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मंगलवार, जून 28, 2011

मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में …..साप्ताहिक काव्य मंच –52 ..चर्चा मंच --559

नमस्कार , आपके समक्ष हाज़िर हूँ एक बार फिर साप्ताहिक काव्य मंच ले कर ..दिल्ली में मानसून ने दस्तक दे दी है ..मौसम खुशगवार है उस पर रचनाकारों की खूबसूरत रचनाएँ बारिश का आनंद दुगना कर रही हैं ..आप भी हर तरह के रस का आनंद उठाइए .. लेकिन ठहरिये ….. ऐसा न कीजियेगा कि रस का आनंद तो उठा लिया और फिर चल दिए … ज़रा गौर फरमाइयेगा … इसी लिए आज की चर्चा का प्रारम्भ कर रही हूँ डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की रचना से …
मेरा परिचय डा० रूप चन्द्र शास्त्री जी अपनी गज़ल में स्वार्थी ज़माने की बात ले कर आए हैं --चूस मकरंद भंवरे किनारे हुए

सारी कलियों को खिलना मयस्सर नहीं
सूख जातीं बहुत मन को मारे हुए
कितने खुदगर्ज़ आये-मिले चल दिये
मतलबी यार सारे के सारे हुए
My Photo शिखा वार्ष्णेय इस बार अनेक नए बिम्बों से सजा कर लायी हैं कुछ क्षणिकाएँ --

कभी कोई लिखने बैठे
कहानी तेरी मेरी
तो वो दुनिया की
सबसे छोटी कहानी होगी
जिसमें सिर्फ एक ही शब्द होगा
"परफेक्ट ".
मेरा फोटो मनोज कुमार जी  की एक बहुत भाव प्रधान रचना पढ़िए --मेरा जीवन एकाकी

ये     मेरा       जीवन     एकाकी।
कट      जाए    जीवन    एकाकी।
नित - नित नूतन रूप तुम्हारा, देखूं      मैं       तो    हारा - हारा।
कभी   उर्वशी,    कभी    मेनका,   लगो परी तुम इन्द्र सभा की।
कट      जाए    जीवन    एकाकी।
clip_image001 मनोज ब्लॉग पर पढ़िए श्याम नारायण मिश्र जी का यह नवगीत
तुमने की होगी बयार
        आंचल से पोंछकर पसीना,
                आ गया आषाढ़ का महीना।
My Photo पारुल जी बस कर रही हैं एक गुज़ारिश ---कर दो .........
ख़ामोशी भी दो पल जी ले
बात कोई आहिस्ता कर दो !
कोई रहे न मुझ सा तन्हा
तन्हाई को शीशा कर दो !
My Photo  सह जीविता   कैसे हो ..इसके बारे में बता रहे हैं अर्यमन चेतस पांडे -
स्वकीयता और परकीयता -
पारस्परिक वैलोम्य में अवगुण्ठित दो भाव,
एक-दूसरे की वैयक्तिकता की गरिमा का
सम्मान करते हुए,
अपनी शुचिता की मर्यादा में रहते हुए
My Photo अपर्णा मनोज भटनागर जी एक गहन विषय ले कर आई हैं --
अपनी मुक्ति के लिए 
मुझे नहीं देखना था आकाश का विस्तार 
नहीं गिनने थे तारे 
नहीं देखनी थी अबाध नदी की धाराएं 
या पर्वत की ऊंची होती चोटी.
न ही देखना था सागर का ज्वार  .
My Photo रंजू भाटिया जी सुहावने मौसम में कर रही हैं --इंतज़ार
रिमझिम बरसी
बारिश की बूंदे
खिले चाहत के फूल
और नयी खिलती
कोपलों सी पातें
और न जाने
कितनी स्वप्निल शामें
मेरा फोटो निवेदिता जी लायी हैं नारी की पीड़ा को उकेरती एक सशक्त रचना --
ये कैसी विडम्बना है ,
ये कैसा उद्वेलन है .......
अपने प्रश्नों के ही घेरे में ,
क्षत-विक्षत अंतर्मन है !
कैसे परिचय दूँ ? नहीं-नहीं
ये कैसी आप्त पुकार है ,
क्या दूँ अपना परिचय !
मेरा फोटो राजीव भरोल जी ले आए हैं एक खूबसूरत गज़ल -हमारे ज़ख्म तो भरते दिखाई देते हैं
जहाँ कहीं हमें दाने दिखाई देते हैं,
वहीँ पे जाल भी फैले दिखाई देते हैं.
मैं कैसे मान लूं बादल यहाँ भी बरसा है,
यहाँ तो सब मुझे प्यासे दिखाई देते हैं.
My Photo  सिद्धार्थ जी अपनी रचना में एक भिखारिन की धनाढ्यता का वर्णन कर रहे हैं -
मृदुल  मुस्कान ओढ़े
हाथ फैलाती है
खोटे सिक्के
खुश होकर झनझनाती है
...मय्सर नहीं जिसे
किरण की एक बूंद
ओस मल-मलकर
वो रोज नहाती है
मेरा फोटो अजय कुमार झा  लाये हैं --
कुछ टूटे फूटे बिखरे आखर .. इन बिखरे आखरों में कितनी गहनता है यह पढने के बाद ही पता चलेगा -
उदासियों को लपेट के , इन पनियाली आंखों से ,
अक्सर कई शामें गुज़ारा करते हैं .....हमें यकीं है उनकी मौत का , फ़िर भी,
वहीं जाकर , उन्हें रोज़ पुकारा करते हैं ....
My Photo माहेश्वरी कनेरी जी ज़िंदगी की जद्दोजहद को कुछ इस प्रकार लिख रही हैं --
क्यों कभी इतनी हैरान परेशान सी लगती है जिन्दगी   ?
कभी तो गहन अनुभूति लिए तृप्त सी लगती है जिन्दगी
क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी   ?
कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी
My Photo नीलेश जी क्या लिख रहे हैं ज़रा देखिये ---खत लिख रहा हूँ
उनके  दिए कुछ  वक़्त लिख रहा हूँ 
दो   पल    में ही  जन्नत लिख रहा हूँ  !!
ये किसको फिकर है कि कल हो न हो

