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शुक्रवार, जुलाई 19, 2013

स्वर्ग पिता को भेज, लिया पति* से छुटकारा -चर्चा मंच 1311

 

"कुछ कहना है"


स्वर्ग पिता को भेज, लिया पति* से छुटकारा -

आधा बेंचा खेत तो, पूरा किया दहेज़* |
आधा बाँटे बहन फिर, स्वर्ग पिता* को भेज |
स्वर्ग पिता को भेज, लिया पति* से छुटकारा |
बाँटी आधा माल, करे फिर ब्याह दुबारा |
रविकर नौ मन तेल, नहीं नाचे फिर राधा |
हुवे पुरुष कुल फेल, सफल होता इक-आधा ||
*नए कानूनों के परिप्रेक्ष्य में -

satyam shivam sunderam jyotish sansthan

हमे खाद्य सुरक्षा के नाम पर भिक्षा नहीं, सम्मान से जीने का हक चाहिये

नापाकशाला


Neeraj Kumar 


काजल कुमार Kajal Kumar 

प्रतिभा सक्सेना 

संजय भास्‍कर 

"बचपन को लौटा दो"

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
सीधा-सादा. भोला-भाला।

बच्चों का संसार निराला।।

बचपन सबसे होता अच्छा।

बच्चों का मन होता सच्चा।...

Asha Saxena 
 Akanksha  

Virendra Kumar Sharma 
Manu Tyagi 

SANDEEP PANWAR 
'कल के नेता' आज के नेताओं के कारण मुश्‍किल में
Kulwant Happy  

हर शम्मा बुझी रफ़्ता रफ़्ता हर ख़्वाब लुटा धीरे धीरे....क़ैसरुल जाफ़री

डा. मेराज अहमद  


Girish Billore 

सत्ता नाना रूप, दुबारा नानी मरती-

साम्प्रदायिकता की आड़ में नाकामियों पर पर्दा डालनें की कोशिश !!


पूरण खण्डेलवाल 


 नाकारी सरकार से, गिरते अन्धे-कूप |
आई है नाकामियाँ, सत्ता नाना रूप |

सत्ता नाना रूप, दुबारा नानी मरती |
घटती जाए ग्रोथ, नहीं मँहगाई थमती |

मोदी सत्य उवाच, हदें तोड़ें ये सारी  |
अबकी मौका पाय, हटा सत्ता नाकारी ||


haresh Kumar

घटना पर घटना घटे, घटे नहीं सन्ताप |
थे तो लाख उपाय पर, बाँट रहे दो लाख |
बाँट रहे दो लाख, नहीं बच्चे बच पाए |
मुआवजा ऐलान, दुशासन साख बचाए |
बच्चे छोड़ें जगत, छोड़ते वे नहिं पटना ।
बके बड़ा षड्यंत्र,  विपक्षी करते घटना ||

होते न गर तुम खुदगर्ज इतने !


पी.सी.गोदियाल "परचेत"  

मयंक का कोना
(1)
प्रकृति और मानव

 जल जीवन 
प्रकृति औ मानव 
अटूट रिश्ता ....
sapne पर shashi purwar 

(2)
मन बहक-बहक जाता है.....शकुंतला बहादुर

उलझनें उलझाती हैं मन को भटकाती हैं। 
कभी इधर, कभी उधर मार्ग खोजने को तत्पर 
भंवर में फंसी नाव-सा लहरों में उलझा-सा 
बेचैन डगमगाता-सा मन बहक-बहक जाता है। 
मंजिल से दूर... बहुत दूर चला जाता है...
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal 
(3)
मोदी के तीर

मोदी ने जब तानकर, छोड़ दिए कुछ तीर | 
भन्नाए से घूमते, सुन कर कई वजीर....
सृजन मंच ऑनलाइन पर DrRaaj saksena
(4)
जो बिखर के चकनाचूर हुए, वो सपने हमने देखे हैं !

जो बिखर के चकनाचूर हुए, वो सपने हमने देखे हैं 
इन नजरों ने, प्रभु के सम्मुख ,तूफ़ान उमड़ते देखे हैं. 
मैं सुबह कहूं, इसको कैसे, जलप्रलय में सूरज उगने को 
जिस रात अनगिनत आफ़ताब मैंने आग उगलते देखे हैं....
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया 
(5)
“हँसता गाता बचपन की भूमिका और शीर्षक गीत”

हँसता-खिलता जैसा,
इन प्यारे सुमनों का मन है।
गुब्बारों सा नाजुक,
सारे बच्चों का जीवन है।।

नन्हें-मुन्नों के मन को,
मत ठेस कभी पहुँचाना।
नित्यप्रति कोमल पौधों पर,
स्नेह-सुधा बरसाना।।...
हँसता गाता बचपन पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक

24 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा चर्चा है |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर...!
    सुबह-सुबह चर्चा बाँचकर आनन्द आ गया।
    आभार रविकर जी!

