नमस्कार , हाज़िर हूँ मंगलवार की साप्ताहिक काव्य चर्चा ले कर ..रामलीला मैदान की लीला का ज़िक्र कुछ कम हो चला है … लेकिन क्या सच ही ये प्रसंग भुला देने लायक है ..नेताओं का कहना है कि जनता की याददाश्त कमज़ोर होती है और आने वाले सालों में जब चुनाव होंगे तब तक जनता भूल जायेगी यह सब …पर जब आम जनता जैसे हम और आप यह कहते हैं तो अफ़सोस होता है , यानि कि हम ही स्वयं को कह रहे हैं कि हमारी याददाश्त कमज़ोर है ..खैर ..कल के नवभारत टाईम्स में यह आंकड़े आए थे ..आपके समक्ष रख रही हूँ … 5 लाख करोड़ कम हुई स्विस बैंकों की दौलत --- 2009 में यह रकम 1,30,00,000 करोड़ रूपये के करीब थी जो 2010 में 1,26,00,000 करोड़ रूपये जमा थे ..अब इसमें भारत के सही आंकड़े उपलब्द्ध नहीं हैं …अरे ! मैं भी काव्य मंच पर क्या ले बैठी … तो ..आज शुरू करते हैं चर्चा इसी भ्रष्टाचार पर लिखी एक सशक्त रचना से .. |
डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी हर विषय पर खूबसूरत गीत और कविता लिखते रहे हैं …आज हमारे देश के कर्णधार नेता देश को कैसे खोखला कर रहे हैं उस पर उनकी एक सार्थक रचना पढ़िए --कीट निकम्में जिनको सौंपी पहरेदारी, वो करते हैं चोरी-जारी, खाकर करते नमक हरामी, खुले आम करते गद्दारी, चाँदी-सोना लूट लिया सब, खम्बों पर धर दिये मुलम्मे। सबको कुतर रहे भीतर घुस, घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे। |
रश्मि प्रभा जी शब्दों को कहाँ कहाँ से ढूँढ कर ला रही हैं और बना रही हैं --- शब्द लहराकर हर तरफ जाते हैं कोई रख देता है उसे रोटी में कोई मटकी में कोई बुहारकर निकाली गई धूल में कोई टांग देता है कंदील संग रात के अँधेरे में ! शब्द छुप जाते हैं झांकते हैं दरवाज़े की ओट से |
मनोज ब्लॉग पर श्याम नारायण मिश्र जी का एक ओजस्वी नवगीत ..जिसको कवि ने किसको समर्पित किया है यह जानने के लिए पढ़ें --गीत मेरे अर्पित हैं ख़ून की उबालों को, क्रांति की मशालों को गीत मेरे अर्पित हैं तोतली जुबानों पर दूनिया-पहाड़ों के अंक जो चढाते हैं |
शिखा वार्ष्णेय जी की खूबी है कि कहीं से भी प्रेरणा ले कर ज़िंदगी के कथ्य को कह देती हैं … एक कविता बुर्के में महिला को देख कर लिखी थी और आज पक्षियों के बारे में पढते हुए … आप भी पढ़िए पक्षियों से मिलती प्रेरणा को –- कहते हैं उड़ान परों से नहीं हौसलों से होती है पर क्या हौसला ही काफी है. हौसले के साथ तो उड़ता है बादल भी पर कहलाता है आवारा. |
दिगंबर नासवा जी ऐसे रिश्तों की बात कर रहे हैं जो मृतप्राय: हो गए हैं , लेकिन यादें हैं कि हर पल चली आती हैं --रिश्ता जिस दिन हमारे रिश्ते की अकाल मृत्यु हुई कुकुरमुत्ते की तरह तुम्हारी यादें सर उठाने लगीं कंबल में जमी धूल सी तुम तमाम कोशिशों के बावजूद झाड़ी नही गयीं मुझसे |
अनिता निहलानी जी की रचना --- कवि को कौन चाहिए जग में एक सुहृदय पाठक ही तो, कोई तो हो जग में ऐसा जो समझे उसकी रचना को ! |
श्यामल सुमन जी एक बेहतरीन गज़ल लाये हैं -- कौन मुझसे पूछता अब किस तरह से जी रहा हूँ प्यास है पानी के बदले आँसुओं को पी रहा हूँ जख्म अपनों से मिले फिर दर्द कैसा, क्या कहें आसमां ही फट गया तो बैठकर के सी रहा हूँ |
बाबुषा ने अपनी क्षणिकाओं का नाम दिया है -----बकवास --- पार्ट – 7 जब भी पढ़ती हूँ उनके गहन अर्थ में डूब जाती हूँ … ज़्यादातर स्त्रियों की नहीं होतीं , आँखें ,कान या नाक - वे होती हैं मात्र ; गहरी -अंधी सुरंगें ! |
