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शुभम दोस्तो ..
मैं
सरिता भाटिया
हाजिर हूँ
चर्चामंच की 1300 वीं चर्चा
लेकर
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गुलेरी जयंती पर विशेष
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पहली बार केक काटा
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अभी अभी
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कुचलो या कुचले जाओगे
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हूँ तुम्हारी हि कृष्णा
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नारी की सम्पूर्णता प्रेम में निहित है
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आतंक से मिलझुल कर लड़ लेंगे
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ये पूछ तू मेरे दिल से
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कभी यूँ भी
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स्मृति का खजाना
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मौत जीना सिखा दे
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आज फिर बारिश डराने आ गई
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मालिनी अवस्थी की पाठशाला
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बोधगया पर आतंकी हमले
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फूल खिले हैं डाली डाली
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दोस्तो
आज की चर्चा को देती हूँ
यहीं विराम
आज की चर्चा को देती हूँ
यहीं विराम
आज के मौसम का एक गाना
बड़ों को नमस्कार
छोटों को प्यार
...शुभविदा...
आगे देखिए..."मयंक का कोना"
(1)
नज़्मः 'निसार करूँ'......महबूब राही
हसीन फूलों की रानाइयाँ निसार करूँ
सितारे चाँद कभी, कहकशाँ निसार करूँ
बहार पेश करूँ गुलसिताँ निसार करूँ
जहाने-हुस्न की रंगीनियाँ निसार करूँ ज़मीं निसार करूँ
आसमाँ निसार करूँ तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ...
मेरी धरोहरपरyashoda agrawal
(2)
हणोगी माता मंदिर , हिमाचल
Yatra, Discover Beautiful India पर Manu Tyagi
(3)
लद्दाख साइकिल यात्रा का आगाज
मुसाफिर हूँ यारों पर नीरज कुमार ‘जाट’
(4)
अक्श हैं मेरे फ़साने
सामने आते भी नहीं चिलमन को हटाते भी नहीं
हिज्र में मरते भी नहीं हँस-हँस के रुलाते भी नहीं
अजीब पर्दा है कि सब कुछ दिखाई देता है
मासूम कातिल की तरह छुप-छुप के सताते भी नहीं....
Zindagi se muthbhed पर Aziz Jaunpuri
(5)
"क्यों अपने बेताल की किस्मत का बाजा बजा रहा है"
विक्रमादित्य के समय से बेताल फिर फिर पेड़ पर लौट कर जाता रहा है तुझे हमेशा खुशफहमी होती ही रही है तेरा बेताल तुझे छोड़ कर कहीं भी नहीं जा पा रहा है पेड़ पर लटकता है जाकर जैसे ही वो तू अपनी आदत से बाज नहीं आ रहा है समय के साथ जब बदलते रहे हैं मिजाज विक्रमादित्य के भी और बेताल के भी तू खुद तो उलझता ही है बेताल को भी प्रश्नों में उलझाता जा रहा है बदल ले अपनी सोच को और अपने बेताल को भी...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील
आगे देखिए..."मयंक का कोना"
(1)
नज़्मः 'निसार करूँ'......महबूब राही
हसीन फूलों की रानाइयाँ निसार करूँ
सितारे चाँद कभी, कहकशाँ निसार करूँ
बहार पेश करूँ गुलसिताँ निसार करूँ
जहाने-हुस्न की रंगीनियाँ निसार करूँ ज़मीं निसार करूँ
आसमाँ निसार करूँ तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ...
