नमस्कार मित्रों, इस बार बिना किसी भूमिका के चर्चा शुरु करता हूं। पिछली बार बहुत बक-बक कर ली। एक तरफ़ा संवाद करने का अब जी नहीं करता। इस बार मेरे द्वारा इस सप्ताह पढ़े गए कुछ चुनिंदा लिंक और उसके कुछ कैच सेंटेंस … पेश हैं।
ये मेरे चुनाव हैं, आप असहमत हों तो निःसंकोच बताएं … मैं भी तो अभी सीख ही रहा हूं…!
-बीस-
"सूखी रेत पर अब कोई तहरीर लिखी नहीं जाती है"
दग्ध हो गया है मन तेरी तपिश भरी बातों से
फिर भी तेरी ये चुप्पी मुझसे सही नहीं जाती है
सूख गया है समंदर भी जिसे कभी अश्कों ने भरा था
सूखी रेत पर अब कोई तहरीर लिखी नहीं जाती है
-उन्नीस-
राजभाषा हिंदी
आओ मिल जाएँ हम सुगंध और सुमन की तरह
आज जब लिप्यान्तरण, अनुवाद तथा साझेदारी, भाषा को समृद्ध कर रही है (अंग्रेज़ी शब्दकोष में हिन्दी भाषा से लिए गए शब्द Loot, Dacoity, Bandh, Gherao आदि) तो आवश्यकता है कि उनको ससम्मान स्वीकार किया जाए; इसके लिए चाहे क्यों न हिन्दी वर्णमाला, मात्राओं आदि में स्वल्प परिवर्तन करना पड़े. प्रांतीय भाषाओं को अंतर नहीं पड़ता, किन्तु राजभाषा और राष्ट्रभाषा होने के लिए यह अनिवार्य है कि हिन्दी के सुमन से अन्य भाषाओं की सुगंध साहित्य को सुवासित करे.
-अट्ठारह-
न दैन्यं न पलायनम्
आधुनिक झुमका
तकनीक हमारी जीवनशैली बदल देती है। नयी जीवनशैली नये अनुभव लेकर आती है। कान में लगाने वाला ब्लूटूथ का यन्त्र आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न अंग है। जिन्होने आधा किलो के फोन रिसीवर का कभी भी उपयोग किया है, उनके लिये डेढ़ छटाक का यह आधुनिक झुमका किसी चमत्कार से कम नहीं है।
-सतरह-
स्वरोज सुर मंदिर (२)
नियमित आन्दोलन -संख्या वाली ध्वनी स्वर कहलाती है|यही ध्वनी संगीत के काम आती है ,जो कानो को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न करती है |इस ध्वनी को संगीत की भाषा में नाद कहते हैं |इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद 'स्वर'कहलाता है अब आप समझ गए होंगे कि संगीत के स्वर और कोलाहल में फर्क है |और यहाँ संगीत विज्ञान से जुड़ गया है |
-सोलह-
दीपक बाबा की बक बक: तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है यार... बाबा राम देव
सबसे ऊपर धर्म दंड ... मित्रों ये बाबा गलत नहीं करेगा.... बंद कमरों में चलने दो बैठके... पीने दो बिसलरी पानी की बोतले... पर धरती के नीर पीने वाले, खुले आसमान के नीचे से ललकारने वाले .... माटी के लाल की सुनो ... अगर सुबह सूर्यनमस्कार किया हो तो धरती माँ के सीने की हलचल सुनी होगी - सुनो --- इस बाबा की सुनो... माँ की पुकार है..
