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शुक्रवार, जून 03, 2011

"आपातकालीन चर्चा" (चर्चा मंच-534)

मित्रों!
नेट पर चोरी की घटनाएँ आम हो गई हैं!
एक मशहूर ब्लॉगर हैं श्रीमान !
ये अपने बारे में लिखते हैं!

कौन हूं मैं...


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नई दिल्ली, दिल्ली, India
अब क्या कहूं अपने बारे में... विवाहित हूं, एक बेटा और एक बेटी हैं... पत्नी का नाम हेमलता है, लेकिन हम हेमा कहते हैं... बेटे का नाम सार्थक है और बेटी का नाम है निष्ठा... पत्नी बरेली (उत्तर प्रदेश) के पास एक कस्बे आंवला में राज्य सरकार के एक डिग्री कॉलेज में हिन्दी विषय की प्रवक्ता (लेक्चरर) हैं, सो, वह बच्चों के साथ बरेली रहती हैं, और मैं अपने माता-पिता के साथ दिल्ली में... संप्रति एनडीटीवीखबर.कॉम का संपादकीय प्रमुख हूं... अपने स्कूली साथियों की जानकारी के लिए बता रहा हूं कि मैंने पत्रकारिता की शुरुआत वर्ष 1991 में एक सांध्य दैनिक से की थी... उसके बाद दिल्ली प्रेस, कुबेर टाइम्स तथा दैनिक जागरण जैसे प्रिंट संस्करणों में सहयोग देकर फरवरी, 2000 में डॉटकॉम पत्रकारिता में प्रवेश किया... सिर्फ एक साथी के साथ जागरण.कॉम लॉन्च करने के बाद से अब तक अपने नेतृत्व में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के लिए नवभारतटाइम्स.कॉम, हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के लिए हिन्दुस्तानदैनिक.कॉम (अब लाइवहिन्दुस्तान.कॉम) तथा एनडीटीवीखबर.कॉम लॉन्च कर चुका हूं...

इन्होंने मेरी बालकविता को बदलकर 
इस रूप में अपने ब्लॉग पर लगाया है!


प्यारी निष्ठा... (रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



विशेष नोट : मेरी बेटी निष्ठा को अपने सिर पर दुपट्टा ओढ़ने या साड़ी लपेटने का काफी शौक है, जबकि वह अभी तीन साल की भी नहीं हुई है... आज अचानक कविताकोश.ओआरजी पर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की लिखी यह कविता दिखी, तो अपने ब्लॉग पर ले आया हूं...


इतनी जल्दी क्या है बिटिया,
सिर पर पल्लू लाने की...
अभी उम्र है गुड्डे-गुड़ियों,
के संग समय बिताने की...


मम्मी-पापा तुम्हें देखकर,
मन ही मन हर्षाते हैं...
जब वे नन्ही-सी बेटी की,
छवि आंखों में पाते हैं...


जब आएगा समय सुहाना,
देंगे हम उपहार तुम्हें...
तन-मन-धन से सब सौगातें,
देंगे बारम्बार तुम्हें...


अम्मा-बाबा की प्यारी,
तुम सबकी राजदुलारी हो...
घर-आंगन की बगिया की,
तुम मनमोहक फुलवारी हो...


सबकी आंखों में बसती हो,
इस घर की तुम दुनिया हो...
निष्ठा, तुम हो बड़ी सलोनी,
इक प्यारी-सी मुनिया हो...
http://kuchhpuraaniyaadein.blogspot.com/2010/11/blog-post_26.html
उपरोक्त लिंक पर लगाई है! लेकिन इसका शीर्षक तक बदल दिया है!
जबकि यह कविता मैंने अपनी पोती प्राची के लिए लिखी थी!
और इन्होंने प्राची की जगह निष्ठा कर दिया है!
अब बताइए इन्हें मेरी मूल रचना में छेड़-छाड़ करने का क्या अधिकार था?
मुझे तो सभी बच्चे प्यारे हैं! 
लेकिन अगर ये मेरे पास निष्ठा बिटिया का फोटो भेज देते 
तो मै उस पर एक नई कविता तुरन्त रच देता!
 जी यदि आपमें प्रतिभा होती 
तो बिटिया निष्ठा के ऊपर एक नई कविता रचते और 
मेरी कविता को नाम बदलकर प्रस्तुत नहीं करते!


