नमस्कार , आपके समक्ष हाज़िर हूँ एक बार फिर साप्ताहिक काव्य मंच ले कर ..दिल्ली में मानसून ने दस्तक दे दी है ..मौसम खुशगवार है उस पर रचनाकारों की खूबसूरत रचनाएँ बारिश का आनंद दुगना कर रही हैं ..आप भी हर तरह के रस का आनंद उठाइए .. लेकिन ठहरिये ….. ऐसा न कीजियेगा कि रस का आनंद तो उठा लिया और फिर चल दिए … ज़रा गौर फरमाइयेगा … इसी लिए आज की चर्चा का प्रारम्भ कर रही हूँ डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की रचना से … |
डा० रूप चन्द्र शास्त्री जी अपनी गज़ल में स्वार्थी ज़माने की बात ले कर आए हैं --चूस मकरंद भंवरे किनारे हुए सारी कलियों को खिलना मयस्सर नहीं सूख जातीं बहुत मन को मारे हुए कितने खुदगर्ज़ आये-मिले चल दिये मतलबी यार सारे के सारे हुए |
शिखा वार्ष्णेय इस बार अनेक नए बिम्बों से सजा कर लायी हैं कुछ क्षणिकाएँ -- कभी कोई लिखने बैठे कहानी तेरी मेरी तो वो दुनिया की सबसे छोटी कहानी होगी जिसमें सिर्फ एक ही शब्द होगा "परफेक्ट ". |
मनोज कुमार जी की एक बहुत भाव प्रधान रचना पढ़िए --मेरा जीवन एकाकी ये मेरा जीवन एकाकी। कट जाए जीवन एकाकी। नित - नित नूतन रूप तुम्हारा, देखूं मैं तो हारा - हारा। कभी उर्वशी, कभी मेनका, लगो परी तुम इन्द्र सभा की। कट जाए जीवन एकाकी। |
मनोज ब्लॉग पर पढ़िए श्याम नारायण मिश्र जी का यह नवगीत तुमने की होगी बयार आंचल से पोंछकर पसीना, आ गया आषाढ़ का महीना। |
पारुल जी बस कर रही हैं एक गुज़ारिश ---कर दो ......... ख़ामोशी भी दो पल जी ले बात कोई आहिस्ता कर दो ! कोई रहे न मुझ सा तन्हा तन्हाई को शीशा कर दो ! |
सह जीविता कैसे हो ..इसके बारे में बता रहे हैं अर्यमन चेतस पांडे - स्वकीयता और परकीयता - पारस्परिक वैलोम्य में अवगुण्ठित दो भाव, एक-दूसरे की वैयक्तिकता की गरिमा का सम्मान करते हुए, अपनी शुचिता की मर्यादा में रहते हुए |
रंजू भाटिया जी सुहावने मौसम में कर रही हैं --इंतज़ार रिमझिम बरसी बारिश की बूंदे खिले चाहत के फूल और नयी खिलती कोपलों सी पातें और न जाने कितनी स्वप्निल शामें |
राजीव भरोल जी ले आए हैं एक खूबसूरत गज़ल -हमारे ज़ख्म तो भरते दिखाई देते हैं जहाँ कहीं हमें दाने दिखाई देते हैं, वहीँ पे जाल भी फैले दिखाई देते हैं. मैं कैसे मान लूं बादल यहाँ भी बरसा है, यहाँ तो सब मुझे प्यासे दिखाई देते हैं. |
सिद्धार्थ जी अपनी रचना में एक भिखारिन की धनाढ्यता का वर्णन कर रहे हैं - मृदुल मुस्कान ओढ़े हाथ फैलाती है खोटे सिक्के खुश होकर झनझनाती है ...मय्सर नहीं जिसे किरण की एक बूंद ओस मल-मलकर वो रोज नहाती है |
अजय कुमार झा लाये हैं -- कुछ टूटे फूटे बिखरे आखर .. इन बिखरे आखरों में कितनी गहनता है यह पढने के बाद ही पता चलेगा - उदासियों को लपेट के , इन पनियाली आंखों से , अक्सर कई शामें गुज़ारा करते हैं .....हमें यकीं है उनकी मौत का , फ़िर भी, वहीं जाकर , उन्हें रोज़ पुकारा करते हैं .... |
माहेश्वरी कनेरी जी ज़िंदगी की जद्दोजहद को कुछ इस प्रकार लिख रही हैं -- क्यों कभी इतनी हैरान परेशान सी लगती है जिन्दगी ? कभी तो गहन अनुभूति लिए तृप्त सी लगती है जिन्दगी क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी ? कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी |
नीलेश जी क्या लिख रहे हैं ज़रा देखिये ---खत लिख रहा हूँ उनके दिए कुछ वक़्त लिख रहा हूँ दो पल में ही जन्नत लिख रहा हूँ !! ये किसको फिकर है कि कल हो न हो दिल-ओ-जान से आज ख़त लिख रहा हूँ !! |
नवनीत पांडे जी इस बार लाये हैं दो कविताएँ-- संवाद और तुम्हारा मौन तुम! और तुम्हारा मौन.. मैं! और मेरा मैं.. दोनों के बीच एक अर्थहीन अर्थ |
दीपाली “ आब “ की एक खूबसूरत गज़ल पढ़िए .. वो न आए पर उनकी याद आए वो न आये तो उनकी याद आए जी न जाए, तो क्या जिया जाए.. हसरतें आँसुओं में घुलने लगीं, ख्वाब मेरे सभी जो मुरझाए.. नींद में कितने खौफ शामिल हैं, हम भी देखेंगे, नींद आ जाए.. |
अनुपमा जी लायी हैं आध्यात्मिक भावनाओं को अपनी इस रचना में --- या ठान लूँ मन ही मन में .. खिलना कमल को है कीचड़ में .. तब तो सहेजना होगी ... कंपकपाती वो ज्योत मन की .. कभी कभी बुझने सी लगाती है जो - |
देवेन्द्र पांडे जी बनारस के बारे में कुछ बता रहे हैं … बहुत अच्छा शहर है क्या ? बड़ी तारीफ करते हो बहुत अच्छा शहर है क्या ! ये गंगा घाट की नगरी ये भोले नाथ की नगरी यहां आते ही धुल जाते सभी के पाप की गठरी जहां हो स्वर्ग की सीढ़ी कहीं ऐसा शहर है क्या ! |
एक बार बस एक बार इस भारत में प्रभु आ जाओ ! सोते से इसे जगा जाओ , भूलों को राह दिखा जाओ , बिछडों को गले लगा जाओ , गीता का ज्ञान सिखा जाओ ! हे नाथ यहाँ आकर के फिर अर्जुन से वीर बना जाओ ! |
श्री प्रकाश डिमरी जी की रचनाएँ पढ़िए ---सुनो शिशिर और सुनो बसंत हिम कँवर ... जब तुम बरसाते कम्पित विहग .. कहाँ चले जाते ..!!!??? सुख की डोली में मगन |
दिनेश जी “रविकर “ की एक सशक्त रचना पढ़िए -- मन में अतीत की याद लिए फिरते हैं निज अंतर में उन्माद लिए फिरते हैंउन्मादों में अवसाद लिए फिरते हैं अंदर ही अन्दर झुलस रही है चाहें |
मृदुला हर्षवर्धन जी प्रेम की अद्वितीय व्याख्या कर रही हैं --प्रणय जब धरती पर पहला फूल खिला था उस क्षण से ही प्रणय जन्मा था प्रेम ने जब जन्म लिया तब नहीं थी कहीं भी समता पहला नाम दिया भावों को कहा उसे 'माँ की ममता' |
डा० वर्षा सिंह कर रही हैं |
वाणी शर्मा जी आज कल गज़ल की पाठशाला जाती हैं और वहीं से लायीं हैं एक खूबसूरत गज़ल --- मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में पशोपेश में थमी थी साँसें उसकी गली से गुजरते मुश्किल था बच निकलना पासबाने नजर से क्या बुरा था जो लिया इलज़ाम बदशलूकी का हासिल कब क्या हुआ था उसे तोहफगी से |
..क्षमा जी द्वारा बनाये गए इस भित्ति चित्र के साथ ही एक कोमल भावों को समेटे एक खूबसूरत रचना पढ़िए -- वो राह,वो सहेली... पीछे छूट चली, दूर अकेली चली गुफ्तगू, वो ठिठोली, पीछे छूट चली... |
चर्चा के समापन पर असीमा जी गहन भावों को समेटे ले आई हैं कुछ क्षणिकाएँ रात सो रही है... मैं जाग रही हूं... गोया बे-ख्वाब मेरी आंखें और मदहोश है जमाना... |
आज बस इतना ही , फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को इसी मंच पर एक नयी चर्चा के साथ … नमस्कार …संगीता स्वरुप |
बहुत सुन्दर इन्द्रधनुषी चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
ब्लॉगिस्तान के सभी रंग समाए हुए हैं इसमें!