सोनल रस्तोगी जी कह रही हैं कि किसी पर भी आक्षेप लगाना कितना सरल है …मिथ्या देव सहज है ना थूक देना किसी पर आक्षेप लगाना अकर्मण्य होने पर कहना तू व्यर्थ है जीवन बोझ है तेरा |
ऋचा लायीं है तेरी खामोशी के सुर "साउंड एनर्जी" का तो समझ आता है पर तुम्हारी ख़ामोशी के सुर कैसे गूंजा करते हैं यूँ अविराम... अविरल... हर पल... मेरी धड़कन में... किस सप्तक के सुर हैं ये कि कोई और नहीं सुन पाता इन्हें तुम्हारे दिल से निकलते हैं और मेरे दिल को सुनाई देते हैं बस |
राम कृष्ण गौतम कटु सच्चाई को कुछ यूँ कह रहे हैं -- हम तो यूं ही जिए जा रहे थेज़िंदगी में दो घड़ी मेरे पास न बैठा कोईऔर आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे कोई तोहफा न मिला आज तक मुझे "गौतम" मगर आज सब फूल ही फूल दिए जा रहे थे |
दिनेश राय द्विवेदी जी की रचना पढ़िए -- ख़ौफ तारी था उसकाउस के नाम से डरा कर, माताएँ सुलाती थीं अपने बच्चों को उस के शहर का रुख़ करने की खबर से खड़े हो जाते थे रोंगटे शहरवासियों के |
वंदना जी ले आई हैं एक खूबसूरत गज़ल …वो बादल , वो हवा , वो बूंदों की रिमझिम उसके आँगन में बरसता हुआ मैं सावन वो कोई भीगता हुआ सा गुलाब जैसे मैं आँखों में उसकी महकता हुआ गुल वो मेरी पलकों पे शबनम ओ आब जैसे |
कहाँ से आतीं हैं, कराहों में डूबी ये आवाज़ें - कि ज़िन्दगी बेमानी हुई जाती है, कहाँ कोई फिर आईना है टूटा, कि अक्श है मेरा फिर बिखरा हुआ, |
साधना वैद जी अपनी चाहतों के बारे में बता रही हैं --पानी पर लिखी तहरीरें पानी पर लिखी तहरीरों की तरह मेरी चाहतों का वजूद भी कितना क्षणिक, कितना अस्थाई है , |
डा० निधि टंडन जी बारिश के साथ अपने मन के दृश्य भी दिखा रही हैं -- बादल हैं ये काले काले या मेरी आँखों का काजल बिखरा है इस सावन में तुझे याद करते-करते . |
सी० के० देवेन्द्र जी की क्षणिकाएँ पढ़िए - तेरी बेवफाई, दो आंसू, सुरमा, टुकड़ेसुरमासुबह से सूरज कहीं नज़र नहीं आया तुमने आँखों में सुरमा लगा लिया था क्या..!!! |
जो ग़म पूछें उन्हीं से हाल, वो कुछ यूं बताए हैं. जहां तुम थोक में मिलते, वहीं से ले के आए है. बलाएं भी बिरादर इस तरह, संग राह है प्यारे, पनाहों में पता चलता, कहर पहले से आए हैं. |
कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा जी की एक समसामयिक गज़ल पढ़िए -- हो समय प्रतिकूल तब वक्त भी ठहर जाता है . हो समय प्रतिकूल तब वक्त भी ठहर जाता है , वक्त[सत्ता]के सम्मुख जन-तन्त्र बे-बस नजर आता है , मन में तमन्ना रखते हैं जमाने को बदलने की , पर ये जान देने का ही रास्ता नजर आता है , |
अब तो दिल्ली में भी मानसून आने को है ..और सुषमा आहुति जी भी कुछ इसी बारे में कह रही हैं --ये बारिश की बूंदें ये ठण्डी हवाये ये बारिश की बूँदे जरा देखा इन्हे गौर से तो, इनमे अक्स तुम्हारा दिखने लगा...! |
हरीश भट्ट जी की एक बहुत मनमोहक रचना पढ़िए … जब ओढ़ लिया इंकार स्वयं में तुम तो पल में संक्षिप्त हो गए फिर मैं कैसे विस्तृत हो जाता मैं दिया सरीखा मन मंदिर का और वेद वाक्य का अनुवाहक तुम मौन निवेदन क्रमशः में फिर मैं कैसे, झंकृत हो जाता |
ताजगी की एक इबारत और क्या. मेरी बस इतनी सी चाहत और क्या. बैठे-बैठे लिख रहा होगा खुदा हम सभी लोगों की किस्मत और क्या. |
सुरेश यादव जी बहुत ही संवेदनशील रचनाएँ लाये हैं … मेरी संवेदनाएं , ज़मीं और विश्वास तुम्हारी कविता में बहुत बार हथेलियों के बीच… मरी तितलियों का रंग उतरता है बहुत बार घायल मोर का पंख तुम्हारी कविता में रंग भरता है |
