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रविवार, जुलाई 07, 2013

“मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299)

मित्रों!
रविवार के आप सबके प्रिय चर्चाकार अरुण शर्मा अनन्त के यहाँ कुछ दिनों पूर्व पुत्री के रूप में लक्ष्मी ने जन्म लिया है। आज उनसे मेरी बात हुई तो उन्होंने बताया है कि मैं अस्पताल में हूँ। बिटिया तो ठीक है लेकिन बिटिया की माँ मनीषा की तबियत बिल्कुल ठीक नहीं है। मैं कामना करता हूँ कि उनकी जीवन संगिनी मनीषा जल्दी से स्वस्थ हो जाये।इसलिए रविवार की चर्चा में कुछ लिंकों के साथ मैं स्वयं उपस्थित हूँ।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
क्या ये जनता भोली कही जाएगी ?

जवां सितारों को गर्दिश सिखा रहा था ,
कल उसके हाथ का कंगन घुमा रहा था .
उसी दिए ने जलाया मेरी हथेली को ,
 जिसकी लौ को हवा से बचा रहा था...
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
दिल का दर्द

दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है अपनों पे इल्ज़ाम लगाना मुश्किल है 
बार-बार जो ठोकर खाकर हँसता है उस पागल को अब समझाना मुश्किल है 
दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ, लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है...
भूली-बिसरी यादें पर राजेंद्र कुमार 
बिन बैसाखियों के कहाँ चल पाती औरतें ...!

औरतों को मैंने नहीं देखा चलते हुए कभी उनको अपने पैरों पर चलती हैं वो सदा बैसाखियों के सहारे ही ... चलती हैं वे बचपन में पिता का सहारा लिए भाई का सहारा लिए ... बिन सहारे भयभीत होते चलती ... यह बैसाखियाँ गवां देता है उनका आत्मविश्वास स्वाभिमान और निज पहचान भी ..
नयी उड़ान पर उपासना सियाग 
अवशेष - दोहों पर दोहे
सृजन मंच ऑनलाइन
सृजन मंच ऑनलाइन पर DrjRaajsaksena Raj -
हुमैरा राहत की ग़ज़लें

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है 
तअल्लुक टूटने को इक बहाना चाहता है....
Ashok khachar पर Ashok Khachar 
जाने क्या हुआ !
यह क्या हुआ !*** * स्तब्ध दिशाएँ हो गईं*** * सो गए हैं शब्द*** * मौन वाणी हो गयी । *** * धुंध है**, **खामोशी है**,* * बेचैनी है फ़िज़ाओं में...
सहज साहित्य 
अतीत से वर्तमान तक का सफर
मैं मानता हूं कि समय के साथ** **अतीत** **को भुलाकर लोग आगे बढ सकते हैं लेकिन जीवन में सब कुछ भुलाया नहीं जा सकता...
प्रेम सरोवर
क्या शिव सिर्फ उत्तर के हैं और विष्णू दक्षिण के ?
ऐसा लगता है जैसे धर्माधिकारियों में आपस में अलिखित समझौता हो गया हो कि अपने-अपने हिस्से में आए प्रभुओं की देख-रेख, रख-रखाव, हानि-लाभ सब अपने-**अपने * *हिसाब से करेंगे...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
पता नहीं चलता, चलता भी तो क्या होता ?
*पता ही कहाँ चल पाता है जब कोई भगवान अल्लाह या मसीहा* *हो जाता है पता ही कहाँ चलता है जब आदमी होना बेमानी हो जाता है  पता ही कहाँ चल पाता है तीन तीन साल आकर आराम करने वालों में से एक छ : महीने में ही ...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील
हाइकु
माँ की गोद में* *यूँ खिल उठा बच्चा* *जैसे कमल* * **** *बच्चा करता* *ज़िद चाँद छूने की* *अपने हाथों* * **** *रूप सलौना* *भाए मन सबके* *सदा-सदा से...
अंतर्मन की लहरें Antarman Ki Lehren पर  Dr. Sarika Mukesh 
जाओ मेघों लौट जाओ...
बुलाया था हमने मेघा आना, बरसकर हरियाली लाना, तुम बरसे प्रलय बनकर, जाओ मेघों लौट जाओ... 
man ka manthan. 

मन का मंथन। 
पर Kuldeep Thakur 
तेरा शहर कितना अज़ीज़ है
सभी दोस्त हैं सभी करीब हैं 
तेरा शहर कितना अज़ीज़ है,  
तू मेरी जिंदगी की किताब है 
तेरा इश्क मेरा नसीब है...
Zindagi se muthbhed पर Aziz Jaunpuri
Facebook Friends
फेसबुक की दुनिया में चार हजार सात सौ छयासी मित्र हो चुके हैं, फ्रेंड लिस्ट में बेशक नहीं करता सबों से बात फिर भी उनके लाईक्स के क्लिक्स में सुदामा की तरह कृष्णा सा प्यार देखता रहता हूँ ...
जिंदगी की राहें 
जागो हिन्दू जागो

ZEAL
देशभक्ति और धर्मनिरपेक्षता से 
कोई वास्ता नहीं है 
इनका

ZEAL
kuch photo ho jaye

Yatra, Discover Beautiful India पर Manu Tyagi 
क्या माता को कोई हसीना कह सकता है ?
तुरंत इस पोस्ट को हटाये albela khatri

भारतीय नारी पर shikha kaushik
मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप

निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ।  
रोटी का कैसे जतन, समझे ना ये बात॥  

