नमस्कार , आज का काव्यमंच सजाते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि साप्ताहिक काव्य मंच ने अपना अर्ध शतक पूरा किया है .. और मुझे चर्चा मंच से जुड़े एक वर्ष हो चुका है ..पहली साप्ताहिक काव्य चर्चा २४ मई २०१० में प्रारम्भ हुई थी .पचास चर्चाओं का मंच बहुत से खूबसूरत पड़ावों से गुज़रा ..इस मंच के माध्यम से बहुत से अच्छे रचनाकारों से परिचय हुआ ..आज सभी पाठकों का और रचनाकारों का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ जिनकी प्रेरणा से यह सफर यहाँ तक पहुंचा .आज जब पीछे मुड कर देखती हूँ तो अनगिनत खूबसूरत नज़ारे दिखाई पड़ते हैं .. सोचा आज उन्हीं में से कुछ काव्य प्रसून चुन लाऊं ..हांलांकि मुझे तो सारे ही पुष्प पसंद हैं पर माला इतनी बड़ी भी न हो जाए कि उलझ कर ही रह जाए .. तो आज की माला ३५ विभिन्न फूलों से सजी हुई आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ ..माला बनाने के लिए धागे की ज़रूरत होती है तो जो शब्द काले रंग से लिखे हैं उनको धागा ही समझियेगा … तो देखते हैं थोड़ा पीछे मुड कर --और बताइयेगा कि यह माला कैसी लगी .. |
आज की काव्य चर्चा प्रारम्भ करते हैं नीरज गोस्वामी जी की खूबसूरत गज़ल से - कैद में मजबूर तोता बोलता है जब शुरू में रफ्ता रफ्ता बोलता है मुंह से बच्चे के फ़रिश्ता बोलता है जो भी सिखला दे उसे मालिक, वही सब कैद में मजबूर तोता बोलता है |
मेरे तमाम जानने वालों के ख्यालों में पली गुज़रे हुवे अनगिनत सालों की वेलेंटाइन मेरी अंजान हसीना समर्पित है गुलाब का वो सूखा फूल जो बरसों क़ैद रहा डायरी के बंद पन्नों में |
आम का मौसम हो और आम ( फलों के रजा ) की बात न हो --यह कैसे हो सकता है …डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी ले आए हैं टोकरा भर -आम दोहे तोतापरी-बनारसी, देशी-क़लमी आम। भाँति-भाँति के आम हैं, भाँति-भाँति के नाम।। खाओ जितने खा सको, अवश-विवश हैं आम। लोकतन्त्र में किसी के, मुख पर नहीं लगाम।। |
हो गया ज्ञानी मैं जब सारी पोथी पढ़ ली फिर अपने चारों ओर उँची दीवारें खड़ी कर ली। |
रघुनाथ प्रसाद जी की एक खूबसूरत गज़ल पढ़िए - केवल उस तकिये ने देखा , बिन मौसम बरसात केवल उस तकिये ने देखा ,बिन मौसम बरसात | जिसने दिया सहारा सर को ,तनहा सारी रात | कितना दर्द दबा रक्खा ,दिल के तहखाने ने , मुस्काती आँखें हरजाई ,कह दी सारी बात | |
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा भ्रष्टाचार और कालेधन पर अपना मुंह नही खोलूँगा अरे, मुझको भी तो अपनी जान बहुत प्यारी है सच लिखने की ताकत मेरी, सत्ता के आगे हारी है तो भला मैं, क्यूँ सच बोल कर अपना शीष कटाऊ अमानवीय सरकार को भला क्यूँ अपना दुश्मन बनाऊ |
सुभाष भदौरिया जी की कल्पना देखिये …कल्पना क्या हकीकत ही है -- जैसे चाहूँ उसे नाचती हूँ जैसे चाहूँ उसे नचाती हूँ. बहुत गहरे में, मैं डुबाती हूँ. ताज़ दिल्ली का बचाने के लिए, रात में लाठियां चलाती हूँ . |
