नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर से हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा के साथ।
कोलकाता में पिछले चालीस घंटों से बारिश हो रही है। मौसम काफ़ी खुशगवार और सुहाना हो गया है। आइए इसी माहौल में आज की चर्चा की शुरुआत करें।
"माया", सामने वाला इकट्ठा करते-करते ऊपर वाले को प्यारा हो जाता है और वह नीचे किसी और को प्यारी हो जाती है।
अंदर-बाहर, देश-विदेश में ऐसे-वैसे-कैसे धन के ढेर मिट्टी की तरह पड़े हैं। जिनका कोई हिसाब नहीं है। हिसाब मांगने वालों का हिसाब-किताब बराबर कर दिया जाता है। यह भी सत्य है कि जमाखोरों को कब ढाई गज का कपड़ा लपेट चल देना पड़ेगा वे भी नहीं जानते। पर यह इस देश की बदनसीबी है कि इसकी बागडोर ऐसे हाथों में है जिनके राज में अनाज सड जाता है पर गरीब के पेट में नहीं पहुंचने दिया जाता।
--उन्नीस—
जो तुम न बोले बात प्रिय .....
दृष्टि से ओझल तुम किन्तु
हो हर पल मेरे साथ प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ...
हृदय मेरा स्पंदित है
इन एहसासों की भाषा से
हो चले हैं हम अब दूर बहुत
हर दुनियावी परिभाषा से
नहीं मलिन कभी हैं मन अपने
दिन हो अब चाहे रात प्रिय
गुंजारित है हर कण में
जो तुम न बोले बात प्रिय ......
--अट्ठारह—
.....चारी?.
हमारे देश के सबसे वरिष्ठ हिंदी कवि गोस्वामी तुलसीदास ने कहा था- आपत्तिकाल परखिए चारी... तो हमें समझ में नहीं आया कि वे किस चारी की बात कर रहे हैं! वैसे, देश में कई चारी रहते हैं जैसे ब्रह्मचारी, शिष्टाचारी, व्यभिचारी, भ्रष्टाचारी आदि। अब यदि हम इन्हें आपत्ति की कसौटी पर परखना चाहें तो कौन कितना सहायक होगा, यह तो गोस्वामी जी ने इसलिए नहीं बताया कि वे भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाये।
--सत्तरह—
ल..लि ...ते ................!
पखेरू की तरह उड़े दिनों के साए में
एक अनिर्वचनीय उदासी साँसें ले रही है ।
ऊपर
लहरों की तरह
दौड़ता रहा जीवन
जिसे अपने चार हाथों से थामे
हम -तुम आसमान की तरफ
देखते रहे अनवरत ।
--सोलह—
‘‘रंग बसन्ती पाया है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
दूर गगन से सूरज, यह सुन्दरता झाँक रहा है।
बिना पलक झपकाये, इन फूलों को ताक रहा है।।
अग्नि में तप कर, कुन्दन का रूप निखर जाता है।
तप करके प्राणी, ईश्वर से सिद्धी का वर पाता है।।
--पन्द्रह—
एक अनकहा सा प्यार
."अब कुछ नहीं साथ मेरे बस हैं खताएं मेरी". और मुंह से सिसकियों के साथ महज़ कुछ लफ्ज़ निकले जा रहे थे.."क्या तुम इतनी भी नादाँ थी कि न समझ सकीं ऐसा मज़ाक भी कोई करता है भला???
--चौदह—
करो बुवाई......[नवगीत] - आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"
ऊसर-बंजर जमीन कड़ी है.
मँहगाई जी-जाल बड़ी है.
सच मुश्किल की आई घड़ी है.
नहीं पीर की कोई जडी है.
अब कोशिश की
हो पहुनाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
--तेरह—
मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार
स्वाद कैसा है पसीने का ये मजदूर से पूछ
छाँव में बैठकर अंदाज़ लगता क्यों है
मुझको सीने से लगाने में है तौहीन अगर
दोस्ती के लिए फिर हाथ बढ़ाता क्यों है
--बारह—
मैं बनारस बोल रहा हूँ
मैं बनारस हूँ बनारस ! राजा बनार की राजधानी। मैं कभी नीरस नहीं होता। मेरा रस सूखता नहीं। मेरा रस ही मेरा जीवन है। बहुत पहले से मुझे काशी कहा जाता है। आज भी जिन्हें अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की ललक है वे मुझे काशी ही कहते हैं। मैं एक पवित्र नदी का उत्तरमुखी गंगा तीर्थ हूँ।
--ग्यारह—
कार्टून: रामलीला मैदान पर पुलिस गई ही क्यों थी.
--दस—
एक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब, जैसे मुफलिस की जवानी, जैसे बेवा का शबाब
यहां कोई इतना करीब नहीं मिलता कि सबको गौर से देखें। बस दूर बैठ कर एक उड़ती सी नज़र डालनी होती है और काॅमन फीचर्स और स्वभाव से समझ लिया जाता है कि आम इंसानी फितरत क्या है। लेकिन उसमें से जिस किसी एक को थोड़ा जान रहे होते हैं वो भी अपने तो आप में विभिन्न वनस्पतियों से भरा जंगल हुआ करता है।
--नौ—
लालची चित्रकार?