इस रचना में अभी-अभी यह वाक्य भी जोड़ दिया है-
रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी से क्षमाप्रार्थना भी करना चाहूंगा, 
क्योंकि उनकी कविता में 'प्राची' के स्थान पर अपनी पुत्री का नाम जोड़ दिया है...
जबकि मेरे पास इसकी संचित प्रति का स्नैपशॉट मौजूद है!


अब आप मेरी मूल रचना देख लीजिए!

‘‘प्यारी प्राची’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

इतनी जल्दी क्या है बिटिया, 
सिर पर पल्लू लाने की।


अभी उम्र है गुड्डे-गुड़ियों के संग,
समय बिताने की।।

मम्मी-पापा तुम्हें देख कर,
मन ही मन हर्षाते हैं।
जब वो नन्ही सी बेटी की,
छवि आखों में पाते है।।
(चित्र गूगल से साभार)
जब आयेगा समय सुहाना,
देंगे हम उपहार तुम्हें।
तन मन धन से सब सौगातें,
देंगे बारम्बार तुम्हें।।

दादी-बाबा की प्यारी,
तुम सबकी राजदुलारी हो।
घर आंगन की बगिया की,
तुम मनमोहक फुलवारी हो।।

सबकी आँखों में बसती हो,
इस घर की तुम दुनिया हो।
प्राची तुम हो बड़ी सलोनी,
इक प्यारी सी मुनिया हो।।
इन महाशय ने भी मेरी बिना अनुमति के यह रचना लगाई है किन्तु गनीमत यह है कि 
इसमें कोई छेड़-छाड़ नहीं की है!
यह रचना कविता कोश पर भी है
जो कि मेरी सहमति से प्रकाशित की गई है!
श्रीमान  जी ने 
मेरी निम्न रचना भी मेरी बिना अनुमति के लगाई है!

Friday, May 20, 2011


आई रेल, आई रेल... (रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


विशेष नोट : गर्मी की छुट्टियों के दौरान बच्चों को कुछ नया सिखाने के उद्देश्य से कविताकोश.ओआरजी पर आया था, और वहां रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की लिखी यह कविता मिली... अच्छी लगी, सो, आप लोग भी पढ़ लें...


 धक्का-मुक्की, रेलम-पेल,
आई रेल, आई रेल...

इंजन चलता सबसे आगे,
पीछे-पीछे डिब्बे भागे...

हॉर्न बजाता, धुआं छोड़ता,
पटरी पर यह तेज़ दौड़ता...

जब स्टेशन आ जाता है,
सिग्नल पर रुक जाता है...

जब तक बत्ती लाल रहेगी,
इसकी ज़ीरो चाल रहेगी...

हरा रंग जब हो जाता है,
तब आगे को बढ़ जाता है...

बच्चों को यह बहुत सुहाती,
नानी के घर तक ले जाती...

छुक-छुक करती आती रेल,
आओ मिलकर खेलें खेल...

धक्का-मुक्की, रेलम-पेल,
आई रेल, आई रेल...


30 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो विवेक रस्तोगी जी ने गलत किया .
    पर मुझे ये भी पता है की अगर ये गलती स्वीकार करेंगे तो आप जरुर इन्हें माफ़ कर देंगे .
    आखिर बच्चों के साथ आपको ब्लॉगर भी तो प्यारें है .
    अगर विवेक जी तक बात पहुंचे तो उनके पास समय और सुविधा दोनों है माफ़ी माँगने के लिए .

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  2. बहुत अफ़सोस और निराशा की बात है कि इतने सम्मानित लोग भी बिना पूर्व अनुमति ऐसा कर रहे हैं.
    कम से कम वह रचना को उसके मूल स्वरुप में प्रस्तुत कर ही सकते थे.या खुद ही आपकी इस रचना से प्रेरणा ले कर नयी कविता भी लिख सकते थे.
    बहरहाल कोई भी बात छुपती नहीं है और सच सामने आ ही जाता है.इस तरह की प्रवृत्ति से बचने और अपनी मूल रचनात्मकता को बनाये रखना हम सब के लिये बहुत ज़रूरी है.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. ये तो ठीक नहीं है.
    इसमें विवेक जी दोषी अवश्य हैं.