वंदना गुप्ता जी चेतावनी दे रही हैं कि गर तुम चाहो तो मैं खुद के वजूद को बदल लूँ ..पर फिर वापस यह रूप नहीं ले पाउंगी ..क्यों कि …आसमां रोज नहीं बदलता लिबास तुम चाहते थे ना जीयूँ तुम्हारी तरह लो आज तोड दीं सारी श्लाघायें ढाल लो जिस सांचे मे चाहे दे दो मनचाहा आकार मगर फिर बाद मे ना कहना |
राजभाषा हिंदी ब्लॉग पर ज्वलंत समस्या को उठाती एक रचना पढ़िए ..रचयिता सृष्टि की माँ के गर्भ में साँस लेते हुए मैं खुश हूँ बहुत मेरा आस्तित्व आ चुका है बस प्रादुर्भाव होना बाकी है। मैं माँ की कोख से ही इस दुनिया को देख पाती हूँ |
आज बस इतना ही , आशा है आज की चर्चा आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी … आपके सुझाव और प्रतिक्रियाओं का सदैव इंतज़ार रहता है … फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को साप्ताहिक काव्य मंच पर ..तब तक के लिए दीजिए आज्ञा … नमस्कार --संगीता स्वरुप |
Bahut Sunder Links liye Kavy Charcha..... Abhar
जवाब देंहटाएंghazal ko navazne ka shukriyaa sangeeta aunty :) sunder charcha :)
जवाब देंहटाएंकई महत्वपूर्ण लिंक्स का संकलन और उसकी बेहतरीन प्रस्तुति - बहुत खूब संगीता जी
जवाब देंहटाएंएक आग्रह करना चाहता हूँ की शायद गलती से मेरे नाम के आगे इस चर्चा में डा० लग गया है जबकि यह सौभाग्य अभी मुझे प्राप्त नहीं हुआ है. अभी उस डिग्री के लिए प्रयास करूँगा ऐसा सोच ही रहा हूँ. मैं तो एक स्टील कंपनी में कार्यरत हूँ. अतः संभव हो तो इसमें सुधार कर दें. नमस्कार
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
मनभावन चर्चा, उत्कृष्ट रचनाये पढ़ने को मिलीं, सुखद संयोग के वाहक को बहुत-२ बधाई /
जवाब देंहटाएंडा० रूपचन्द्र शास्त्री जी के liye है----
जवाब देंहटाएंशांत चित्त श्रीमान में, देखी पहली रीस |
कागद पर परगट हुई, रही सभी को टीस |
रही सभी को टीस, सड़े न अगला खम्भा
लोकतंत्र की चमक, चढ़ेगा शुद्ध मुलम्मा |
कह रविकर गुरुदेव, करें न इकदम चिंता ||
रहे देश आबाद, जगे जब प्यारी जनता ||
श्यामल सुमन जी ,
जवाब देंहटाएंत्रुटि सुधार कर दी गयी है ... ..शुक्रिया .
हमेशा की तरह लाज़वाब ...बहुत सी प्रविष्टियाँ रह गयी हैं पढने से ...
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा !
उपयोगी और सुंदर चर्चा। बहुत से लिंक पर नहीं गया था। हो आता हूं।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा!
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों से सजी बढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंबहुत से लिंकों पर तो कल ही हो आया था,
कुछ बाकी है उन पर शाम तक हो आऊँगा!
हमेशा की तरह सुँदर , सुव्यवस्थित और पठनीय लिंक्स से सजी चर्चा .
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों से सजी बढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंकई महत्वपूर्ण लिंक्स / बेहतरीन प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंमानसून के आगमन में काव्य बूंदों की रिमझिम फुहारों से सराबोर करता हुआ चर्चा मंच पहली बारिश में भीगने का आनंद दे गया.संगीता जी ,प्रणाम.
जवाब देंहटाएंsangeeta ji charcha manch ko aap logon ne milkar aaj blog jagat me bulandiyon tak pahunchadiya hai isme agar aap mera aagrah mane to har din kam se kam ek naye bloggar ko se hame parichit karakar use bhi yahan sthan banane ka suavsar den.
जवाब देंहटाएंhamesha kee tarah behtareen links se saji sundar charcha.