गेस्सेन नामक ज़ेन सन्यासी बहुत अच्छा चित्रकार भी था. कोई भी चित्र बनाने से पहले वह चित्र बनवानेवाले से पूरी रकम एकमुश्त ले लेता था. वह बहुत महंगे चित्र बनाता था इसीलिए सब उसे “लालची चित्रकार” कहते थे.
--आठ—
दो शब्द चित्र
पुश्त दर पुश्त
देखते सहते
हो गई आदत...
बन गई
एक जीवन शैली..
स्वीकार्य
मानिंद
प्रारब्द्ध अपना..
--सात—
खुदा करे कि वो इन जैसे लोगों को कभी माफ़ ना करे....!!
इस बरसात में पानी की तरह सवालों का सैलाब भी बह रहा है...मगर जवाब देने वाले हराम के धन को चारों ओर से लपेटे-पर-लपेटे जा जा रहें हैं....उन्हें इन सब सवालों से कोई साबका या वास्ता नहीं...ऐसे में आने वाले समय में खुदा भी उनके साथ क्या फैसला करेगा यह कोई नहीं जानता,खुदा के सिवा.....!!.....खुदा करे कि वो इन जैसे लोगों को कभी माफ़ ना करे....!!
--छह—
कल सुनना बाबू
आज तो लड़ रहा हूँ
शब्दों के घर डेरा डाले
शब्दों के सौदागरों से
उनके मुहावरों से
शब्द जिनसे बेचैन हो रहे
बेबस और लाचार भी
--पांच—
स्वप्न मेरे
जटिलताओं का भय मेरे चिन्तन का उत्प्रेरक है, यदि सब सरल व सहज हो जाये तो संभवतः मुझे चिन्तन की आवश्यकता ही न पड़े। प्रक्रियाओं के भारीपन में मुझे न जाने कितने जीवन बलिदान होते से दिखते हैं। व्यवस्था जब सरलता में गरलता घोलने लगती है, मन उखड़ सा जाता है।
--चार—
ऐ मेरी तूलिके महान्
"रण विजयी हो पुत्र ", प्रेम से माँ यह आशिष देती हो ,
"भाई लौट न पीठ दिखाना", बहन गर्व से कहती हो ,
कहती हो पतिप्राणा पत्नी, "जय पाना प्राणों के प्राण" !
ऐ मेरी तूलिके महान् !
--तीन—
युवा कवि अरूण शीतांश की कविताएं
सुबह की पहली किरण
पपनी पर पड़ती गई
और मैं सुंदर होता गया
शाम की अंतिम किरण
अंतस पर गिरती गई
और मैं हरा होता रहा
रात की रौशनी
पूरे बदन पर लिपटती गई
और मैं सांवला होता गया
--दो—
पांच गीत और एक गज़ल -कवि कैलाश गौतम
बादल
टूटे ताल पर
आटा सनी हथेली जैसे
भाभी पोंछ गई
शोख ननद के गाल पर |
--एक--
कलम, बन्दूक, आजादी....अँधेरे समय में एक काला दिवस!
आजादी क्या है? अप्राप्य आदर्श का स्वप्नलोक,जो जनता को मोहित कर लेता है?या कम से कम काम और ज्यादा से ज्यादा आराम की लुभावनी धारणा ? गोर्की कहते हैं’’ आजादी का अर्थ क्या है,यह समझना कठिन है!यों देखो तो आज़ादी का अर्थ है मनचाही जिंदगी !
शुभप्रभात ..मनोज जी ..!
जवाब देंहटाएंये गिनती वाली चर्चा बहुत अच्छी लगी |बढ़िया लिनक्स ...!!
बढ़िया संग्रह
जवाब देंहटाएंA composition of fine views & creation , appreciable work with passion . Thanks a lot .
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स .. चर्चा भर उल्टी गिनती चलती रही .. टिप्पणियों से सीधी गिनती शुरू हो गयी !!
जवाब देंहटाएंचर्चा का यह निराला अंदाज, उलटी गिनती के रूप में अच्छा लगा. लिनक्स भी अच्छे हैं. बधाई..
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा, सुंदर लिंक्स और २० पायदान. आभार.
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय अंक ...उम्दा लिंक्स !
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक ,अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चाएँ.गिनतियाँ descending order में नयापन पैदा कर रही हैं.
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक्स ... उम्दा चर्चा ... आपका आभार !
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स को समेटे आज कि अच्छी चर्चा ..ज्यादातर पर हो आई हूँ ... बाकी बाद में जाती हूँ
जवाब देंहटाएंसारी प्रस्तुतियाँ बहुत ही सुन्दर...बधाई
जवाब देंहटाएंगिनती वाली चर्चा अच्छी लगी ...
जवाब देंहटाएंबड़ी सुन्दर पोस्टें चुनकर लायी गयी हैं।
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय अंक ...उम्दा लिंक्स !
जवाब देंहटाएंसारी प्रस्तुतियाँ बहुत ही सुन्दर...बधाई
मौसम की खुशगवारी चर्चा में भी नजर आ रही है. बहुत सुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंरविवारीय चर्चा बहुत अच्छी लगी अच्छी लिंक्स के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
अरे वाह।
जवाब देंहटाएंकमजोर नेट कनेक्टिविटी से भी इतना शानदार चर्चा कर दी आपने तो।
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पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
एक अच्छे निबंध को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा
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