    आप उन्हें एक सूचना अवश्य दें, उनको उचित सुधार करना चाहिये.
    कविता का स्रोत और कवि का नाम तो अवश्य ही देना चाहिये ताकि कवि को उचित सम्मान प्राप्त हो.
    ऐसा करने से विवेक रस्तोगी जी की स्वीकार्यता और ब्लॉग-समाज से अपनत्व व घनिष्ठता दोनों ही बढ़ेगा.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. अब क्या कहें ... बन्दे की गलती तो है कि आप की रचना के साथ छेड छाड़ की गई पर क्यों कि बन्दे ने यह साफ़ किया है कि रचना आप की है इस लिए ... माफ़ी का हक़दार भी है !

    आगे जैसा आप उचित समझें !

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  6. बहुत ही लज्जा की बात है ये....यदि आपके पास अपनी भावनायें नहीं है,आप खुद कुछ लिख नहीं सकते..तो दूसरों की रचना चोरी कर उसे अपना बता आप क्या साबिता करना चाहते है...मै तो कहूँगा विवेक जी को इस करणी के लिए दोषी घोषित कर उचित कदम उठाना चाहिये...........वो चाहते तो आपकी रचना को आपका नाम देकर भी अपने ब्लाग पर प्रकाशित कर सकते थे....बहुत निंदनीय है ये...........शास्त्री जी आप उन्हें इतल्ला करे।

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  7. आपने एकदम सटीक सही बात कही है, पहले ही बता देना चाहिए था,

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  8. सभी महान लेखक और गुरुजनों ने सब कुछ कह दिया इसलिए मैं अलग से और कुछ कहना नहीं चाहती ! शास्त्री जी जो फैसला लेंगे वो अच्छा ही होगा!

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  9. संज्ञान में ले आये हैं, अब इस तरह की घटनायें कम होंगी।

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  10. ओहो ! शास्त्रीजी आप तो साहित्यिक उठाईगिरी के शिकार हो गए . वास्तव में किसी भी लेखक या कवि की रचना उसकी अपनी बौद्धिक सम्पदा होती है. रचनाकार की अनुमति के बिना उसकी रचना का किसी भी रूप में अन्यत्र प्रकाशन अथवा प्रसारण नहीं होना चाहिए . दूसरे की रचना को मूल रचनाकार की सहमति के बिना अगर कोई जस का तस या फिर उसमे कुछ हेर-फेर कर अपने नाम से प्रकाशित या प्रसारित करे, तो यह भी साहित्यिक उठाईगिरी की श्रेणी में आएगा .इन दिनों कई छोटे अखबार ब्लॉगरों के आलेख आदि आसानी से डाऊनलोड कर उनके नामों का उल्लेख किए बिना धडल्ले से छापे जा रहे हैं . कुछ अत्यंत होशियार किस्म के संपादकों को सम्पादकीय लिखना नहीं आता, इसलिए वे किसी भी ब्लॉग से कोई भी मैटर कॉपी-पेस्ट कर अखबार के सम्पादकीय कॉलम में लगा रहे हैं. ऐसे लोगों को क्या कहा जाए ?

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  11. sabse pehle to aaj k samay k sabse,,,,,,,,,,, acche poet,, ko mera namaskaar,,,,, aap to hai kalakaar,,,,,,,,,, aap ko aabhaar,,,,,,, itna hi kehna chahunga k maine kahin padha hai k khashma hi sacche insaan ka gehna hai,,, khashama daan hi sabse bada daan hai,, or mughe pata hai aap bahut bade daani hai,,, aap samghdaar hai,,, khashma hi sabse badi saza hai,,,, kripya,, galti ko maaf karen,,, aap ko bahut bahut ,, good night,, puri naand lena haaaa

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  12. acha nahi laga rastogi saheb ki iss harket ko dekh kar takleef hui ...chori karne ki zaroorat nahi thi but original is original Rc saheb.

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  13. हमें तो लगता है...
    छपने के बाद रचना पाठकों की हो जाती है...
    आखिर उन्हीं के लिए ही तो लिखी जाती हैं...

    उन्होंने ससम्मान आपके नाम के साथ...
    जिक्र करके आपकी रचना दी है...