-पन्द्रह-
धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खे (व्यंग लेख)....पार्ट टू
धांसू साहित्य है क्या? इस लखटकिया सवाल के दुमछल्ले सवाल हैं कि इसे लिखने की प्रेरणा कहां से प्राप्त की जाती है? इसे कैसे लिखा जाता है ?कैसे पढ़ा जाता है? तो इसके लिए अपनी बुद्धि के द्वार खोलने आवश्यक हैं।
-चौदह-
रामायण ६
कितने सुन्दर, कितने मोहक, कितने प्यारे राजकुमार
जो दशरथ के घर में जन्मे - देवलोक के देव हैं चार |
प्रजा जनों के मन से छलके - अथाह प्रेम का सागर है ;
सागर को समाविष्ट जो कर ले - दिल ऐसी इक गागर है |
-तेरह-
मुश्किल है
उतर के उनकी आँखों में जब देखा तो महसूस किया
है मेरी तस्वीर वहीँ पर, वापस आना मुश्किल है
नहीं किया इकरार अभी तक, न उसने इन्कार किया
कहीं बने स्वीकार मौन तो, वक्त बिताना मुश्किल है
-बारह-
अक्षर जब शब्द बनते हैं
कविता और बाज़ार
बाज़ार आदमी की
रोजमर्रा की जरूरतों से पैदा हुआ
और कविता मन के
एकांत में उठती
लहरों की उथल-पुथल से
फिर दोनो में जंग छिड़ गई
……
बस, पौ फटने की देर है
कि आदमी बाज़ार की साजिशों के विरुद्ध
कबीर की तरह लकुटी लिये जगह-जगह
इसी बाज़ार में खड़े मिलेंगे आपको
जिनके पीछे कवियों का कारवाँ होगा ।
-ग्यारह-
इनसे मिलिए यह है गांव की महिला वैज्ञानिक
मुजफ्फरपुर. पूर्वी चम्पारण के तुरकौलिया थानाक्षेत्र के मंझार गांव की छात्रा किरण ने पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर अपने क्षेत्र व राज्य का मान बढाया है? बीए पार्ट - 2 की छात्रा किरण गांव में तेजी से सूखते शीशम के पेड़ को बचाने के लिये एक प्रयोग किया।
-दस-
बुद्ध का दूसरा पत्र
अनंत और शून्य दो अति वाद हैं
इन अतिवादों से हमें बचना है.
अपनाना है हमको मध्य मार्ग
माध्यम का आदर्श बताना है.
-नौ-
कार्टून: रामलीला के हनुमान.
-आठ-
भगवद्गीता का भावानुवाद
सदा विरागी, समता धारे, विषयों से जो दूर रहे
आसक्ति भी नष्ट हो गयी, जिसके उर में शांति बहे
जो केवल रोके ऊपर से, भीतर संयम न धारे
ऐसे आसक्त बुद्धिमान भी, गए इन्द्रियों से हारे
विषयों का चिंतन जो करता, अंतर में कामना जगती
पूर्ण कामना हो न यदि, क्रोधाग्नि जलाने लगती
-सात-
कार्टून:- टंकी पे चढ़ने वालों की फ़ेहरिस्त में सबसे नया नाम...
-छह-
पर्यावरण दिवस पर एक ग़ज़ल
जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ.