वटवृक्ष पर रश्मि प्रभा जी लायी हैं देवेन्द्र कुमार शर्मा की रचना ..जो पूछ रहे हैं प्रकृति से एक प्रश्न... हे प्रकृति! कौन हो तुम? क्या कभी दिया किसी को अपना परिचय? |
अरविन्द पांडे जी की ओजपूर्ण रचना -- 'सेना'' की आवश्यता क्या ,सेनाएं सभी हमारी हैं. ''सेना'' की आवश्यता क्या ,सेनाएं सभी हमारी हैं. जल,थल,अम्बर में शान्ति हेतु अपनी पूरी तैयारी है. ये पुलिस,अर्ध-सैनिक बल भी अपनी रक्षा के लिए बने . तुम बढ़ो अहिंसा के पथ पर , नेतृत्व इसे अपना देने . |
इक इल्तिजा करता हूँ, मुझे कोई याद न करे, मेरी चाहत कोई कभी, मेरे जाने के बाद न करे | इतना ही जीता हूँ के हर ख़ुशी मिलती हमें, मेरे गम में आंसू दिल के कोई बर्बाद न करे | |
एस० एन० शुक्ला जी आह्वान कर रहे हैं -- अनवरत अन्याय है,अब पीर पर्वत हो चुकी है , भारती के लाल जागो,आज फिर भारत दुखी है . अनाचारों से भरे फिर मेघ मडराने लगे हैं, फिर वही वहशी ,दरिन्दे, देश पर छाने लगे हैं. वे विदेशी थे,लड़े जिनसे,जिन्हें हमने भगाया, आज देशी पालतू भी, खुद पे गुर्राने लगे हैं. |
धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी की गज़ल पढ़िए -- रेत सी मजलूम की तकदीर है रेत सी मजलूम की तकदीर है हर लहर से मिट रही तदबीर है सूर्य चढ़ते ही मिटा देता सदा भाषणों की बर्फ़ सी तहरीर है |
नरोत्तम पुरी जी अपने मन के भावों को बहुत गम्बीर्ता से कह रहे हैं -- “काश " काश.... कि वो समझ पातें. मैं तो उन्हें एक नजर देखने, बाँहों में लेकर माथे को चूमने के लिए बस, खुद को बनावटी बनाकर, किस कदर 'बहुरुपिया' बने फिर रहा हूँ. |
मृदुला हर्षवर्धन को पढ़िए -- सूर्य की प्रतीक्षा हों रही मानवता विषैली हों रही गंगा ये मैली चारों ओर अहम् बिखरा है स्वार्थ का रंग-रूप संवरा है साधू की झोली |
आज की चर्चा का समापन कर रही हूँ ..माहेश्वरी कनेरी जी के एक सुन्दर गीत के साथ .. हे राह बटोही , तू चलता चल जब तक साँस चले, तू चलता चल रूप बदल- बदल, जग तूझे भरमाएगा दृढ्ता का देख तेज़, स्वयं झुक जाएगा |
आज बस इतना ही … अर्ध शतक मनाते हुए कुल अर्ध शतक ही लिंक्स दिए हैं … आशा है एक बार फिर से पुरानी रचनाओं का आनंद आप अवश्य उठाएंगे …आज के प्रयास पर आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतज़ार रहेगा … फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को नयी चर्चा के साथ ..तब तक के लिए नमस्कार … संगीता स्वरुप |
आज की काव्यमाला विभोर कर गयी ! इतने खूबसूरत लिंक्स दिए हैं आपने कि अभिभूत हूँ ! इसे बुकमार्क कर लिया है ! आहिस्ता आहिस्ता रसास्वादन कर इसका आनंद उठाऊँगी ! इतनी मनमोहिनी चर्चा के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहन संगीता स्वरूप जी!
जवाब देंहटाएंआप बहुत उपयोगी चर्चा कर रहीं है!
--
इससे लोगों की अद्यतन पोस्टों के साथ पुरानी पोस्टों को भी फिर से पढ़ा जाने लगा है!
--
आभार!
आपकी मेहनत आगे नतमस्तक होने का मन करता है ...
जवाब देंहटाएंचर्चा जैसे विषय को आप इतना सरस और उपयोगी बना देती हैं ...
लाजवाब ...
आपके चुने हुए पुष्पों में खुद को शामिल देखना असीम उर्जा और उत्साह प्रदान करता है ...
आभार !