    बात खुश होने की है कि रचना का दायरा बढ़ा...
    गुस्सा थूकिये...वैसे भी शायद आपको नहीं है...

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  14. ये तो विवेक रस्तोगी जी ने गलत किया .
    Leki is bahaane aapka yh sundar geet padhne ko mil gaya .

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  15. ek sacchi ghatna,,,,, ek baar ek maasoom bacha thaa, par galat sangat k karan use chori karne ki aadat ho gayi,,,,, wo chori karne kaa aadi ho gaya,,,,,, jab uski maa ko pata laga too ,, uski maa ne usse samghya par wo nahi mana ,, fir uski maa ne kya kiya , jab bhi wo chori karta to uski maa uske kamre me ek keel thonk deti,, par wo ladka nahi samgha,,
    aise karke kamre me bahut sari keel ho gayi or kamra ganda lagne laga,, aakhir me usne maa ko keel nikalne k liye bola , maa ne kaha k tu sabse maafi mangega,,, fir main ek keel nikal lungi, chori chod kar ,, sabse maafi mangne laga,, waise hi uski maa ne
    keel nikalni shuru kar di,, last me saari keel nikal gayi,,, par ladka ab bhi khuss nahi thaaa, kunki waha par nishan baaki thee

    mera kehna aisa hai ki kaam hamesha future ko dhyan me rakh kar hi karne chahiye

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. विवेक रस्तोगी जी को ऐसा नहीं करना चाहिए था. हालाँकि उन्होंने वह कविता आपके नाम के साथ लगाई है.परन्तु शीर्षक में छेड़छाड़ करके ग़लत किया है.

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  18. bade sharm ki baat hai VIVEK ji, aap Shastri ji jaise mahaan vyaktitva ke insaan se ek request bhar kar dete wo aapke liye likh bhee dete aur charcha manch pe post bhe kar dete.

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  19. बिना रचनाकार की अनुमति के रचना को अन्यत्र
    छापने या छपवाने को तो ठीक नहीं कहा जा सकता!
    --
    अभी मैंने विवेक रस्तोगी जी के ब्लॉग पर जाकर देखा,
    तो वहाँ निष्ठा के फ़ोटो के ऊपर ये पंक्तियाँ लिखी देखीं --

    रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी से क्षमाप्रार्थना भी करना चाहूंगा,
    क्योंकि उनकी कविता में 'प्राची' के स्थान पर
    अपनी पुत्री का नाम जोड़ दिया है...
    --
    बात भावनाओं के आहत होने की है!
    समझौता किया जा सकता है!

    जवाब देंहटाएं
  20. आदरणीय शास्त्री जी, कल (शुक्रवार को) आपने मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी कविताओं पर जो कमेन्ट किया, उन्हें पढ़कर मुझे यह एहसास नहीं हुआ था, कि आप इसे चोरी की घटना मान रहे हैं... मैंने आपको संपूर्ण श्रेय देते हुए ही आपकी इस कविता को प्रकाशित किया था... और रही बात, क्षमायाचना वाली पंक्ति बाद में जोड़े जाने की, मैं आपको बताना चाहूंगा कि पहले दिन से ही वह पंक्ति इस रचना के साथ जुड़ी हुई है, सो, जैसा स्क्रीनशॉट होने का दावा आपका है, वैसा संभव नहीं है...

    हां, आपने प्रतिभा की भी बात की है, सो, कहना चाहूंगा, सभी में एक जैसी प्रतिभा नहीं हो सकती... आपमें है, मुझमें नहीं... यदि सभी में रचनात्मक क्षमता समान होती तो कभी किसी साहित्यकार की किसी रचना की कोई कद्र न हो पाती...

    पूर्वानुमति के विषय में सिर्फ इतना कहना चाहूंगा, कसूरवार हूं, परंतु जैसा पहले भी मैंने कहा, आपसे संपर्क के किसी साधन का ज्ञान न होने से ऐसा हुआ... और कविताकोश का संदर्भ देने के बाद शास्त्री जी को पूरा श्रेय देते हुए क्षमायाचना के साथ ही उनकी कविताओं को प्रकाशित किया था... मैंने ऐसा (कविता का प्रकाशन तथा मूल रचना में बदलाव) चोरी के लिए नहीं, अपनी बिटिया के प्रति प्यार के लिए किया...