Behatar sanyojan, sunder links.abhar
जवाब देंहटाएंS.N.Shukla
नवभारत टाईम्स के आंकड़े ऐसे आन्दोलन की सार्थकता को स्वयं ही बयान कर रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंbahut achhe link saheje hain yaha par....
जवाब देंहटाएंshaam tak pure padh paunga....
kshanikaon ko yaha chayan ke liye aabhar....
बहुत सुन्दर एवं सार्थक चर्चा संगीता जी ! मुझे इसमें स्थान देने के लिये अनेकानेक धन्यवाद ! आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंशालिनी जी ,
जवाब देंहटाएंआपका सुझाव उत्तम है ... मेरा हमेशा प्रयास रहता है कि कुछ ऐसे ब्लॉगर्स की रचनाएँ पेश कर सकूँ जहाँ तक कम लोंग पहुंचते हैं ...आज की चर्चा में भी सुरेश यादव जी औए मनीष जोशी जी के ऐसे ही ब्लॉग शामिल हैं ...
लेकिन एक बात मैं बहुत विनम्रता से कहना चाहूंगी कि बहुत कम लोंग चर्चाओं को गंभीरता से लेते हैं ... फिर भी जो लोंग चर्चा के माध्यम से नए लिंक्स तक पहुंचते हैं उनको मैं हृदय से धन्यवाद देती हूँ .. और यह मेरी आदत में शुमार है कि जो लिंक्स मैं लेती हूँ अपनी चर्चा में वहाँ जा कर एक बार ज़रूर देखती हूँ कि वहाँ तक कितने लोंग पहुंचे ... इस लिए मुझे अच्छी तरह ज्ञात है कि कौन चर्चाओं को गंभीरता से लेते हैं ..यहाँ नाम दे कर मैं कोई रेखा नहीं खींचना चाहती ...बस उन सबका आभार प्रकट करती हूँ ... क्यों कि उनसे ही हमें सही प्रेरणा मिलती है ..
संगीता जी, बहुत ही रंग-बिरंगी चर्चा है आज, बधाई व आभार!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति - बहुत खूब संगीता जी !!
जवाब देंहटाएंbahut sunder link se parichay karayaa aapne bahut hi bemisaal charchaon ko lekar charcha-manch prastut kiyaa aapne .badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और चुने हुये लिंक्स के साथ सटीक और सार्थक चर्चा की है……………आभार्।
जवाब देंहटाएंवाह लाजवाब चर्चा ... शुक्रिया मुझे भी जगह देने के लिए ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिनक्स ...मुझे स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदेश में राजनीति कि गर्म हवाए चल रही हैं.हर कोई उनसे व्याकुल है उसपर आपकी रिमझिम बूदों सी चर्चा बहुत सुकून पहुंचा रही है.बहुत अच्छे लिंक्स मिले काफी जगह जा चुके हैं बाकी पर जाते हैं.
जवाब देंहटाएंbahut badiya charcha behtreen links ke saath..prastuti hetu aabhar!
जवाब देंहटाएंbahut badiya laga charchamanch... achhe achhe links padhne ko mile.. pahle baar aaya hun lekin blog padhna mujhe achha laga hai, naye logon ko protsahan den to bahut achha hoga..dhanyavaad ke saath..Pawan
जवाब देंहटाएंवाह .. बहुत ही अच्छी चर्चा और लिंक्स ...आभार के साथ बधाई ।
जवाब देंहटाएंसंगीता स्वरुप जी, बहुत अच्छा लगा चर्चा मंच पर आकर..
जवाब देंहटाएंसबको सहेजने का आपका प्रयास हार्दिक बधाई योग्य है। बहुत ही प्रभावशाली और सार्थक चर्चा रही आज की ।
Sangeeta ma,
जवाब देंहटाएं:-)
pranaam .
sundar charcha.
kuchh panne ki bakwaasein shaamil karne ke liye abhaar.
:-)
badhiya links ka sanklan kiya hai...bahut se dekh liye hai thode baki hain.
जवाब देंहटाएंaaj ke home work ke liye aabhar. aur apki mehnat ko naman.
संगीता जी नमस्कार ...!
जवाब देंहटाएंरंग लाती है आपकी मेहनत हमेशा ही ...!!
बहुत बढ़िया लिंक्स ...!!
abhar.
संगीता जी को आभार...बेहतरीन लिंक्स और मुझे स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंसंगीता जी .. हर बार की तरह बेहद सुन्दर चर्चा ..अच्छे लिंक्स
जवाब देंहटाएंसंगीता जी.......मेरी रचना प्रस्तुत करने हेतु धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसाथ ही साथ एक जगह इतने बढ़िया लिंक्स के संकलन के लिए बधाई.........कई पढ़ लिए.कई बाक़ी हैं............कल तक सब पढ़ लूंगी ...