दिल-ओ-जान से आज ख़त लिख रहा हूँ !!
My Photoनवनीत पांडे जी इस बार लाये हैं
दो कविताएँ-- संवाद   और तुम्हारा मौन
तुम!
और तुम्हारा मौन..
मैं!
और मेरा मैं..
दोनों के बीच
एक अर्थहीन अर्थ
My Photo दीपाली “ आब “ की एक खूबसूरत गज़ल पढ़िए ..
वो न आए पर उनकी याद आए
वो न आये तो उनकी याद आए
जी न जाए, तो क्या जिया जाए..
हसरतें आँसुओं में घुलने लगीं,
ख्वाब मेरे सभी जो मुरझाए..
नींद में कितने खौफ शामिल हैं,
हम भी देखेंगे, नींद आ जाए..
My Photo अनुपमा जी लायी हैं आध्यात्मिक भावनाओं को अपनी इस रचना में ---
या ठान लूँ मन ही मन में  ..
खिलना कमल को है कीचड़ में ..
तब तो सहेजना  होगी ...
कंपकपाती वो ज्योत मन की ..
कभी  कभी  बुझने  सी  लगाती  है  जो -
My Photo देवेन्द्र पांडे जी बनारस के बारे में कुछ बता रहे हैं … बहुत अच्छा शहर है क्या ?
बड़ी तारीफ करते हो
बहुत अच्छा शहर है क्या !
ये गंगा घाट की नगरी
ये भोले नाथ की नगरी
यहां आते ही धुल जाते
सभी के पाप की गठरी
जहां हो स्वर्ग की सीढ़ी
कहीं ऐसा शहर है क्या !
ज्ञानवती सक्सेना जी की कविता ले कर आई हैं साधना वैद जी ..कृष्ण से अनुनय
एक बार बस एक बार
इस भारत में प्रभु आ जाओ !
सोते से इसे जगा जाओ ,
भूलों को राह दिखा जाओ ,
बिछडों को गले लगा जाओ ,
गीता का ज्ञान सिखा जाओ !
हे नाथ यहाँ आकर के फिर
अर्जुन से वीर बना जाओ !
Sri Prakash Dimri श्री प्रकाश डिमरी जी की रचनाएँ पढ़िए ---सुनो शिशिर  और सुनो बसंत
हिम कँवर ...
जब तुम बरसाते
कम्पित विहग ..
कहाँ चले जाते ..!!!???
सुख की डोली में मगन
My Photo दिनेश जी “रविकर “ की एक सशक्त रचना पढ़िए --
मन में अतीत की याद लिए फिरते हैं
निज अंतर में उन्माद लिए फिरते हैं
उन्मादों में अवसाद लिए फिरते हैं
अंदर ही अन्दर झुलस रही है चाहें