    यदि इस उम्र में मेरे कारण इतना आहत महसूस कर रहे हैं, तो सचमुच हृदय से क्षमाप्रार्थी हूं... परंतु जो कमेन्ट आपने मेरे पोस्ट पर किया, उससे सचमुच मुझे सिर्फ इतना लगा, जैसे आप पूर्व सूचना न देने के लिए शिकायत कर रहे हैं, चोरी के लिए नहीं...

    मेरे ब्लॉग पर आए आपके कमेन्ट भी ज्यों के त्यों प्रकाशित कर रहा हूं, "प्रोफेसर साहिब! आपने तो छाँटकर बहुत बढ़िया रचना लगाई है मेरी! कम से कम मेरी पोती प्राची का फोटो तो लगा देते इसमें!" इसके उत्तर में मैंने कल रात ही लिखा था, "शास्त्री जी, प्राची की तस्वीर आप अब भेज दें, अवश्य लगाना चाहूंगा... मेरा ईमेल आईडी vivek.rastogi.2004@gmail.com है..."

    दूसरी रचना पर आपने लिखा, "रस्तोगी जी हमारी बाल कविता लगाई थी तो हमें सूचना तो दे ही देते! इससे कुछ और भी कमेंट आ जाते इस पोस्ट पर!" इसके जवाब में मैंने लिखा, "शास्त्री जी... क्षमा चाहता हूं, परंतु आपसे संपर्क के किसी साधन का ज्ञान न होने से ऐसा हुआ, वरना अवश्य सूचना देता... वैसे इसके अतिरिक्त आपकी एक और कविता 'प्यारी प्राची' भी मैंने अपने ब्लॉग में इस्तेमाल की है, जिसका लिंक दिए दे रहा हूं... और हां, उस कविता में नाम बदल देने के लिए कविता प्रकाशन के समय भी क्षमायाचना कर ली थी, अब आपसे संवाद का अवसर प्राप्त हो जाने पर आपसे अलग से भी क्षमा चाहता हूं... (http://kuchhpuraaniyaadein.blogspot.com/2010/11/blog-post_26.html)"

    मुझे आपके इन कमेन्ट्स से कतई एहसास न हो पाया कि आप इतने नाराज़ हैं कि चोर बताने लगें... बहरहाल, अब आपकी दोनों रचनाएं अपने ब्लॉग से हटा रहा हूं, और एक बार फिर क्षमाप्रार्थी हूं, कि आपको श्रेय देने के बावजूद बेटी के प्यार में पड़कर ऐसा कर बैठा, जो आपका दिल दुखा गया...

    जवाब देंहटाएं
  21. ...और आदरणीय शास्त्री जी के सभी प्रशंसकों को भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैंने श्रेय देकर ही शास्त्री जी की इन दोनों रचनाओं को प्रकाशित किया है, भाई लोगों... चोरी का इरादा कभी नहीं था, वरना, कविताकोश (जहां मुझे ये कविताएं मिलीं) का भी ज़िक्र क्यों करता...

    जवाब देंहटाएं
  22. @विवेक रस्तोगी जी!
    आपका स्पष्टीकरण मिला! मैं धन्य हो गया!
    आपको रचना के शीर्षक से छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए थी!
    चलिए रात गई बात गई!
    --
    आप इज़ाजत दें तो अपनी पौत्री समान आपकी प्यारी सी बिटिया निष्ठा के लिए एक बाल रचना लिखूँ!
    --
    मेरी रचना आपको इतनी अच्छी लगी!
    आभारी हूँ! आप मुझे सूचित भर ही कर देते तो कि आपकी रचना अपने ब्लॉग पर लगा रहा हूँ तो क्यों इतना बड़ा अपराध मुझसे होता!
    --
    वैसे रचना का आशीर्वाद माँ सरस्वती मुझे देती हैं यह उनकी अनुकम्पा है, मगर लिखने में श्रम और समय दोनों ही लगता तो जरूर है!
    बस इसी के कारण मझे बुरा लगा कि आपने मेरी रचना अपने ब्लॉग पर लगाई और मुझे सुचित भी नहीं किया!