मेरी धरोहरपरyashoda agrawal
(2)
हणोगी माता मंदिर , हिमाचल
Yatra, Discover Beautiful India पर Manu Tyagi
(3)
लद्दाख साइकिल यात्रा का आगाज
दिन | दिनांक | विवरण | दूरी |
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पहला दिन | 4 जून 2013 | दिल्ली से प्रस्थान | बस से |
दूसरा दिन | 5 जून 2013 | मनाली से गुलाबा | 21 किलोमीटर |
तीसरा दिन | 6 जून 2013 | गुलाबा से मढी | 13 किलोमीटर |
चौथा दिन | 7 जून 2013 | मढी से गोंदला | 64 किलोमीटर |
पांचवां दिन | 8 जून 2013 | गोंदला से गेमूर | 34 किलोमीटर |
छठा दिन | 9 जून 2013 | गेमूर से जिंगजिंगबार | 42 किलोमीटर |
सातवां दिन | 10 जून 2013 | जिंगजिंगबार से सरचू | 47 किलोमीटर |
आठवां दिन | 11 जून 2013 | सरचू से नकी-ला | 37 किलोमीटर |
नौवां दिन | 12 जून 2013 | नकी-ला से व्हिस्की नाला | 11 किलोमीटर |
दसवां दिन | 13 जून 2013 | व्हिस्की नाला से पांग | 28 किलोमीटर |
ग्यारहवां दिन | 14 जून 2013 | पांग से शो-कार व शो-कार मोड | 88 किलोमीटर |
बारहवां दिन | 15 जून 2013 | शो-कार मोड से तंगलंग-ला | 19 किलोमीटर |
तेरहवां दिन | 16 जून 2013 | तंगलंग-ला से उप्शी | 65 किलोमीटर |
चौदहवां दिन | 17 जून 2013 | उप्शी से लेह | 49 किलोमीटर |
पन्द्रहवां दिन | 18 जून 2013 | लेह से ससपोल | 62 किलोमीटर |
सोलहवां दिन | 19 जून 2013 | ससपोल से फोतु-ला | 70 किलोमीटर |
सत्रहवां दिन | 20 जून 2013 | फोतु-ला से मुलबेक | 59 किलोमीटर |
अठारहवां दिन | 21 जून 2013 | मुलबेक से शम्शा | 71 किलोमीटर |
उन्नीसवां दिन | 22 जून 2013 | शम्शा से मटायन | 46 किलोमीटर |
बीसवां दिन | 23 जून 2013 | मटायन से श्रीनगर | 126 किलोमीटर |
इक्कीसवां दिन | 24 जून 2013 | श्रीनगर से जम्मू व दिल्ली | सूमो व बस से |
(4)
अक्श हैं मेरे फ़साने
सामने आते भी नहीं चिलमन को हटाते भी नहीं
हिज्र में मरते भी नहीं हँस-हँस के रुलाते भी नहीं
अजीब पर्दा है कि सब कुछ दिखाई देता है
मासूम कातिल की तरह छुप-छुप के सताते भी नहीं....
Zindagi se muthbhed पर Aziz Jaunpuri
(5)
"क्यों अपने बेताल की किस्मत का बाजा बजा रहा है"
विक्रमादित्य के समय से बेताल फिर फिर पेड़ पर लौट कर जाता रहा है तुझे हमेशा खुशफहमी होती ही रही है तेरा बेताल तुझे छोड़ कर कहीं भी नहीं जा पा रहा है पेड़ पर लटकता है जाकर जैसे ही वो तू अपनी आदत से बाज नहीं आ रहा है समय के साथ जब बदलते रहे हैं मिजाज विक्रमादित्य के भी और बेताल के भी तू खुद तो उलझता ही है बेताल को भी प्रश्नों में उलझाता जा रहा है बदल ले अपनी सोच को और अपने बेताल को भी...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील
प्रिय सरिता जी सुन्दर सूत्रों से सजा चर्चामंच हार्दिक बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंसरिता जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति है...आभार...
बहुत रोचक चर्चा...
जवाब देंहटाएंcharca me shamil karne ka bahut bahut shukriya ...Sarita ji .
जवाब देंहटाएंसरिता जी आपकी चर्चा हमेशा खास होती है. आप बहुत अच्छे लिंक्स चुन चुन कर लाती है. इससे आपकी म्हणत तो होती है परन्तु हम सब के लिए कॉफी आसानी हो जाती है अच्छे लेखन का मज़ा लेने हेतु. आभार.
जवाब देंहटाएंसुबह की गयी टिप्पणी
जवाब देंहटाएंशाम तक यहाँ से क्यों
रोज रोज भाग जा रही है
ये बात मेरी समझ
में नहीं आ रही है
कोई बात नहीं
आज भी दुबारा ये
डाली जा रही है
उल्लूक को करना है
आभार ! बार बार
उसकी पोस्ट क्योंकि
मयंक जी का कोना
ला कर के दिखा रही है !