बहुत सुंदर रंग बिखेरती काव्य चर्चा ...... आभार संगीताजी....
जवाब देंहटाएंआज तो विविधता लिये बहुआयामी काव्य चर्चा मंच सजाया है आपने !बहुमूल्य एवं सुन्दर लिंक्स देने के लिये धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा से दस नये फीड्स लेकर जा रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंsundar links sanjoye sarthak charcha.aabhar
जवाब देंहटाएंमंगल सुप्रभात ! यह संकलन समुन्नत रचनाओं का निर्मल स्रोत लगा /सार्थक प्रवीण प्रयास .... आभार जी /
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सुंदर प्रस्तुति , आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति , आभार
जवाब देंहटाएंआज सुबह की चाय के साथ ..बारिश की रिमझिम है और आपकी सुंदर चर्चा है ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे स्थान देने के लिए ...!!
चर्चामंच मेरा पसंदीदा ब्लॉग है.. एकसाथ इतने खूबसूरत पोस्ट और ब्लॉग एक जगह मिल जाते हैं.. बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी.
जवाब देंहटाएंआपने इंद्रधनुषी मंच सजाया है। आकर्षक और सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर , और आकर्षक चर्चा संगीता जी ।बिखरे आखर को स्थान देने का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंमंच के कैनवास पर संगीता जी की तूलिका ने हरीतिमा बिखेर दी है.आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स मिले
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा संगीता जी
आभार
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जवाब देंहटाएंके साथ आकर अपने को परम सौभाग्य-शाली समझता हूँ |
बहुत-बहुत आभार ||
कृपया कर मेरी यह प्रार्थना है कि दिए गए ब्लॉग का लिंक बाहर खुले ऐसी व्यवस्था करें ताकि पाठकों को असुविधा नहीं हो, वरना चाह कर भी कई लेख पढ़ पाता हूं।
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का आभार ...
जवाब देंहटाएंअरुण साथी जी ,
दिए गए लिंक दूसरी टेबल या विंडो में खुले ..यह मुझे नहीं आता है ..यदि कोई तरीका हो तो आप बताएँ ...
एक सुझाव दे सकती हूँ ... यदि आप की-बोर्ड पर Ctrl दबा कर लिंक पर क्लिक करेंगे तो लिंक दूसरी टेबल में खुलेगा ..
बहुत ही अच्छे लिंक्स दिये है आपने ...बेहतरीन चर्चा ।
जवाब देंहटाएंआज तो जब से आई हूँ आपके लिंक्स ही पढ रही हूँ …………बहुत ही सुन्दर और सटीक लिंक्स संजोये है…………सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स मिले
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा संगीता जी...
संगीता स्वरुप जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा चर्चा मंच पर आकर.. इस इन्द्रधनुषी चर्चा के लिये आपको बहुत -बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनायें !
चर्चा-प्रस्तुति का तरीका हमेशा की तरह बहुत ही प्रभावशाली और सार्थक है!
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
bahut hi sunder charcha Sangeeta ji
जवाब देंहटाएंvarsha ka pyar lana, krishn ko bulane ki guhaar, ekaki sa jeevan....sab kuchh to samet liya hai aapne aaj ki charcha mein
fir ek baar meri rachna shamil karne ka double thank you
abhaar
Naaz
सुन्दर चर्चा....
जवाब देंहटाएंबहुमूल्य एवं सुन्दर लिंक्स देने के लिये धन्यवाद एवं आभार !
बहुत ही सार्थक और विस्तृत चर्चा......सुंदर गुलदस्ते की तरह।
जवाब देंहटाएंsangeeta ji ...bahut saadar aabhaar
जवाब देंहटाएंbahut sunder ,saarthak rachnnaayen padhne ko mili hame..
naman
आपकी चर्चा के लिए मेरे पास एक ही शब्द है."सम्पूर्ण "
जवाब देंहटाएंkafi upyogi links mile. aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स के साथ बढ़िया चर्चा...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स धन्यवाद
जवाब देंहटाएंmain kal online nahin aa saka...bas abhi kuchh der ke liye aaya hun..achchha laga yahan aa kar...mujhe to pata hi nahi tha is baare me ab tak..kya innovation hai..is saarthak charcha mein sthaan dene ke liye aabhaar...
जवाब देंहटाएं:)