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  23. मैं फिर कहूंगा, शास्त्री जी, संपर्क के किसी साधन की जानकारी के अभाव में पूर्वानुमति न ले पाया, क्योंकि कविताकोश में, जहां से मैंने यह कविता उठाई थी, आपका कोई पता उपलब्ध नहीं था... वैसे मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित प्रत्येक रचना के साथ रचयिता को श्रेय अनिवार्यतः देता हूं...

    बहरहाल, मुझे दुख सिर्फ इस बात का रहा कि जब आपने मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट करने में सिर्फ शिकायत की, तो अपने ब्लॉग तक आते-आते उसे आरोप क्यों बना दिया... और हां, फिर स्पष्ट करना चाहूंगा, क्षमायाचना वाली पंक्ति बाद में नहीं जोड़ी गई थी, सो, जिसने भी आपको इस विषय में सूचना दी, गलत दी...

    सचमुच, आपका हृदय दुखाने के लिए एक बार क्षमाप्रार्थी हूं, परंतु ऐसा बेटी के प्यार में कर बैठा, चोरी मेरा उद्देश्य नहीं था...

    और हां, अब चूंकि आपने इस बात को खत्म कर दिया है, तो इन दोनों पोस्ट को अपने ब्लॉग से डिलीट नहीं कर रहा हूं... आशा है, इसे आपकी प्रकाशन अनुमति मानकर गलत नहीं कर रहा हूं...

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  24. कभी कभी गलतफहमी में भी ऐसा हो जाता है। चलिए मामला सुलट गया, यह बडी बात है।

    ---------
    कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
    ब्‍लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।

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  25. क्षमा बडन को चाहिए, छोटन को उत्पात.. हाहााहा

    लेकिन ये ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसे आपात चर्चा बनाकर अपने ही एक ब्लागर भाई को नीचा दिखाने की कोशिश की जाए। जबकि विवेक जी अपने सफाई में ही सही, जो बात कह रहे हैं, उससे मैं पूरी तरह सहमत हूं। कई बार लोग अपने बच्चे के जन्मदिन या किसी और खास मौके को यादगार बनाने के लिए बच्चे की तस्वीर के साथ कोई कविता कहीं से ले लेते हैं। उस समय ये ध्यान में नहीं रहता है कि कल ये इतना बड़ा मुद्दा बन जाएगा। अक्सर नेताओं के भाषण में दुष्यंत कुमार की पंक्तियां पढी जाती हैं, हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए....... क्या लोग हर बार दुश्यंत कुमार का नाम लेते हैं। और इस छोटी सी बात को चोरी कहकर संबोधित करना मुझे तो बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है। आप सब बडे हैं, खुद सोचिए...

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  26. शास्त्री जी विवेक रस्तोगी जी ने आपका नाम लिखकर बाल कविता अपनी पोस्ट पर लगाई, इससे आप जैसा महान साहित्यकार अपना प्रसंशक समझकर उसी रूप में लेता और रस्तोगी जी को चोर न कहकर साहित्य प्रसार का माध्यम समझता, शास्त्री जी मैंने एक कविता लिखी थी बापू के बारे में २ अक्टूबर १९९५ में जो दैनिक जागरण के साप्ताहिक रविवारीय पन्ने में छपी थी जिसे एक बच्चे ने मोर्निंग अस्सेब्ली में पड़ा सभी ने तालियाँ बजाई , प्रिंसिपल ने उसे पुरूस्कार दिया , मेरे बच्चे भी उस स्कूल में पढ़ते थे वो गदगद थे, मानो उन्हें ही सराहा गया हो जबकि उस नाम से मुझे कोई नहीं पहचानता था , आज भी मुझे निक नाम से कम ही लोग जानते है , साहित्य स्वयं के सुख के लिए होता है , लोग सराहे तो सोने पे सुहागा , आपको प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करनी चाहिए थी. अभिवादन सहित छमा

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  27. शास्त्री जी आपकी रचना बहुत अच्छी है |कविता में नाम कई बार बच्चों को सुनाते समय इस लिए भी बदल जाता है कि उस समय बच्चा कविता या गाने में खुद को हीरो बना देखना चाहता है |
    कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को खुश करने के लिए भी उसका नाम जोड़ कर वही पंक्तिया सूना देते है |खैर ऐसी तृतीया बड़े माफ कर ही देते है यह मेरा सोच है |
    आशा

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