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शनिवार, जुलाई 27, 2013

एकालाप.........क़दमों के निशाँ........कलयुगी सत्कार

आज की चर्चा में आपका स्वागत है 
लीजिये हाजिर हैं आपके मनपसन्द लिंक्स 



फ़रिया (Fariya)


क्या क्या साफ़ कर दिया 



क़दमों के निशाँ


पता बता जायेंगे 





कि रुत ही बदल गयी


जरूरी है 



जरूर मिलना चाहेंगे 


चलिये साथ में 



एक नज़र इधर भी


तीन कविताएँ : तीन रंग

यही हैं जीवन के विविध रंग 




आओ करें विचार


 और हम उन्हें सच समझ बैठे






तो ये बात है 


आखिर कब तक ?




पता नहीं 


यही बाकी बचा है 


कैसा ?



क्या सच में ?


किये जाओ 


भावों के टुकडे ……2


बिखेरे जाओ




रोज शोलों में झुलसती तितलियाँ हम देखते हैं (ग़ज़ल "राज")

ज़िन्दगी से होती ये कवायद हम देखते हैं 


अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश की धूमिल होती छवि

क्या फ़र्क पडता है कुर्सी सलामत रहनी चाहिये


उनसे सीखना जरूरी है



रहेंगे तेरे दिल में गुलाबों की तरह 



**~मेरा योरोप भ्रमण -भाग ५ ~ "जर्मनी की सैर व स्विट्ज़रलैंड में प्रवेश" ~**


एक नज़र इधर भी 


जरूर आयेगा 




कारगिल दिवस और भी आयेंगे आगे

नमन 



धरा कर रही गुहार [तोमर छंद]

देख कैसे रही पुकार



और कुछ तेरे मेरे मन की 



नमिता राकेश,मनोज अबोध,रामा द्विवेदी और चंडी दत्त को परिकल्पना काव्य सम्मान

बधाइयाँ 



बिल्कुल होगा



पढिये ज़रा


अगले हफ़्ते फिर मिलते हैं …………नमस्कार 

आगे देखिए..."मयंक का कोना"
(1)
कुण्डलियाँ ---श्याम लीला ---- डा श्याम गुप्त....

सृजन मंच ऑनलाइन पर shyam Gupta

(2)
"अच्छी नहीं लगतीं"

गुलो-गुलशन की बरबादी, हमें अच्छी नहीं लगती।
वतन की बढ़ती आबादी, हमें अच्छी नहीं लगती...
उच्चारण
(3)
बातें सावन की....हाइगा में

अभिव्यंजना पर Maheshwari kaneri

(4)
प्रकृति वधु- हाइगा में

हिन्दी-हाइगा पर ऋता शेखर मधु 

(5)
कई प्रवक्ता बहुवचन, थोथा शब्द प्रहार-

"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर

(6)
ग़ज़ल (ये कैसा परिवार)
दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ* * ** **मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है* *युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ...
मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें
(7)
“पड़ गये झूले”
savan ke jhoole
 पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर
पास के तालाब से मेढक सुनाते सुर-सुरीला ..

(8)
मेरा पागलपन सा लगता है..... !!!

वो तुम्हारा इन्तजार करना..... सब कुछ छोड़ कर....तुम्हे याद करना.... खुद पर हँसती हूँ, जब याद आता है......वो बचपना मेरा.... मेरा पागलपन सा लगता है...
'आहुति' पर sushma 'आहुति' 
(9)
"कार्टून-कुनबागिरि नहीं..अपने बूते पर हैं" (कार्टूनिस्ट-मयंक)

(10)
कार्टून :-अवार्ड ही अवार्ड, एक बार मि‍ल तो लें, रैगड़ पुरा करोल बाग़ (3/6)
काजल कुमार के कार्टून

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपका श्रम सराहनीय है वन्दना जी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. shukriya vandana ji , meri post ko shamil karne ke liye . main aabhaari hoon. aur baaki ke links bhi bahut acche lage hai
    dhanywaad/

    जवाब देंहटाएं
  3. वंदना जी बहुत ही सुन्दर हैं सभी लिंक्स........हमारे ब्लॉग की पोस्ट को यहाँ शामिल करने का बहुत बहुत शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सजी चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर चर्चा..मेरी पोस्ट को यहाँ शामिल करने का बहुत बहुतआभार शास्त्री जी आप का..

    जवाब देंहटाएं
  6. वन्दना जी, छोटे छोटे रोचक कमेंट्स के साथ प्रस्तुत किये लिंक्स आकर्षक हैं, आभार मुझे भी अज की चर्चा में शामिल करने के लिए..

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. waah waah vandana ji bahut sare links ke sath badiya charcha ,meri rachna ko sthan dene ke liye shukriya
    guru ji ko pranaam

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दरचर्चा ..सुन्दर चित्रों से सजी प्रस्तुती ...

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छे लिंक्स वंदना जी...!
    मेरी रचना को स्थान देने का आभार..
    ~सादर!!!

    जवाब देंहटाएं
  11. आभार आपका, हमारी पोस्ट को शामिल करने हेतु.
    हमेशा की तरह आपका प्रयास साधुवाद का पात्र है...
    बधाई

    जवाब देंहटाएं

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