-पांच-
अजित गुप्ता का कोना
सुकून आता जाएगा - अजित गुप्ता
आज एक कसक फिर उभर आयी। बचपन से ही मेरे पीछे पड़ी है, कभी भी छलांग लगाकर मेरे वजूद पर हावी हो जाती है। मैं नियति का देय मानकर सब कुछ स्वीकार कर चुकी हूँ लेकिन फिर भी यह कसक मेरे अंदर अमीबा की तरह अपनी जड़े जमाए बैठी है। जैसे ही अनुकूल वातावरण मिलता है यह भी अमीबा की तरह वापस सक्रिय हो जाती है। आदमी सपनों के सहारे जिंदगी निकाल देता है। बचपन में जब नन्हें हाथ प्रेमिल स्पर्श को ढूंढते थे तब एक सपना जन्म लेता था। हम बड़े होंगे अपनी दुनिया खुद बसाएंगे और फिर प्रेम नाम की ऑॅक्सीजन का हम निर्यात करेंगे। जिससे कोई भी रिश्ते में उत्पन्न हो रही कार्बन-डाय-आक्साइड का शिकार ना हो जाए। लेकिन यह कारखाना लगाना इतना आसान नहीं रहा। हवा इतनी दूषित हो चली थी कि आक्सीजन का निर्यात तो दूर स्वयं के लिए भी कम पड़ती थी।
-चार-
एक विस्तार
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मान--मनुहार
नफरत या प्यार
संघर्ष और अधिकार
द्वेष या खेद का
रंग और भेद का
नही था कोई रूप या आकार
धरती से हजारों मीटर ऊपर
चारों और था एक शून्य
असीम , अनन्त
दिक् दिगन्त ।
अहसास था केवल
अपने अस्तित्व का
या फिर गंतव्य तक पहुँचने का ।
शायद ,ऊँचाई पर पहुँचने का अर्थ
मिटजाना ही है ,सारे भेदों का ।
-तीन-
देशान्तर
हिन्दी में एक किस्म का पाखण्ड हमेशा मौजूद रहा है। अप्रिय सत्यों को ढांकने और व्यक्ति के चरित्र को लौंड्री में भेजकर धुलवा-पुंछवा के पेश करने का रूझान। साथ ही हिन्दी में एक खास किस्म का विद्वेष भी मौजूद है। अकसर ऐसे लोगों के बारे में झूठी बातें लिख दी जाती है, उन्हें कलंकित करते हुए, जो या तो उनका जवाब देने को मौजूद नहीं होते या फिर इस लायक नहीं होते।
-दो-
तुम्हारा चेहरा मुझे ग्लोब-सा लगता है...
तुम कैसे हो?
दिल्ली में ठंड कैसी है?
....?
ये सवाल तुम डेली रूटीन की तरह करती हो,
मेरा मन होता है कह दूं-
कोई अखबार पढ लो..
शहर का मौसम वहां छपता है
और राशिफल भी....
-एक-
मेरे अनुसार इस सप्ताह की BEST POST
है वन्दना शर्मा की कविता। सिर्फ़ लिंक दे पा रहा हूं। ब्लॉग पर ताला लगा है इसलिए उसके अंश नहीं दे पा रहा और टाइप करने की मेहनत से बचना चाहता हूं। मेरा दावा है आपको ज़रूर पसंद आएगी।
ढ़ोया हुआ सलीब मुझ तक आ गया है।
…. और अंत में ….
मनोज
फ़ुरसत में … एक कप चाय हो जाए …!
तो एक कप चाय हो जाए …!
देर किस बात की … !!
एक चाय की चुस्की
एक कहकहा
अपना तो इतना सामान ही रहा ।
आज बस इतना ही।
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।
तब तक के लिए हैप्पी ब्लॉगिंग!
ये मेरे चुनाव हैं, आप असहमत हों तो निःसंकोच बताएं … मैं भी तो अभी सीख ही रहा हूं…!
-बीस-
"सूखी रेत पर अब कोई तहरीर लिखी नहीं जाती है"
दग्ध हो गया है मन तेरी तपिश भरी बातों से
फिर भी तेरी ये चुप्पी मुझसे सही नहीं जाती है
सूख गया है समंदर भी जिसे कभी अश्कों ने भरा था
सूखी रेत पर अब कोई तहरीर लिखी नहीं जाती है
-उन्नीस-
राजभाषा हिंदी
आओ मिल जाएँ हम सुगंध और सुमन की तरह
आज जब लिप्यान्तरण, अनुवाद तथा साझेदारी, भाषा को समृद्ध कर रही है (अंग्रेज़ी शब्दकोष में हिन्दी भाषा से लिए गए शब्द Loot, Dacoity, Bandh, Gherao आदि) तो आवश्यकता है कि उनको ससम्मान स्वीकार किया जाए; इसके लिए चाहे क्यों न हिन्दी वर्णमाला, मात्राओं आदि में स्वल्प परिवर्तन करना पड़े. प्रांतीय भाषाओं को अंतर नहीं पड़ता, किन्तु राजभाषा और राष्ट्रभाषा होने के लिए यह अनिवार्य है कि हिन्दी के सुमन से अन्य भाषाओं की सुगंध साहित्य को सुवासित करे.