दीदी,आपका यह अथक एवं सराहनीय प्रयास हिंदी साहित्य को एक अलग पहचान तो दे ही रहा है साथ ही बहुत सारे लोगों के विचारों को वातायन भी प्रदान कर रहा है.एक जगह इतने प्रकार की रचनाओं को देखने का आनंद ही अलग है. प्रभावशाली संग्रह में स्थान देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन चर्चा ....... बहुत-बहुत धन्यवाद संगीता जी
जवाब देंहटाएंSangeeta ji, namaskaar
जवाब देंहटाएंsaptahik charcha manch men mujh jaise anaadi khiladi ko shamil karane ke liye dhanyawad.Meri shubhkamna hai ki apaka prayas fale-foole aur ham sab apake is manch ke setu se ek-doosare kee rachanaaon ka anand utha saken.
KAVYAMALA ke behatar sanyojan ke liye ek bar punah dhanyawad.
ताजे पुष्प तो सुगंध प्रदान करते ही है . आपने माला में पुराने पुष्पों को पिरोकर उनको फिर से ताजा महसूस करने का कारण दे दिया. इतनी शिद्दत और मेहनत , चर्चा के लिए . साष्टांग दंडवत है आपकी इस अद्भुत क्षमता और लगन को .मेरी बगीया के पुष्प को माला में स्थान देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स.मुझे स्थान दिया,कृतज्ञ हूँ.
जवाब देंहटाएंये अर्धशतक तक कि यात्रा इस मंच पर अद्भुत और काबिले तारीफ रही . काव्य मंच को शतायु होने कि शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंसंगीता जी!
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच में भी आपने हमेशा की तरह बखूबी विभिन्न आयामों की अत्यधिक रुचिकर पठन सामग्री प्रस्तुत की है। बहुत उत्कृष्ट चयन है आपका।साधुवाद....
साप्ताहिक काव्य मंच – 50 में मेरी ग़ज़ल को भी इस चर्चा में शामिल कर आपने मेरी ग़ज़ल को जो आत्मीयता प्रदान की है, उसके लिए मैं आपकी आभारी हूं।
संगीता जी! साप्ताहिक काव्य मंच – 50 में मेरे बटॊही को स्थान देकर उसमें और अघिक उर्जा का संचार होगया है ..आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआप की साप्ताहिक काव्यचर्चा हमेशा की तरह सुव्यवस्थित और मनमोहक है.....
काव्य चर्चा की पचासवीं पोस्ट आपकी महनत का ही नतीजा है...ब्लॉग जगत से काव्य रचनाओं को एक जगह एकत्रित करना आसान काम नहीं है ये एक साधना है तपस्या है जो आप निरंतर कर रही हैं. इस अनूठे कार्य के लिए आपकी जितनी प्रशंशा की जाय कम है. काव्य रसिकों को जब एक जगह बैठ कर सम्पूर्ण तृप्ति पहुँचती है तो उन्हें और क्या चाहिए? आपका ये मंच लगातार ऐसा ही चलता रहे ये ही प्रभु से प्रार्थना करते हैं.
जवाब देंहटाएंनीरज
काव्य मंच ..को बहुत ही खूबसूरत लिंक्स दिये हैं आपने ...बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत करी गयीं बहुत ही रचनायें
आज दिन भर में सब धीर-धीरे पढूंगी
आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए
नाज़
साप्ताहिक काव्य मंच की 50 वीं प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना का आपने चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011 हेतु चयन किया हैयह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है.
आपकी सतत क्रियाशीलता मन को प्रभावित करती है...यह अनुकरणीय है.
saaptaahik kaavya manch par ardh-shatak ke liye badhaai.upyogi links.bhut hi sundar charcha.
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार कड़ियाँ मिलीं। इतनी मेहनत से सबको यहाँ इकट्ठा करने के लिए आपको धन्यवाद। ५०वीं प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई। ये चर्चा यूँ ही जारी रहे और एक दिन ये ५००वीं प्रस्तुति भी दे इसके लिए शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंअद्वितीय माला!
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो अर्धशतक पूरा करने के लिये हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंआपने काफ़ी मेहनत और लगन से आज की चर्चा को अंजाम दिया है……………सभी लिंक्स बेहद उम्दा और खूबसूरत हैं। आज आराम से पढते रहेंगे दिन भर्।
सुन्दर पुष्पो से सुसज्जित एक बेह्तरीन माला।
ise kahte hai nadi ka saagar se milna ...prawahmay charchaa
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,
जवाब देंहटाएंविभोर हूँ आपके अध्यवसाय ,सुरुचि ,और श्रम की इस पचासवीं प्रस्तुति को पा कर !यह पुष्प-हार झर जाने वाले फूलों का नहीं ,सौन्दर्य के चिर-रमणीय और भाव-सुरभि पूरित पुष्पों का गुंथन है ,जो देवि भारती का कंठाभरण बन गया है !
