी बड़ी है? इसका निर्माण कैसे हुआ? यह सूरज के चारों ओर क्यों घूमती है? इसमें ऋतुएँ कैसे बदलती हैं? वगैरह-वगैरह। |
ब्लॉग चरित्र शिवकुमार मिश्र का सही कहना है कि ब्लॉग चरित्र महत्वपूर्ण है। बहुत से ब्लॉगर उसे वह नहीं दे पाते। मेरे ब्लॉग का चरित्र क्या है? यह बहुत कुछ निर्भर करता है कि मेरा चरित्र क्या है – वह इस लिये कि आठ सौ से अधिक पोस्टें बिना अपना चरित्र झलकाये नहीं लिख सकता। |
अनीस अंसारी की शायरीसमय-सृजन (samay-srijan) पर डा. मेराज अहमद तुम्हारे ग़म का मौसम है अभी तक लब-ए-तश्ना पे शबनम है अभी तक सफ़र में आबले ही आबले थे मगर पैरों में दम-ख़म है अभी तक |
नहीं दैन्यता और पलायन अर्जुन का उद्घोष था 'न दैन्यं न पलायनम्'। पिछला जीवन यदि पाण्डवों सा बीता हो तो आपके अन्दर छिपा अर्जुन भी यही बोले संभवतः। वीर, श्रमतत्पर, शान्त, जिज्ञासु, मर्यादित अर्जुन का यह वाक्य एक जीवन की कथा है, एक जीवन का दर्शन है और भविष्य के अर्जुनों की दिशा है। यह कविता पढ़ें अपने उद्गारों की ध्वनि में और यदि हृदय अनुनादित हो तो मान लीजियेगा कि आपके अन्दर का अर्जुन जीवित है अभी। उस अर्जुन को आज का समाज पुनः महाभारत में पुकार रहा है। मन में जग का बोझ, हृदय संकोच लिये क्यों घिरता हूँ, |
बता, मैं अपनी ही कब्र पर चिराग कैसे रखूं......?
अपना तो दर्द का दामन है ,कोई साथ चले न चले |
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रविवार, जुलाई 25, 2010
रविवासरीय चर्चा
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मन से की गई
जवाब देंहटाएंमनमोहक रचनाओं की चर्चा!
bahut hi acchi cahrcha..
जवाब देंहटाएंaabhaar..!!
बहुत सुन्दर चर्चा ....धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंnicel
जवाब देंहटाएंsaadgi se bhari achhi charcha.
जवाब देंहटाएंबहुत सार गर्भित चर्चा |
जवाब देंहटाएंआशा
सुन्दर एवं सुरूचिपूर्ण तरीके से की गई चर्चा...
जवाब देंहटाएंआभार्!
bahut achchhee charchaa
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंपोस्ट को शामिल करने के लिए शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा|
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा |
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा ...
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