-अट्ठारह-
न दैन्यं न पलायनम्
आधुनिक झुमका
तकनीक हमारी जीवनशैली बदल देती है। नयी जीवनशैली नये अनुभव लेकर आती है। कान में लगाने वाला ब्लूटूथ का यन्त्र आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न अंग है। जिन्होने आधा किलो के फोन रिसीवर का कभी भी उपयोग किया है, उनके लिये डेढ़ छटाक का यह आधुनिक झुमका किसी चमत्कार से कम नहीं है।
-सतरह-
स्वरोज सुर मंदिर (२)
नियमित आन्दोलन -संख्या वाली ध्वनी स्वर कहलाती है|यही ध्वनी संगीत के काम आती है ,जो कानो को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न करती है |इस ध्वनी को संगीत की भाषा में नाद कहते हैं |इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद 'स्वर'कहलाता है अब आप समझ गए होंगे कि संगीत के स्वर और कोलाहल में फर्क है |और यहाँ संगीत विज्ञान से जुड़ गया है |
-सोलह-
दीपक बाबा की बक बक: तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है यार... बाबा राम देव
सबसे ऊपर धर्म दंड ... मित्रों ये बाबा गलत नहीं करेगा.... बंद कमरों में चलने दो बैठके... पीने दो बिसलरी पानी की बोतले... पर धरती के नीर पीने वाले, खुले आसमान के नीचे से ललकारने वाले .... माटी के लाल की सुनो ... अगर सुबह सूर्यनमस्कार किया हो तो धरती माँ के सीने की हलचल सुनी होगी - सुनो --- इस बाबा की सुनो... माँ की पुकार है..
-पन्द्रह-
धांसू साहित्य लेखन के अनुभूत नुस्खे (व्यंग लेख)....पार्ट टू
धांसू साहित्य है क्या? इस लखटकिया सवाल के दुमछल्ले सवाल हैं कि इसे लिखने की प्रेरणा कहां से प्राप्त की जाती है? इसे कैसे लिखा जाता है ?कैसे पढ़ा जाता है? तो इसके लिए अपनी बुद्धि के द्वार खोलने आवश्यक हैं।
-चौदह-
रामायण ६
कितने सुन्दर, कितने मोहक, कितने प्यारे राजकुमार
जो दशरथ के घर में जन्मे - देवलोक के देव हैं चार |
प्रजा जनों के मन से छलके - अथाह प्रेम का सागर है ;
सागर को समाविष्ट जो कर ले - दिल ऐसी इक गागर है |
-तेरह-
मुश्किल है
उतर के उनकी आँखों में जब देखा तो महसूस किया
है मेरी तस्वीर वहीँ पर, वापस आना मुश्किल है
नहीं किया इकरार अभी तक, न उसने इन्कार किया
कहीं बने स्वीकार मौन तो, वक्त बिताना मुश्किल है
-बारह-
अक्षर जब शब्द बनते हैं
कविता और बाज़ार
बाज़ार आदमी की
रोजमर्रा की जरूरतों से पैदा हुआ
और कविता मन के
एकांत में उठती
लहरों की उथल-पुथल से
फिर दोनो में जंग छिड़ गई
……
बस, पौ फटने की देर है
कि आदमी बाज़ार की साजिशों के विरुद्ध
कबीर की तरह लकुटी लिये जगह-जगह
इसी बाज़ार में खड़े मिलेंगे आपको
जिनके पीछे कवियों का कारवाँ होगा ।
-ग्यारह-
इनसे मिलिए यह है गांव की महिला वैज्ञानिक
मुजफ्फरपुर. पूर्वी चम्पारण के तुरकौलिया थानाक्षेत्र के मंझार गांव की छात्रा किरण ने पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर अपने क्षेत्र व राज्य का मान बढाया है? बीए पार्ट - 2 की छात्रा किरण गांव में तेजी से सूखते शीशम के पेड़ को बचाने के लिये एक प्रयोग किया।
-दस-
बुद्ध का दूसरा पत्र
अनंत और शून्य दो अति वाद हैं
इन अतिवादों से हमें बचना है.