तरसे इक- इक कौर को ,भूखे कई हजार।  
गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के अम्बार॥...
सृजन मंच ऑनलाइन पर Rajesh Kumari 
टॉल्सटॉय और गांधी

मनोज पर मनोज कुमार 
स्पर्श
उसे
पर नहीं,
पैरमिल जाते
दर्द नहीं,
दर मिल  जाते,
गूंगी हुयी जुबान  को
स्वर मिल जाते.....
उन्नयन (UNNAYANA) पर udaya veer singh 
*जो साल सडसठ ठेले है हमने, चंद और भी ठेल लेंगे,* *बड़े-बड़े 'नमो'ने झेले हैं हमने, चल तुझे भी झेल लेंगे...
अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत"
तेरे बिन
मैं चला था अकेला, आज फिर तमैं चला था अकेला, आज फिर तन्हा तेरे बिन, कल भी तन्हा तेरे बिन...
ज़रूरत पर Ramakant Singh

उसने दुश्मन भी न समझा, लोगो.....परवीन श़कीर
बाद मुद्दत उसे देखा, लोगो 
वो ज़रा भी नहीं बदला, लोगो 
खुश न था मुझसे बिछड़ कर 
वो भी उसके चेहरे पे लिखा था लोगो ..
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
एक अरसे बाद...!
बहुत दिनों बाद ये पन्ने पलटे... 
मौन को सुना... 
अपने साथ रही, 
घर लौटने की सी अनुभूति ने मन को शीतल किया...! 
अनुशील पर अनुपमा पाठक
गुजारिश
बागों में फूल तोडने गया मगर कांटा चुभ गया काँटों की गुजारिश थी कि फूल बहुत कोमल है हाथ न लगाओ, मगर दिल बेचारे की दिल से गुजारिश थी, कि वो फूल की खुशबू में डूबना चाहता है ....
काव्यान्जलिपरधीरेन्द्र सिंह भदौरिया 
पाका घौता आम का, झारखंड बागान -
पाका घौता आम का, झारखंड बागान | अपनी ढपली पर फ़िदा, रंजिश राग भुलान | रंजिश राग भुलान, भला हेमंत भीग ले | दिल्ली तलक अजान, साथ में कई लीग ले...
रविकर की कुण्डलियाँ पर रविकर 
गुज़ारिशप्यार हुआ ,इकरार हुआ ! 
प्यार हुआ, इकरार हुआ! 
फिर सहमा दिल, 
सनम कभी तो मिल!
 वो आया जब, दिल मचला तब! प्यार हुआ, 
तमाशा-ए-जिंदगी
एक मुलाकत 'सच्चे बादशाह' के साथ अभी हाल ही में अमृतसर जाने का अवसर प्राप्त हुआ | अगर दुसरे शब्दों में बयां करूँ तो अचानक ही बैठे बैठे 'दरबार साहब- हरमिंदर साहिब' से बुलावा आ गया...
ज्ञान दर्पण : 
विविध विषयों का ब्लॉगकुम्भा महल और विजय स्तंभ : चितौडगढ़ 
-कुम्भा के महलों के भग्नावशेष 
और यह पास में खड़ा हुआ
 विजय स्तम्भ ! एक ही चेहरे की दो आँखे है 
जिसमे एक में आंसू और दूसरी में मुस्कराहट सो रही है | ...
वन्दे मातरम Vs जन-गण-मन ( टागोर का लिखा खत पढ़िये )

AAWAZ पर SACCHAI 
सविता सिंह :

*स्वप्न समय:* यूँ स्वप्न से शुरू हुआ यह जीवन जैसे कि इसके पहले कुछ और न था चेतना थी तो स्वप्न की ही नीली सफ़ेद कहीं चितकबरी किसी भूरे विस्तार में अधलेटी अलसार्इ उठती फिर गिरती ...
आपका साथ, साथ फूलों का पर अपर्णा मनोज 
कार्टून :- दो भाइयों के बीच टमाटर की दीवार

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
अलादीन का चिराग 


अलादीन का चिराग,माँ

अगर मुझे मिल जाता

बैठ कंधे पर जिन्न के

मैं दुनिया घूम के आता


अलमस्त पक्षी सा कभी

आसमान में उड़ जाता

तारों से बातें करता कभी

चंदा से हाथ मिलाता
बाल मन की राहें.....बच्चों का ब्लांग
जन्‍मों के बि‍छड़े साथी..... 

हां...
सदि‍यां गुजर गईं
तुम्‍हें तलाशते
पहचानते
कि तुम वही हो
जि‍सके साथ जुड़ा है
जन्‍मों का बंधन...
मगर ...

रूप-अरूप
अन्त में देखिए
"दोहा महिमा"

सूफी-सन्तों ने लियादोहों का आधार।
छोटे से इस छन्द कीमहिमा अपरम्पार।१।

गति-यति-लय के साथ में, बहती रस की धार।
कम शब्दों में ये करें, दिल पर सीधा वार।२।...

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय शास्त्री जी सुन्दर लिनक्स से सुसज्जित चर्चामंच हेतु बधाई आपको मेरी रचना को शामिल किया हार्दिक आभार माफ़ी चाहती हूँ मंच पर देर से आना हुआ और चर्चामंच के माध्यम से प्रिय अरुन शर्मा अनंत को बेटी होने पर हार्दिक बधाई देती हूँ उनकी पत्नी जल्दी ठीक हो जाएँ यही मनोकामना करती हूँ

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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