धन्य है !
अच्छे लिंक मिले। दायरा विस्तृत करवाने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआज की काव्य मय चर्चा में आनंद आगया |
जवाब देंहटाएंआपको पचासवी काव्य चर्चा के लिए बहुत बहुत
बधाई |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
आशा
अच्छे लिंक्स से सजी बहुत बढ़िया चर्चा..आभार
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के बहाने बहुत ही उपयोगी रचनाएँ सहज सुलभ हो जाती हैं .आज भी संगीता जी के परिश्रम ने इसमें चार चाँद लगाए हैं . बधाई .
जवाब देंहटाएंदीदी..बहुत सुंदरता से पुराने फूलों को गूंथा है काले धागे के सहयोग से माला में ...बहुत आभार इस माला में मेरा पुष्प चुनने के लिए
जवाब देंहटाएंक्या बात ,क्या बात ,क्या बात .
जवाब देंहटाएंआपकी इस खूबसूरत माला में मेरे पुष्प को भी स्थान देने का शुक्रिया.
अर्ध शतक के लिए बधाई.
आपकी मेहनत को दंडवत प्रणाम.
इतनी काव्यमयी और खूबसूरत चर्चा का आभार.
और निरंतर ऐसे ही खूबसूरत सफर के लिए शुभकामनायें.
मन तो कर रहा है कि मैं भी कम से कम अर्ध शतक बना डालूं आपकी चर्चा की तारीफ में शुभकामनाओं का. पर टिप्पणी को टिप्पणी ही रहने देने की विवशता है.
आपको करोणों बढियां और अनगिनत शुभकामनाये दिल से :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
जवाब देंहटाएंअपने मेरी रचना चर्चा मंच के लायक समझी, इसके लिए आपको बहुत बहुत आभार.
भविष्य में भी मेरा ऐसे ही आत्मविश्वास और हौंसला बढ़ाते रहे.
धन्यवाद
साप्ताहिक काव्य मंच की 50 वीं प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंसंगीता आंटी..सर्वप्रथम साप्ताहिक काव्य प्रस्तुति के ५० वें पोस्ट हेतु हार्दिक बधाई...मै हमेशा से आपकि चर्चा का कायल रहा हूँ...और आज का अंदाज तो दिल को छु गया...बहुत ही उपयोगी प्रयोग.....बहुत ही सुंदर लिंक्सों से सजी सुंदर चर्चा आज की.....आभार।
जवाब देंहटाएंसाप्ताहिक काव्य चर्चा मंच का अर्ध शतक होने पर बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंसादर
अर्ध शतक के लिए बधाई.. खूबसूरत चर्चा के लिए आभार.. बहुत महत्वपूर्ण लिंक मिले !!
जवाब देंहटाएंअर्धशतक मायने शतक की ओर अग्रसर ..
जवाब देंहटाएंआपकी पारखी नज़र के क्या कहने!!
बहुत उपयोगी चर्चा . 50वीं प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएं50 वीं चर्चा के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंआप लोगों ने बहुत से मंच की कमी की भरपाई करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
उम्मीद है यह कारवां यूं ही चलता रहेगा।
साहित्य रूठा था,
जवाब देंहटाएंहृदय से टूटा था।
नये पुराने,
आये मनाने।
संगीता जी , आप इतना वक्त दे कर इस मंच को संवारतीं हैं ...खूबसूरत है आपका गुलदस्ता ...शुक्रिया ..
जवाब देंहटाएंwah. man khush ho gaya is anmol mala ke foolon ko dekhkar....uspar ye kala dhaga....ab kya kahoon.....behad manmohak andaz.sath hi apki aabharee bhi hoon mujhe saath rakhne ke liye.
जवाब देंहटाएंThank you,
जवाब देंहटाएंshukriya, aapne meri gazal ko yahan thodi jagah di
apka prayatna kabiletareef hai
ek nivedan hai ki site ke graphics pe thoda kaam karein, koshish rang layegi
ek aur baar aur hazaar baar shukriya
atul-ki-shayari.blogspot.com