अपनाना है हमको मध्य मार्ग
माध्यम का आदर्श बताना है.
-नौ-
कार्टून: रामलीला के हनुमान.
-आठ-
भगवद्गीता का भावानुवाद
सदा विरागी, समता धारे, विषयों से जो दूर रहे
आसक्ति भी नष्ट हो गयी, जिसके उर में शांति बहे
जो केवल रोके ऊपर से, भीतर संयम न धारे
ऐसे आसक्त बुद्धिमान भी, गए इन्द्रियों से हारे
विषयों का चिंतन जो करता, अंतर में कामना जगती
पूर्ण कामना हो न यदि, क्रोधाग्नि जलाने लगती
-सात-
कार्टून:- टंकी पे चढ़ने वालों की फ़ेहरिस्त में सबसे नया नाम...
-छह-
पर्यावरण दिवस पर एक ग़ज़ल
जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ.
-पांच-
अजित गुप्ता का कोना
सुकून आता जाएगा - अजित गुप्ता
आज एक कसक फिर उभर आयी। बचपन से ही मेरे पीछे पड़ी है, कभी भी छलांग लगाकर मेरे वजूद पर हावी हो जाती है। मैं नियति का देय मानकर सब कुछ स्वीकार कर चुकी हूँ लेकिन फिर भी यह कसक मेरे अंदर अमीबा की तरह अपनी जड़े जमाए बैठी है। जैसे ही अनुकूल वातावरण मिलता है यह भी अमीबा की तरह वापस सक्रिय हो जाती है। आदमी सपनों के सहारे जिंदगी निकाल देता है। बचपन में जब नन्हें हाथ प्रेमिल स्पर्श को ढूंढते थे तब एक सपना जन्म लेता था। हम बड़े होंगे अपनी दुनिया खुद बसाएंगे और फिर प्रेम नाम की ऑॅक्सीजन का हम निर्यात करेंगे। जिससे कोई भी रिश्ते में उत्पन्न हो रही कार्बन-डाय-आक्साइड का शिकार ना हो जाए। लेकिन यह कारखाना लगाना इतना आसान नहीं रहा। हवा इतनी दूषित हो चली थी कि आक्सीजन का निर्यात तो दूर स्वयं के लिए भी कम पड़ती थी।
-चार-
एक विस्तार
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मान--मनुहार
नफरत या प्यार
संघर्ष और अधिकार
द्वेष या खेद का
रंग और भेद का
नही था कोई रूप या आकार
धरती से हजारों मीटर ऊपर
चारों और था एक शून्य
असीम , अनन्त
दिक् दिगन्त ।
अहसास था केवल
अपने अस्तित्व का
या फिर गंतव्य तक पहुँचने का ।
शायद ,ऊँचाई पर पहुँचने का अर्थ
मिटजाना ही है ,सारे भेदों का ।
-तीन-
देशान्तर
हिन्दी में एक किस्म का पाखण्ड हमेशा मौजूद रहा है। अप्रिय सत्यों को ढांकने और व्यक्ति के चरित्र को लौंड्री में भेजकर धुलवा-पुंछवा के पेश करने का रूझान। साथ ही हिन्दी में एक खास किस्म का विद्वेष भी मौजूद है। अकसर ऐसे लोगों के बारे में झूठी बातें लिख दी जाती है, उन्हें कलंकित करते हुए, जो या तो उनका जवाब देने को मौजूद नहीं होते या फिर इस लायक नहीं होते।
-दो-
तुम्हारा चेहरा मुझे ग्लोब-सा लगता है...
तुम कैसे हो?
दिल्ली में ठंड कैसी है?
....?
ये सवाल तुम डेली रूटीन की तरह करती हो,
मेरा मन होता है कह दूं-
कोई अखबार पढ लो..