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात रविकर भाई
    आपकी चुनिम्दा लिंक्स
    सब की सब मेरी पसंदीदा है
    आभार

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सार्थक एवं सुन्दर लिंक्स। मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार .

    जवाब देंहटाएं
  5. काजल जी कुमार यही है चित्र व्यंग्य की आग व्यंग्य क्या अग्नि बाण हैं ये व्यंग्य चित्र आपके .बेशक नेता फिर भी बच जाते हैं अग्नि इन्हें जला नहीं सकती बे -इज्ज़ती इन्हें डुबो नहीं न सकती

    भैया फोतुवा तो तब होवे तुम्हारा जब कैमरा ले जाने देवें . प्रणाम जाट देवता ,जाट सो देवता ,देवता सो फिर जाट



    मोदी ने जब तानकर, छोड़ दिए कुछ तीर |
    भन्नाए से घूमते, सुन कर कई वजीर |
    सुन कर कई वजीर, फाड़ते रोकर छाती,
    बुरका, पप्पी बाँध गले से, चपर-कनाती |
    कहे 'राज' कवि-मित्र, लिए पप्पी को गोदी,
    चक्कर में सरकार, मस्त- मुस्काता मोदी |

    क्या बात है दोस्त पूडल सोनियावी का नूडल ही बना दिया ।
    बेहतरीन सेतु सजाये हैं चर्चा मंच पे रविकर छाये हैं ।काज्ल भी कितने बे -जोड़ चित्र व्यंग्य लिए रहते हैं ,मोदी के सब तीर लिए रहते हैं .ओम शान्ति

    जवाब देंहटाएं
  6. क्या बात है दोस्त पूडल सोनियावी का नूडल ही बना दिया ।
    बेहतरीन सेतु सजाये हैं चर्चा मंच पे रविकर छाये हैं ।काज्ल भी कितने बे -जोड़ चित्र व्यंग्य लिए रहते हैं ,मोदी के सब तीर लिए रहते हैं .ओम शान्ति

    बेहतरीन समीक्षा की है शाष्त्री जी के साहित्यिक कद के अनुरूप
    रचनाएं भी सभी सौदेश्य कालजई रचनाएं हैं
    (डॉ. राष्ट्रबन्धु)
    सम्पादक-बाल साहित्य समीक्षा
    109 / 309, राम कृष्ण नगर,
    कानपुर (उत्तर प्रदेश) 208 012

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर और पठनीय सूत्रों से सजी चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  8. spam

    ये स्साला स्पेम भी कांग्रेसी हो गया है सब कुछ हजम कर रहा है सब्सिडी की तरह कितनी टिपण्णी गटक गया मालूम है ?

    जवाब देंहटाएं
  9. बढ़िया लिंक्स सार्थक चर्चा, मुझे शामिल करने के लिए
    बहुत बहुत आभार रविकर जी,

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर चर्चा सजाई है आपनें !!
    ( क्षमा कीजिये मुझे यहाँ लिंक लगाना नहीं चाहिए लेकिन एक ब्लॉग से रूबरू करवाने के लिए लिंक दे रहा हूँ !)
    हमे खाद्य सुरक्षा के नाम पर भिक्षा नहीं, सम्मान से जीने का हक चाहिये

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. क्रमांक दो पर शामिल कर लिया है आज के चर्चा मंच पर-

      सादर

      हटाएं
  11. सुन्दर लिंक्स से सजी बढिया चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीय सर जी बहुत ही सुन्दर लिंक्स संयोजन उम्दा प्रस्तुतीकरण हार्दिक आभार आपका.

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत सुन्दर सार्थक चर्चा प्रस्तुति ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  14. सुन्दर लिंक्स से सजी बढिया चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सुन्दर सार्थक चर्चा प्रस्तुति ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  16. आदरणीय रविकर भाई जी ने सजाया सुन्दर चर्चा मंच ,बहुत बहुत हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत उम्दा,लाजबाब लिंक्स ,,,वाह !!! रविकर जी लाजबाब प्रस्तुति,,

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

    जवाब देंहटाएं

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