मनमे अतीत की याद लिए फिरते है
My Photo सत्यम शिवम भावनाओं के सागर में गोते खाते हुए एक रचना लाये हैं --
कब से तुझे बचाता रहा ऐ जिंदगी मेरी,
क्या था पता इक दिन मुझे ही छोड़ देगी तू कही!
बरसात से,धूप-छाँव से,
नफरत के घिनौने भाव से!
हरदम तुम्हे दूर रखता था,
सुख के सिवा तू कुछ ना चखता था!
My Photo मृदुला हर्षवर्धन जी प्रेम की अद्वितीय व्याख्या कर रही हैं --प्रणय
जब धरती पर पहला फूल खिला था
उस क्षण से ही प्रणय जन्मा था
प्रेम ने जब जन्म लिया
तब नहीं थी कहीं भी समता
पहला नाम दिया भावों को
कहा उसे 'माँ की ममता'

मेरा फोटो डा० वर्षा सिंह कर रही हैं
प्यार की गुजारिशें
बूँद बूँद बारिशें
                  जाग रही ख्वाहिशें

                  घुल रहीं हवाओं में
                  प्यार की गुजारिशें
वाणी शर्मा जी आज कल गज़ल की पाठशाला जाती हैं  और वहीं से लायीं हैं एक खूबसूरत गज़ल ---
मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में
पशोपेश में थमी थी साँसें उसकी गली से गुजरते
मुश्किल था बच निकलना पासबाने नजर से

क्या बुरा था जो लिया इलज़ाम बदशलूकी का
हासिल कब क्या हुआ था उसे तोहफगी से
..क्षमा जी द्वारा बनाये गए इस भित्ति चित्र  के साथ ही एक कोमल भावों को समेटे  एक खूबसूरत रचना पढ़िए --
वो राह,वो सहेली...
पीछे छूट चली,
दूर  अकेली  चली  
गुफ्तगू, वो ठिठोली,
पीछे छूट चली...
मेरा फोटो चर्चा के समापन पर असीमा जी गहन भावों को समेटे ले आई हैं कुछ क्षणिकाएँ

रात सो रही है...
मैं जाग रही हूं...
गोया बे-ख्वाब मेरी आंखें
और मदहोश है जमाना...
आज बस इतना ही , फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को इसी मंच पर एक नयी चर्चा के साथ … नमस्कार …संगीता स्वरुप

31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर इन्द्रधनुषी चर्चा!
    --
    ब्लॉगिस्तान के सभी रंग समाए हुए हैं इसमें!

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  2. बहुत सुंदर रंग बिखेरती काव्य चर्चा ...... आभार संगीताजी....

    जवाब देंहटाएं
  3. आज तो विविधता लिये बहुआयामी काव्य चर्चा मंच सजाया है आपने !बहुमूल्य एवं सुन्दर लिंक्स देने के लिये धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी चर्चा से दस नये फीड्स लेकर जा रहा हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. मंगल सुप्रभात ! यह संकलन समुन्नत रचनाओं का निर्मल स्रोत लगा /सार्थक प्रवीण प्रयास .... आभार जी /

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  6. हमेशा की तरह सुंदर प्रस्तुति , आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. आज सुबह की चाय के साथ ..बारिश की रिमझिम है और आपकी सुंदर चर्चा है ...
    आभार मुझे स्थान देने के लिए ...!!

    जवाब देंहटाएं
  8. चर्चामंच मेरा पसंदीदा ब्लॉग है.. एकसाथ इतने खूबसूरत पोस्ट और ब्लॉग एक जगह मिल जाते हैं.. बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी.

    जवाब देंहटाएं
  9. आपने इंद्रधनुषी मंच सजाया है। आकर्षक और सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुंदर , और आकर्षक चर्चा संगीता जी ।बिखरे आखर को स्थान देने का शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  11. मंच के कैनवास पर संगीता जी की तूलिका ने हरीतिमा बिखेर दी है.आभार.

    जवाब देंहटाएं
  12. अच्छे लिंक्स मिले
    बढिया चर्चा संगीता जी

    आभार

    जवाब देंहटाएं
  13. डा० रूप चन्द्र शास्त्री जी शिखा वार्ष्णेय मनोज कुमार जी श्याम नारायण मिश्र जी पारुल जी अर्यमन चेतस पांडे -अपर्णा मनोज भटनागर जी रंजू भाटिया जी निवेदिता जी राजीव भरोल जी सिद्धार्थ जी अजय कुमार झा माहेश्वरी कनेरी जी नीलेश जी नवनीत पांडे जी दीपाली “ आब “ अनुपमा जी देवेन्द्र पांडे जी ज्ञानवती सक्सेना जी श्री प्रकाश डिमरी जी सत्यम शिवम मृदुला हर्षवर्धन जी डा० वर्षा सिंह वाणी शर्मा जी क्षमा जी असीमा जी

    के साथ आकर अपने को परम सौभाग्य-शाली समझता हूँ |

    बहुत-बहुत आभार ||

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  14. कृपया कर मेरी यह प्रार्थना है कि दिए गए ब्लॉग का लिंक बाहर खुले ऐसी व्यवस्था करें ताकि पाठकों को असुविधा नहीं हो, वरना चाह कर भी कई लेख पढ़ पाता हूं।

    जवाब देंहटाएं
  15. सभी पाठकों का आभार ...

    अरुण साथी जी ,

    दिए गए लिंक दूसरी टेबल या विंडो में खुले ..यह मुझे नहीं आता है ..यदि कोई तरीका हो तो आप बताएँ ...
    एक सुझाव दे सकती हूँ ... यदि आप की-बोर्ड पर Ctrl दबा कर लिंक पर क्लिक करेंगे तो लिंक दूसरी टेबल में खुलेगा ..

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स दिये है आपने ...बेहतरीन चर्चा ।

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  17. आज तो जब से आई हूँ आपके लिंक्स ही पढ रही हूँ …………बहुत ही सुन्दर और सटीक लिंक्स संजोये है…………सार्थक चर्चा।

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  18. अच्छे लिंक्स मिले
    बढिया चर्चा संगीता जी...

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  19. संगीता स्वरुप जी,
    बहुत अच्छा लगा चर्चा मंच पर आकर.. इस इन्द्रधनुषी चर्चा के लिये आपको बहुत -बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनायें !
    चर्चा-प्रस्तुति का तरीका हमेशा की तरह बहुत ही प्रभावशाली और सार्थक है!
    मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!

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  20. bahut hi sunder charcha Sangeeta ji
    varsha ka pyar lana, krishn ko bulane ki guhaar, ekaki sa jeevan....sab kuchh to samet liya hai aapne aaj ki charcha mein

    fir ek baar meri rachna shamil karne ka double thank you

    abhaar

    Naaz

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  21. सुन्दर चर्चा....
    बहुमूल्य एवं सुन्दर लिंक्स देने के लिये धन्यवाद एवं आभार !

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  22. बहुत ही सार्थक और विस्तृत चर्चा......सुंदर गुलदस्ते की तरह।

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  23. sangeeta ji ...bahut saadar aabhaar
    bahut sunder ,saarthak rachnnaayen padhne ko mili hame..

    naman

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  24. आपकी चर्चा के लिए मेरे पास एक ही शब्द है."सम्पूर्ण "

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत अच्छे लिंक्स के साथ बढ़िया चर्चा...

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  26. बहुत अच्छे लिंक्स धन्यवाद

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  27. main kal online nahin aa saka...bas abhi kuchh der ke liye aaya hun..achchha laga yahan aa kar...mujhe to pata hi nahi tha is baare me ab tak..kya innovation hai..is saarthak charcha mein sthaan dene ke liye aabhaar...

    :)

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