शहर का मौसम वहां छपता है
और राशिफल भी....
-एक-
मेरे अनुसार इस सप्ताह की BEST POST
है वन्दना शर्मा की कविता। सिर्फ़ लिंक दे पा रहा हूं। ब्लॉग पर ताला लगा है इसलिए उसके अंश नहीं दे पा रहा और टाइप करने की मेहनत से बचना चाहता हूं। मेरा दावा है आपको ज़रूर पसंद आएगी।
ढ़ोया हुआ सलीब मुझ तक आ गया है।
…. और अंत में ….
मनोज
फ़ुरसत में … एक कप चाय हो जाए …!
तो एक कप चाय हो जाए …!
देर किस बात की … !!
एक चाय की चुस्की
एक कहकहा
अपना तो इतना सामान ही रहा ।
आज बस इतना ही।
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।
तब तक के लिए हैप्पी ब्लॉगिंग!
कई महत्वपूर्ण पोस्ट का संकलन - एक बेहतर कोशिश आपकी.
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
शुभप्रभात ...मनोजजी ..सुंदर चर्चा और बेहतरीन लिनक्स....
जवाब देंहटाएंस्वरोज सुर मंदिर को स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार ...!!
इसमें असहमति की क्या बात है। पसंद अपनी-अपनी।
जवाब देंहटाएं---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
बेहतरीन चर्चा ...
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स शानदार हैं ...कुछ पढ़े , कुछ अनपढ़े
पढ़ते हैं सभी बारी- बारी !
Posts to abhi parh nahi sake hain par haan..presentation lubhaavna hai..!
जवाब देंहटाएंRadio mein Binaca Geetmaala aati thi bahut pahle..hab hum bahut chhote they..uski yaad aa gayee ! :-)
अच्छी लिंक्स अच्छी चर्चा ,पर बकबक के बिना अधूरी |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
पोस्टों का सुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा । अच्छे लिंक्स को सहेज कर हमारे लिए ले आए आप मनोज भाई
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स शानदार.
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान दिया.कृतज्ञ हूँ.
मनोज जी... आपने तो बहुत सुन्दर चर्चा की ... और अपने पढ़े लिंक्स से अच्छे लिंक्स दिए ...आपका धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंअच्छे लिन्क्स , सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा ..!
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन, हर बार की तरह बढ़िया चर्चा. बधाई.
जवाब देंहटाएंआपका अन्दाज़ हर बार निराला होता है और हमे ये भी पसन्द आया ……………छोटी मगर सारगर्भित चर्चा।
जवाब देंहटाएंमनोज जी ,
जवाब देंहटाएंबेशक चर्चा बहुत अच्छी है , लेकिन आपके संवाद की कमी खटक रही है ...
Lovely links. Thanks.
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार और बढ़िया चर्चा रहा बेहतरीन लिंक्स के साथ!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपके चुनाव पर कौन सवाल उठा सकता है.बेहद संतुलित और उत्कृष्ट चर्चा.
जवाब देंहटाएंsarthak charcha prastut ki hai anokhe andaj me .aabhar .
जवाब देंहटाएंयहाँ आज पहली बार आई - धन्यवाद , यहाँ स्थान के लिए ... :)
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंhttp://abhinavsrijan.blogspot.com/
http://baal-mandir.blogspot.com/
http://abhinavanugrah.blogspot.com/
बहुत सुन्दर और संतुलित चर्चा की है आपने!
जवाब देंहटाएं--
टिप्पणी में केवल इतना ही कहूँगा कि-
करें विश्वास अब कैसे, सियासत के फकीरों पर
उड़ाते मौज़ जी भरकर, हमारे ही जखीरों पर
रँगे गीदड़ अमानत में ख़यानत कर रहे हैं अब
लगे हों खून के धब्बे, जहाँ के कुछ वज़ीरों पर
कार्टून को भी सम्मिलित करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा रही इस बार की, अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएं